AajTak : Aug 27, 2020, 06:32 AM
Delhi: जब नेपाल समेत तमाम पड़ोसी देशों के साथ भारत के रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं, श्रीलंका ने भारत को आश्वस्त करने की कोशिश की है। श्रीलंका के विदेश सचिव जयनाथ कोलंबेज ने कहा है कि श्रीलंका अपनी विदेश नीति में 'इंडिया फर्स्ट' को अपनाएगा और भारत के सभी सामरिक हितों की सुरक्षा करेगा। पिछले कुछ दिनों में हुए घटनाक्रमों के बाद ये आशंका जताई जा रही थी कि श्रीलंका का झुकाव भारत के मुकाबले चीन की तरफ ज्यादा हो गया है।
एडमिरल कोलंबेज पहले ऐसे विदेश सचिव बने हैं जिनकी सैन्य पृष्ठभूमि रही है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने उन्हें 14 अगस्त को विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी थी। कोलंबेज 2012-14 के बीच श्रीलंका की नौसेना के प्रमुख रहे और बाद में विदेश नीति विश्लेषक बन गए। (तस्वीर में-श्रीलंका के राष्ट्रपति)‘डेली मिरर’ से एक इंटरव्यू में कोलंबेज ने कहा कि श्रीलंका अपनी नयी क्षेत्रीय विदेश नीति में 'इंडिया फर्स्ट' के तहत कदम उठाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘इसका मतलब है कि श्रीलंका ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जो भारत के रणनीतिक सुरक्षा हितों के लिए नुकसानदेह हो।उन्होंने कहा, ‘‘चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 2018 में भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था थी। इसका मतलब है कि हम दो आर्थिक दिग्गजों के बीच हैं।’’उन्होंने कहा कि श्रीलंका ऐसा कभी नहीं होने देगा कि उसका इस्तेमाल किसी अन्य देश, खासकर भारत के खिलाफ कुछ करने के लिए किया जाए। श्रीलंका को ना ऐसा करना चाहिए और ना ही ऐसा कर सकता है। हंबनटोटा बंदरगाह में चीन के निवेश के सवाल पर कोलंबेज ने कहा कि श्रीलंका ने हबंनटोटा की पेशकश पहले भारत को की थी। उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी वजह रही हो, भारत हंबनटोटा को लेकर आगे नहीं बढ़ा और उसके बाद ही वह एक चीनी कंपनी के हाथ में गया।’’कोलंबेज ने कहा, ‘‘अब हमने हंबनटोटा बंदरगाह की 85 प्रतिशत हिस्सेदारी चाइना मर्चेंट होल्डिंग कंपनी को दे दी है। वह व्यावसायिक गतिविधियों तक सीमित होना चाहिए। यह सैन्य उद्देश्यों के लिए बिल्कुल भी नहीं है।’’उन्होंने कहा कि पोर्ट वर्कर ट्रेड यूनियनों के विरोध के बावजूद, राष्ट्रपति राजपक्षे कोलंबो पोर्ट के पूर्वी टर्मिनल को लेकर भारत के साथ सहयोग ज्ञापन (मेमोरेंडम ऑफ कोऑपरेशन) पर आगे बढ़ेंगे।
कोलंबो पोर्ट श्रीलंका का सबसे बड़ा और व्यस्त पोर्ट है। केलानी नदी के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित ये पोर्ट हिंद-महासागर में रणनीतिक तौर पर काफी अहम है। एशिया में इसे काफी अहम टर्मिलन माना जाता है। श्रीलंका की पूर्ववर्ती सिरिसेना सरकार ने भारत और जापान के साथ टर्मिनल को विकसित करने को लेकर एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। ये टर्मिनल चीन की ओर से संचालित किए जा रहे कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल के बिल्कुल नजदीक है।श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कहा है कि वह इस समझौते पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति के नए दिशा-निर्देश के मुताबिक, किसी भी राष्ट्रीय संपत्ति को किसी भी देश के पूर्ण नियंत्रण में नहीं दिया जाएगा।कोलंबेज ने कहा कि राजपक्षे की विदेश नीति में बदलाव का मतलब है कि श्रीलंका अब पश्चिम केंद्रित किसी भी नीति पर नहीं चलेगा। श्रीलंका अपनी विदेश नीति को बहुमुखी बनाने के लिए अपने पड़ोसी देशों, मध्य-पूर्व एशिया और अफ्रीका में अधिकारियों की तैनाती में भी बदलाव किए जाएंगे।श्रीलंका में रक्षा क्षेत्र समेत चीन की अच्छी-खासी मौजूदगी है। श्रीलंका में चीन की तमाम गतिविधियों की वजह से भारत की चिंताएं सबसे ज्यादा बढ़ी हैं। चीनी कर्ज में फंसकर श्रीलंका को साल 2017 में अपना हंबनटोटा बंदरगाह चीन को 99 सालों के लिए लीज पर सौंपना पड़ा था। हंबनटोटा बंदरगाह भारत से मुश्किल से 100 मील की दूरी पर ही है। ऐसे में, भारत को इस बात की भी चिंता है कि हंबनटोटा में चीन अपनी सैन्य मौजूदगी भी बढ़ा सकता है।
एडमिरल कोलंबेज पहले ऐसे विदेश सचिव बने हैं जिनकी सैन्य पृष्ठभूमि रही है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने उन्हें 14 अगस्त को विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी थी। कोलंबेज 2012-14 के बीच श्रीलंका की नौसेना के प्रमुख रहे और बाद में विदेश नीति विश्लेषक बन गए। (तस्वीर में-श्रीलंका के राष्ट्रपति)‘डेली मिरर’ से एक इंटरव्यू में कोलंबेज ने कहा कि श्रीलंका अपनी नयी क्षेत्रीय विदेश नीति में 'इंडिया फर्स्ट' के तहत कदम उठाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘इसका मतलब है कि श्रीलंका ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जो भारत के रणनीतिक सुरक्षा हितों के लिए नुकसानदेह हो।उन्होंने कहा, ‘‘चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 2018 में भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था थी। इसका मतलब है कि हम दो आर्थिक दिग्गजों के बीच हैं।’’उन्होंने कहा कि श्रीलंका ऐसा कभी नहीं होने देगा कि उसका इस्तेमाल किसी अन्य देश, खासकर भारत के खिलाफ कुछ करने के लिए किया जाए। श्रीलंका को ना ऐसा करना चाहिए और ना ही ऐसा कर सकता है। हंबनटोटा बंदरगाह में चीन के निवेश के सवाल पर कोलंबेज ने कहा कि श्रीलंका ने हबंनटोटा की पेशकश पहले भारत को की थी। उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी वजह रही हो, भारत हंबनटोटा को लेकर आगे नहीं बढ़ा और उसके बाद ही वह एक चीनी कंपनी के हाथ में गया।’’कोलंबेज ने कहा, ‘‘अब हमने हंबनटोटा बंदरगाह की 85 प्रतिशत हिस्सेदारी चाइना मर्चेंट होल्डिंग कंपनी को दे दी है। वह व्यावसायिक गतिविधियों तक सीमित होना चाहिए। यह सैन्य उद्देश्यों के लिए बिल्कुल भी नहीं है।’’उन्होंने कहा कि पोर्ट वर्कर ट्रेड यूनियनों के विरोध के बावजूद, राष्ट्रपति राजपक्षे कोलंबो पोर्ट के पूर्वी टर्मिनल को लेकर भारत के साथ सहयोग ज्ञापन (मेमोरेंडम ऑफ कोऑपरेशन) पर आगे बढ़ेंगे।
कोलंबो पोर्ट श्रीलंका का सबसे बड़ा और व्यस्त पोर्ट है। केलानी नदी के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित ये पोर्ट हिंद-महासागर में रणनीतिक तौर पर काफी अहम है। एशिया में इसे काफी अहम टर्मिलन माना जाता है। श्रीलंका की पूर्ववर्ती सिरिसेना सरकार ने भारत और जापान के साथ टर्मिनल को विकसित करने को लेकर एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। ये टर्मिनल चीन की ओर से संचालित किए जा रहे कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल के बिल्कुल नजदीक है।श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कहा है कि वह इस समझौते पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति के नए दिशा-निर्देश के मुताबिक, किसी भी राष्ट्रीय संपत्ति को किसी भी देश के पूर्ण नियंत्रण में नहीं दिया जाएगा।कोलंबेज ने कहा कि राजपक्षे की विदेश नीति में बदलाव का मतलब है कि श्रीलंका अब पश्चिम केंद्रित किसी भी नीति पर नहीं चलेगा। श्रीलंका अपनी विदेश नीति को बहुमुखी बनाने के लिए अपने पड़ोसी देशों, मध्य-पूर्व एशिया और अफ्रीका में अधिकारियों की तैनाती में भी बदलाव किए जाएंगे।श्रीलंका में रक्षा क्षेत्र समेत चीन की अच्छी-खासी मौजूदगी है। श्रीलंका में चीन की तमाम गतिविधियों की वजह से भारत की चिंताएं सबसे ज्यादा बढ़ी हैं। चीनी कर्ज में फंसकर श्रीलंका को साल 2017 में अपना हंबनटोटा बंदरगाह चीन को 99 सालों के लिए लीज पर सौंपना पड़ा था। हंबनटोटा बंदरगाह भारत से मुश्किल से 100 मील की दूरी पर ही है। ऐसे में, भारत को इस बात की भी चिंता है कि हंबनटोटा में चीन अपनी सैन्य मौजूदगी भी बढ़ा सकता है।