News18 : Apr 11, 2020, 12:16 PM
वॉशिंगटन। दुनिया भर के वैज्ञानिक अभी तक कोरोना वायरस (Coronavirus) का कोई इलाज नहीं खोज पाए हैं। कई देशों में फिलहाल वैक्सीन पर काम चल रहा है, लेकिन अब तक उन्हें कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लगी है। इस बीच वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा कि जिन लोगों का कोरोना टेस्ट निगेटिव आया है, वो भी पॉजिटिव हो सकते हैं। ऐसे में टेस्टिंग किट से सौ फीसदी सही जांच की गारंटी नहीं की जा सकती।
क्या है मुख्य वजह?
दुनिया भर में फिलहाल कोरोना वायरस की टेस्टिंग के लिए PCR तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत मरीज के बलगम और ब्लड सैंपल में कोरोना वायरस के टुकड़े देखे जाते हैं। अमेरिका के मिनेसोटा की एक डॉक्टर प्रिया समपत कुमार का कहना है कि कई सारे फैक्टर हैं, जिससे पता चलता है कि टेस्ट के दौरान ये वायरस दिखेगा या नहीं। उन्होंने कहा, 'ये मुख्यतौर पर इस बात पर निर्भर करता है कि किसी मरीज के अंदर कितना ज्यादा कोरोना वायरस है, जो छींकने, खांसने और सांस लेने के दौरान बाहर आ रहा है। इसके अलावा यहां ये भी अहम है कि किस तरह टेस्ट के लिए स्वैब का सैंपल लिया गया। साथ इसके बाद कितनी देर तक ये सैंपल ट्रांसपोर्ट में रहा।'टेस्टिंग के अल-अलग तरीके
यहां ये जानना अहम है कि कोरोना वायरस ने दुनिया में सिर्फ 4 महीने पहले ही दस्तक दिया है। ऐसे में इसकी जांच को लेकर फिलहाल चीज़े साफ नहीं है। चीन से आई रिपोर्ट में कहा गया है कि 60 से 70 फीसदी मामलों में ही वायरस की पुष्टि सही-सही की जा सकती है। ये भी कहा जा रहा है कि दुनिया भर में कंपनिया अलग-अलग तरीके से टेस्टिंग किट बना रही है। डॉक्टर प्रिया समपत कुमार का कहना है कि टेस्टटिंग में गलतियों की काफी संभावना है। उन्होंने कहा, 'मान लिजिए जैसा कि अनुमान लगाया गया है कि कैलिफोर्निया में मई तक 50 फीसदी लोग कोरोना वायरस के पॉजिटिव होंगे। यहां 4 करोड़ लोग रहते हैं। अगर 1 फीसदी लोगों का टेस्ट हुआ तो भी 20 लोगों की गलत रिपोर्ट आ सकती है।'सही तरीके से सैंपल लेना जरूरी
डॉक्टरों का ये भी कहना है कि कोरोना वायरस बॉडी के अलग-अलग पार्ट में शिफ्ट होती रहती है। ऐसे में अगर कोई टेस्ट करना वाला ट्रेंड नहीं है तो वो स्वैब के जरिये सही तरीके से सैंपल नहीं ले पाता है। ऐसे में मरीज़ के निगेटिव होने के बाद भी रिपोर्ट पॉजिटिवआ सकती है। बता दें कि अमेरिका में अब तक 25 लाख लोगों का कोरोना टेस्ट हो चुका है।
क्या है मुख्य वजह?
दुनिया भर में फिलहाल कोरोना वायरस की टेस्टिंग के लिए PCR तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत मरीज के बलगम और ब्लड सैंपल में कोरोना वायरस के टुकड़े देखे जाते हैं। अमेरिका के मिनेसोटा की एक डॉक्टर प्रिया समपत कुमार का कहना है कि कई सारे फैक्टर हैं, जिससे पता चलता है कि टेस्ट के दौरान ये वायरस दिखेगा या नहीं। उन्होंने कहा, 'ये मुख्यतौर पर इस बात पर निर्भर करता है कि किसी मरीज के अंदर कितना ज्यादा कोरोना वायरस है, जो छींकने, खांसने और सांस लेने के दौरान बाहर आ रहा है। इसके अलावा यहां ये भी अहम है कि किस तरह टेस्ट के लिए स्वैब का सैंपल लिया गया। साथ इसके बाद कितनी देर तक ये सैंपल ट्रांसपोर्ट में रहा।'टेस्टिंग के अल-अलग तरीके
यहां ये जानना अहम है कि कोरोना वायरस ने दुनिया में सिर्फ 4 महीने पहले ही दस्तक दिया है। ऐसे में इसकी जांच को लेकर फिलहाल चीज़े साफ नहीं है। चीन से आई रिपोर्ट में कहा गया है कि 60 से 70 फीसदी मामलों में ही वायरस की पुष्टि सही-सही की जा सकती है। ये भी कहा जा रहा है कि दुनिया भर में कंपनिया अलग-अलग तरीके से टेस्टिंग किट बना रही है। डॉक्टर प्रिया समपत कुमार का कहना है कि टेस्टटिंग में गलतियों की काफी संभावना है। उन्होंने कहा, 'मान लिजिए जैसा कि अनुमान लगाया गया है कि कैलिफोर्निया में मई तक 50 फीसदी लोग कोरोना वायरस के पॉजिटिव होंगे। यहां 4 करोड़ लोग रहते हैं। अगर 1 फीसदी लोगों का टेस्ट हुआ तो भी 20 लोगों की गलत रिपोर्ट आ सकती है।'सही तरीके से सैंपल लेना जरूरी
डॉक्टरों का ये भी कहना है कि कोरोना वायरस बॉडी के अलग-अलग पार्ट में शिफ्ट होती रहती है। ऐसे में अगर कोई टेस्ट करना वाला ट्रेंड नहीं है तो वो स्वैब के जरिये सही तरीके से सैंपल नहीं ले पाता है। ऐसे में मरीज़ के निगेटिव होने के बाद भी रिपोर्ट पॉजिटिवआ सकती है। बता दें कि अमेरिका में अब तक 25 लाख लोगों का कोरोना टेस्ट हो चुका है।