AajTak : Apr 01, 2020, 09:42 AM
दिल्ली: एक स्टडी में इस बात की फिर पुष्टि हुई है कि कोरोना वायरस हवा में भी घूमता हुआ हो सकता है। अगर किसी कमरे में कोरोना का मरीज ठहरा हो तो मरीज के कमरे से जाने के बाद भी हवा में कोरोना वायरस मौजूद हो सकते हैं। डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का के रिसर्चर्स ने कोरोना के हवा में मौजूद रहने को लेकर स्टडी की थी।
नेब्रास्का यूनिवर्सिटी की स्टडी में यह भी सामने आया है कि कमरे से मरीज के जाने के बाद कई घंटे तक कोरोना वायरस वातावरण में मौजूद हो सकता है। रिसर्चर्स का कहना है कि मरीज के जाने के बाद भी हवा में कोरोना वायरस की काफी अधिक मात्रा मौजूद होती है।वहीं, हॉस्पिटल के जिस कमरे में मरीज रहते हैं, उसके आसपास के कॉरिडोर में भी कोरोना वायरस हो सकते हैं। हालांकि, इससे पहले भी कुछ स्टडी में ये बात सामने आई थी कि कोरोना वायरस सिर्फ मरीज से ही नहीं फैलते, बल्कि ये कई जगहों की सतह पर भी मौजूद हो सकते हैं।स्टडी का रिजल्ट बताता है कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज की देखभाल कर रहे डॉक्टर्स और अन्य मेडिकल स्टाफ के लिए प्रोटेक्टिव कपड़े कितने अधिक जरूरी हैं। कई देशों के डॉक्टर फिलहाल पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) की कमी से जूझ रहे हैं। कई जगहों पर इलाज कर रहे डॉक्टर भी संक्रमित हो गए हैंबता दें कि कोरोना वायरस से बुधवार सुबह तक दुनियाभर में 8 लाख 58 हजार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं। 42 हजार से अधिक लोग कोरोना से जान भी गंवा चुके हैं।हालांकि, दुनियाभर के मेडिकल साइंटिस्ट अब भी ऐसा कोई आंकड़ा नहीं दे पाए हैं कि कुल संक्रमित लोगों में कितने मरीज हवा या किसी सतह के संपर्क में आने से प्रभावित हुए और कितने मरीज संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से।नेब्रास्का यूनिवर्सिटी की स्टडी में 11 मरीजों के कमरों के सैंपल लिए गए थे। इन सैंपल से पता चला कि कमरे के भीतर और बाहर, दोनों जगह की हवा में कोरोना मौजूद हैं।यूनिवर्सिटी में संक्रमित रोगों के एक्सपर्ट और स्टडी को लीड करने वाले जेम्स लॉलर ने कहा कि हमें जो रिजल्ट मिला है वह हमारे संदेह की पुष्टि करते हैं। इसलिए कोरोना संक्रमित मरीजों के कमरे में निगेटिव एयरफ्लो होना जरूरी है। भले ही कितनी ही अधिक संख्या में मरीज आएं, हमें यह सुनिश्चित करना होगा।इंग्लैंड के चीफ मेडिकल ऑफिसर क्रिस व्हाइटी ने भी कहा था कि मेटल या फिर प्लास्टिक की सतह पर तीन दिनों तक कोरोना वायरस मौजूद रह सके हैं और इसे छूने से लोग संक्रमित हो सकते हैं।
नेब्रास्का यूनिवर्सिटी की स्टडी में यह भी सामने आया है कि कमरे से मरीज के जाने के बाद कई घंटे तक कोरोना वायरस वातावरण में मौजूद हो सकता है। रिसर्चर्स का कहना है कि मरीज के जाने के बाद भी हवा में कोरोना वायरस की काफी अधिक मात्रा मौजूद होती है।वहीं, हॉस्पिटल के जिस कमरे में मरीज रहते हैं, उसके आसपास के कॉरिडोर में भी कोरोना वायरस हो सकते हैं। हालांकि, इससे पहले भी कुछ स्टडी में ये बात सामने आई थी कि कोरोना वायरस सिर्फ मरीज से ही नहीं फैलते, बल्कि ये कई जगहों की सतह पर भी मौजूद हो सकते हैं।स्टडी का रिजल्ट बताता है कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज की देखभाल कर रहे डॉक्टर्स और अन्य मेडिकल स्टाफ के लिए प्रोटेक्टिव कपड़े कितने अधिक जरूरी हैं। कई देशों के डॉक्टर फिलहाल पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) की कमी से जूझ रहे हैं। कई जगहों पर इलाज कर रहे डॉक्टर भी संक्रमित हो गए हैंबता दें कि कोरोना वायरस से बुधवार सुबह तक दुनियाभर में 8 लाख 58 हजार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं। 42 हजार से अधिक लोग कोरोना से जान भी गंवा चुके हैं।हालांकि, दुनियाभर के मेडिकल साइंटिस्ट अब भी ऐसा कोई आंकड़ा नहीं दे पाए हैं कि कुल संक्रमित लोगों में कितने मरीज हवा या किसी सतह के संपर्क में आने से प्रभावित हुए और कितने मरीज संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से।नेब्रास्का यूनिवर्सिटी की स्टडी में 11 मरीजों के कमरों के सैंपल लिए गए थे। इन सैंपल से पता चला कि कमरे के भीतर और बाहर, दोनों जगह की हवा में कोरोना मौजूद हैं।यूनिवर्सिटी में संक्रमित रोगों के एक्सपर्ट और स्टडी को लीड करने वाले जेम्स लॉलर ने कहा कि हमें जो रिजल्ट मिला है वह हमारे संदेह की पुष्टि करते हैं। इसलिए कोरोना संक्रमित मरीजों के कमरे में निगेटिव एयरफ्लो होना जरूरी है। भले ही कितनी ही अधिक संख्या में मरीज आएं, हमें यह सुनिश्चित करना होगा।इंग्लैंड के चीफ मेडिकल ऑफिसर क्रिस व्हाइटी ने भी कहा था कि मेटल या फिर प्लास्टिक की सतह पर तीन दिनों तक कोरोना वायरस मौजूद रह सके हैं और इसे छूने से लोग संक्रमित हो सकते हैं।