AajTak : Jul 24, 2020, 09:39 AM
बिहार में उफनती नदियां और बाढ़ के पानी ने 5 लाख से ज्यादा लोगों के जीवन को बेहाल कर दिया है। इस बार राज्य के करीब 10 से ज्यादा जिलों में स्थिति नाजुक हो चली है। इस बीच बिहार के गोपालगंज में एक और पुल के बहने की खबर है। यहां सारण तटबंध टूट गया है और इससे नए इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। इससे पहले गोपालगंज में गंडक नदी पर बना पुल का एक हिस्सा बह गया था।
देवरिया में भी घाघरा नदी पर भागलपुर पुल क्षतिग्रस्त हो गया है। पुल के ज्वाईंट में गैप आ गया है। यह पुल 1100 मीटर लंबा है। सलेमपुर से भाजपा सांसद रविन्द्र कुशवाहा ने कहा कि पुल को तैयार करने के लिए काम करेंगे। बता दें कि 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने इस पुल का लोकार्पण किया था। यहह पुल पहले भी क्षतिग्रस्त हो चुका है।बिहार में बाढ़ से हाहाकार के बीच 5 लाख से ज्यादा आबादी प्रभावित है। सभी जिलों में मिलाकर करीब 245 पंचायतों में तबाही मची है। वैसे तो प्रशासन बचाव अभियान चला रहा है और 5 हजार लोग रिलीफ कैंपों में भेजे जा चुके हैं। लेकिन जिस पैमाने पर रेस्क्यू ऑपरेशन की जरूरत है। जितनी आबादी मदद की मोहताज है, उन तक जमीनी स्तर पर कोई एक्शन नहीं दिखता।बिहार के गोपालगंज में बहा पुल
एक तो मूसलाधार बारिश से नदियां उफान पर आ जाती हैं। नदी-नाले हर जगह लबालब भर जाते हैं। दूसरी आफत बनता है नेपाल, जहां भारी बारिश के बाद पड़ोसी देश पानी छोड़ने लगता है। इस वजह से उत्तर बिहार की नदियों में जलस्तर बेहिसाब बढ़ जाता है। राज्य के निचले इलाके डूबने लगते हैं।कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला बलान और महानंदा नदियों से उत्तर बिहार में बाढ़ का संकट गहराता है। इन सभी नदियों का कनेक्शन सीधे सीधे नेपाल से है। यानि जब भी नेपाल पानी छोड़ता है तो उसका कहर इन नदियों के जरिए उत्तर बिहार पर टूटता है।बिहार में 7 जिले ऐसे हैं, जो नेपाल से सटे हुए हैं। इनमें पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज शामिल हैं। नेपाल से छोड़े गए पानी का असर इन इलाकों में दिखने लगता है।बिहार में बाढ़ पर काबू करने के लिए सरकारें सुस्त रवैये से प्लान बनाती रहीं। उस पर अमल करती रहीं। इसके तहत कुछ नदियों पर बांध बनाए गए। लेकिन अब तक तस्वीर नहीं बदली। पिछले 40 साल से यानी 1979 से अब तक बिहार लगातार हर साल बाढ़ से जूझ रहा है। बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के मुताबिक राज्य का 68,800 वर्ग किमी हर साल बाढ़ में डूब जाता है। हजारों परिवार बेघर हो जाते हैं।एक, दो या चार साल की बात नहीं। उत्तर बिहार में बाढ़ का कई साल से ऐसा ही हाल है। राजनीतिक पार्टियां सत्ता संभालने में मशगूल रहती हैं, जनता बरसात में अपनी बर्बादी का इंतजार करती रहती है। कोसी का इलाका 2008 की भीषण बाढ़ देख चुका है। तब कोसी ने रौद्र रूप दिखाया था। लेकिन अब भी हालात बिल्कुल नहीं बदले। सैकड़ों गांव, हजारों घर, स्कूल, सब पानी में जलमग्न दिख रहे हैं।
असम बाढ़ से तबाहीअसम में ब्रह्मपुत्र नदी गरज रही है। उसके विस्तार से कई जिलों में हालात बिगड़ रहे हैं। बाढ़ की वजह से देशभर में सबसे ज्यादा तबाही असम में ही है। असम में बाढ़ की वजह से 89 लोगों की जान जा चुकी है। 26 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में हैं। जबकि 2500 से ज्यादा गांवों में ब्रह्मपुत्र नदी की वजह से त्राहिमाम है। हालांकि लोगों की राहत के लिए 391 रिलीफ कैंप बनाए गए हैं जहां फिलहाल 45 हजार से ज्यादा लोगों का बसेरा है।यहां बाग-बगीचा-घर बार सब दरिया-दरिया है। असम के लिए आनेवाले दिनों में भी राहत नहीं। ऐसे में राज्य सरकार को बड़े स्तर पर लोगों को मदद करनी होगी ताकि उन्हें सैलाब की वजह से खौफ के साए में ना जीना पड़े।
देवरिया में भी घाघरा नदी पर भागलपुर पुल क्षतिग्रस्त हो गया है। पुल के ज्वाईंट में गैप आ गया है। यह पुल 1100 मीटर लंबा है। सलेमपुर से भाजपा सांसद रविन्द्र कुशवाहा ने कहा कि पुल को तैयार करने के लिए काम करेंगे। बता दें कि 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने इस पुल का लोकार्पण किया था। यहह पुल पहले भी क्षतिग्रस्त हो चुका है।बिहार में बाढ़ से हाहाकार के बीच 5 लाख से ज्यादा आबादी प्रभावित है। सभी जिलों में मिलाकर करीब 245 पंचायतों में तबाही मची है। वैसे तो प्रशासन बचाव अभियान चला रहा है और 5 हजार लोग रिलीफ कैंपों में भेजे जा चुके हैं। लेकिन जिस पैमाने पर रेस्क्यू ऑपरेशन की जरूरत है। जितनी आबादी मदद की मोहताज है, उन तक जमीनी स्तर पर कोई एक्शन नहीं दिखता।बिहार के गोपालगंज में बहा पुल
एक तो मूसलाधार बारिश से नदियां उफान पर आ जाती हैं। नदी-नाले हर जगह लबालब भर जाते हैं। दूसरी आफत बनता है नेपाल, जहां भारी बारिश के बाद पड़ोसी देश पानी छोड़ने लगता है। इस वजह से उत्तर बिहार की नदियों में जलस्तर बेहिसाब बढ़ जाता है। राज्य के निचले इलाके डूबने लगते हैं।कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला बलान और महानंदा नदियों से उत्तर बिहार में बाढ़ का संकट गहराता है। इन सभी नदियों का कनेक्शन सीधे सीधे नेपाल से है। यानि जब भी नेपाल पानी छोड़ता है तो उसका कहर इन नदियों के जरिए उत्तर बिहार पर टूटता है।बिहार में 7 जिले ऐसे हैं, जो नेपाल से सटे हुए हैं। इनमें पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज शामिल हैं। नेपाल से छोड़े गए पानी का असर इन इलाकों में दिखने लगता है।बिहार में बाढ़ पर काबू करने के लिए सरकारें सुस्त रवैये से प्लान बनाती रहीं। उस पर अमल करती रहीं। इसके तहत कुछ नदियों पर बांध बनाए गए। लेकिन अब तक तस्वीर नहीं बदली। पिछले 40 साल से यानी 1979 से अब तक बिहार लगातार हर साल बाढ़ से जूझ रहा है। बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के मुताबिक राज्य का 68,800 वर्ग किमी हर साल बाढ़ में डूब जाता है। हजारों परिवार बेघर हो जाते हैं।एक, दो या चार साल की बात नहीं। उत्तर बिहार में बाढ़ का कई साल से ऐसा ही हाल है। राजनीतिक पार्टियां सत्ता संभालने में मशगूल रहती हैं, जनता बरसात में अपनी बर्बादी का इंतजार करती रहती है। कोसी का इलाका 2008 की भीषण बाढ़ देख चुका है। तब कोसी ने रौद्र रूप दिखाया था। लेकिन अब भी हालात बिल्कुल नहीं बदले। सैकड़ों गांव, हजारों घर, स्कूल, सब पानी में जलमग्न दिख रहे हैं।
असम बाढ़ से तबाहीअसम में ब्रह्मपुत्र नदी गरज रही है। उसके विस्तार से कई जिलों में हालात बिगड़ रहे हैं। बाढ़ की वजह से देशभर में सबसे ज्यादा तबाही असम में ही है। असम में बाढ़ की वजह से 89 लोगों की जान जा चुकी है। 26 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में हैं। जबकि 2500 से ज्यादा गांवों में ब्रह्मपुत्र नदी की वजह से त्राहिमाम है। हालांकि लोगों की राहत के लिए 391 रिलीफ कैंप बनाए गए हैं जहां फिलहाल 45 हजार से ज्यादा लोगों का बसेरा है।यहां बाग-बगीचा-घर बार सब दरिया-दरिया है। असम के लिए आनेवाले दिनों में भी राहत नहीं। ऐसे में राज्य सरकार को बड़े स्तर पर लोगों को मदद करनी होगी ताकि उन्हें सैलाब की वजह से खौफ के साए में ना जीना पड़े।