AajTak : Apr 15, 2020, 03:50 PM
कोरोना वायरस के संक्रमण की बढ़ती रफ्तार को देखते हुए दुनिया के तमाम देशों को ना चाहते हुए भी लॉकडाउन करने पर मजबूर होना पड़ा। भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन के खत्म होने के बाद इसे 3 मई तक के लिए आगे बढ़ा दिया गया है। इसके साथ ही, सोशल डिस्टेंसिंग के नियम और भी सख्त कर दिए गए हैं। कई देशों को उम्मीद है कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ वे कुछ महीनों के भीतर इस मुश्किल से बाहर निकल आएंगे।
हालांकि, वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग का सहारा लेना पड़ सकता है। नई स्टडी में शोधकर्ताओं ने कहा है कि आने वाले सालों में कोरोना वायरस से फिर से तबाही मचा सकता है। जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए शोध में कहा गया है कि सिर्फ एक बार लॉकडाउन करने से महामारी पर नियंत्रण पाना मुश्किल है। रोकथाम के उपायों के बिना कोरोना वायरस की दूसरी लहर ज्यादा भयावह हो सकती है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में महामारी विशेषज्ञ और स्टडी के लेखक मार्क लिपसिच ने कहा, संक्रमण दो चीजें होने पर फैलता है- एक संक्रमित व्यक्ति और दूसरा कमजोर इम्यून वाले लोग। जब तक कि दुनिया की ज्यादातर आबादी में वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो जाती है, तब तक बड़ी आबादी के इसके चपेट में आने की आशंका बनी रहेगी।
वैक्सीन या इलाज ना खोजे जा पाने की स्थिति में 2025 में कोरोना वायरस फिर से पूरी दुनिया को अपनी जद में ले सकता है। महामारी विशेषज्ञ मार्क का कहना है कि वर्तमान में कोरोना वायरस से संक्रमण की स्थिति को देखते हुए 2020 की गर्मी तक महामारी के अंत की भविष्यवाणी करना सही नहीं है।
यूके सरकार की वैज्ञानिक सलाहकार समिति ने सुझाव दिया था कि अस्पतालों पर मरीजों का बोझ बढ़ने से रोकने के लिए लंबे वक्त तक फिजिकल डिस्टेंसिंग बनाए रखने की जरूरत है। समिति ने कहा कि देश में करीब एक साल तक सरकार को कभी सख्ती तो कभी थोड़ी ढील के साथ सोशल डिस्टेंसिंग के नियम जारी रखने चाहिए।
शोध के मुताबिक, नए इलाज, वैक्सीन के आने और स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर होने की स्थिति में फिजिकल डिस्टेंसिंग अनिवार्य नहीं रह जाएगा लेकिन इनकी गैर-मौजूदगी में देशों को 2022 तक सर्विलांस और फिजिकल डिस्टेंसिंग लागू करनी पड़ सकती है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर अभी कई रहस्य सुलझे नहीं हैं, ऐसे में बहुत लंबे वक्त के लिए इसकी सटीक भविष्यवाणी कर पाना मुश्किल है। अगर लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता स्थायी हो जाती है तो कोरोना वायरस पांच सालों या उससे ज्यादा लंबे समय के लिए गायब हो जाएगा। अगर लोगों की इम्युनिटी सिर्फ एक साल तक कायम रहती है तो बाकी कोरोना वायरसों की तरह सालाना तौर पर इस महामारी की वापसी हो सकती है।
शोधकर्ता लिपसिच ने कहा, इस बात की ज्यादा संभावनाएं हैं कि दुनिया को करीब एक साल के लिए आंशिक सुरक्षा हासिल हो जाए। जबकि वायरस के खिलाफ पूरी तरह सुरक्षा हासिल करने के लिए कई साल लग सकते हैं। फिलहाल, हम सिर्फ कयास ही लगा सकते हैं। सभी परिस्थितियों में ये बात तय है कि एक बार का लॉकडाउन कोरोना को खत्म करने के लिए काफी नहीं होगा। पाबंदियां हटते ही कोरोना वायरस का संक्रमण फिर से पैर पसार लेगा।
दुनिया भर के वैज्ञानिकों का कहना है कि वैक्सीन ना बनने तक कोरोना वायरस से पूरी तरह छुटकारा पाना मुश्किल है। अमेरिका कोरोना वायरस टास्क फोर्स के सदस्य डॉ। एंथोनी फाउची ने भी कहा है कि कोरोना वायरस को जड़ से खत्म करना दुनिया के लिए इतना आसान नहीं होगा।विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष राजदूत डेविड नाबारो ने कहा है कि कोरोना वायरस मानव जाति का लंबे वक्त तक पीछा करता रहेगा। जब तक लोग वैक्सीन से खुद को सुरक्षित नहीं कर लेते, कोरोना वायरस का प्रकोप जारी रहेगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग में सेल्युलर माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ। सिमन क्लार्क ने द इंडिपेंडेट से बातचीत में कहा कि कोरोना वायरस के एंडगेम की तारीख बताना असंभव बात है। उन्होंने कहा, अगर कोई आपको कोरोना वायरस के अंत की तारीख बता रहा है तो इसका मतलब है कि वे क्रिस्टल बॉल देखकर भविष्यवाणी कर रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि कोरोना वायरस फैल चुका है और अब यह हमारे साथ हमेशा के लिए रहने वाला है।
साउथहैम्पटन यूनिवर्सिटी में ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ता माइकल हेड का कहना है कि कोरोना वायरस के बारे में कोई भी अंदाजा लगाना मुश्किल है। ये बिल्कुल नया वायरस है और दुनिया भर में महामारी का रूप धारण कर चुका है। उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ महीनों में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में गिरावट देखने को मिल सकती है। हालांकि, सर्दी के आते ही कोरोना वायरस के मामले फिर से बढ़ सकते हैं क्योंकि उस वक्त फ्लू भी दस्तक दे देगा।इंपीरियल कॉलेज लंदन के प्रोफेसर नील फार्ग्युसन के मुताबिक, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे कदम संक्रमण की धीमी रफ्तार के लिए बहुत जरूरी हैं।जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक बड़े पैमाने पर सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत बनी रहेगी। कॉलेज की ही एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन बनने में करीब 18 महीनों का वक्त लग सकता है।
हालांकि, वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग का सहारा लेना पड़ सकता है। नई स्टडी में शोधकर्ताओं ने कहा है कि आने वाले सालों में कोरोना वायरस से फिर से तबाही मचा सकता है। जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए शोध में कहा गया है कि सिर्फ एक बार लॉकडाउन करने से महामारी पर नियंत्रण पाना मुश्किल है। रोकथाम के उपायों के बिना कोरोना वायरस की दूसरी लहर ज्यादा भयावह हो सकती है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में महामारी विशेषज्ञ और स्टडी के लेखक मार्क लिपसिच ने कहा, संक्रमण दो चीजें होने पर फैलता है- एक संक्रमित व्यक्ति और दूसरा कमजोर इम्यून वाले लोग। जब तक कि दुनिया की ज्यादातर आबादी में वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो जाती है, तब तक बड़ी आबादी के इसके चपेट में आने की आशंका बनी रहेगी।
वैक्सीन या इलाज ना खोजे जा पाने की स्थिति में 2025 में कोरोना वायरस फिर से पूरी दुनिया को अपनी जद में ले सकता है। महामारी विशेषज्ञ मार्क का कहना है कि वर्तमान में कोरोना वायरस से संक्रमण की स्थिति को देखते हुए 2020 की गर्मी तक महामारी के अंत की भविष्यवाणी करना सही नहीं है।
यूके सरकार की वैज्ञानिक सलाहकार समिति ने सुझाव दिया था कि अस्पतालों पर मरीजों का बोझ बढ़ने से रोकने के लिए लंबे वक्त तक फिजिकल डिस्टेंसिंग बनाए रखने की जरूरत है। समिति ने कहा कि देश में करीब एक साल तक सरकार को कभी सख्ती तो कभी थोड़ी ढील के साथ सोशल डिस्टेंसिंग के नियम जारी रखने चाहिए।
शोध के मुताबिक, नए इलाज, वैक्सीन के आने और स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर होने की स्थिति में फिजिकल डिस्टेंसिंग अनिवार्य नहीं रह जाएगा लेकिन इनकी गैर-मौजूदगी में देशों को 2022 तक सर्विलांस और फिजिकल डिस्टेंसिंग लागू करनी पड़ सकती है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर अभी कई रहस्य सुलझे नहीं हैं, ऐसे में बहुत लंबे वक्त के लिए इसकी सटीक भविष्यवाणी कर पाना मुश्किल है। अगर लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता स्थायी हो जाती है तो कोरोना वायरस पांच सालों या उससे ज्यादा लंबे समय के लिए गायब हो जाएगा। अगर लोगों की इम्युनिटी सिर्फ एक साल तक कायम रहती है तो बाकी कोरोना वायरसों की तरह सालाना तौर पर इस महामारी की वापसी हो सकती है।
शोधकर्ता लिपसिच ने कहा, इस बात की ज्यादा संभावनाएं हैं कि दुनिया को करीब एक साल के लिए आंशिक सुरक्षा हासिल हो जाए। जबकि वायरस के खिलाफ पूरी तरह सुरक्षा हासिल करने के लिए कई साल लग सकते हैं। फिलहाल, हम सिर्फ कयास ही लगा सकते हैं। सभी परिस्थितियों में ये बात तय है कि एक बार का लॉकडाउन कोरोना को खत्म करने के लिए काफी नहीं होगा। पाबंदियां हटते ही कोरोना वायरस का संक्रमण फिर से पैर पसार लेगा।
दुनिया भर के वैज्ञानिकों का कहना है कि वैक्सीन ना बनने तक कोरोना वायरस से पूरी तरह छुटकारा पाना मुश्किल है। अमेरिका कोरोना वायरस टास्क फोर्स के सदस्य डॉ। एंथोनी फाउची ने भी कहा है कि कोरोना वायरस को जड़ से खत्म करना दुनिया के लिए इतना आसान नहीं होगा।विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष राजदूत डेविड नाबारो ने कहा है कि कोरोना वायरस मानव जाति का लंबे वक्त तक पीछा करता रहेगा। जब तक लोग वैक्सीन से खुद को सुरक्षित नहीं कर लेते, कोरोना वायरस का प्रकोप जारी रहेगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग में सेल्युलर माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ। सिमन क्लार्क ने द इंडिपेंडेट से बातचीत में कहा कि कोरोना वायरस के एंडगेम की तारीख बताना असंभव बात है। उन्होंने कहा, अगर कोई आपको कोरोना वायरस के अंत की तारीख बता रहा है तो इसका मतलब है कि वे क्रिस्टल बॉल देखकर भविष्यवाणी कर रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि कोरोना वायरस फैल चुका है और अब यह हमारे साथ हमेशा के लिए रहने वाला है।
साउथहैम्पटन यूनिवर्सिटी में ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ता माइकल हेड का कहना है कि कोरोना वायरस के बारे में कोई भी अंदाजा लगाना मुश्किल है। ये बिल्कुल नया वायरस है और दुनिया भर में महामारी का रूप धारण कर चुका है। उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ महीनों में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में गिरावट देखने को मिल सकती है। हालांकि, सर्दी के आते ही कोरोना वायरस के मामले फिर से बढ़ सकते हैं क्योंकि उस वक्त फ्लू भी दस्तक दे देगा।इंपीरियल कॉलेज लंदन के प्रोफेसर नील फार्ग्युसन के मुताबिक, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे कदम संक्रमण की धीमी रफ्तार के लिए बहुत जरूरी हैं।जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक बड़े पैमाने पर सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत बनी रहेगी। कॉलेज की ही एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन बनने में करीब 18 महीनों का वक्त लग सकता है।