News18 : Apr 20, 2020, 11:36 AM
चीन: संक्रमण (Infection) को रोकने के लिए लॉकडाउन (Lockdown), क्वारैण्टीन, मास्क (Mask) पहनने की अनिवार्यता, यात्रा पर प्रतिबंध (Travel Restriction), लाशों का सामूहिक दफन, सीमाएं सील करने जैसे तमाम दृश्य चीन (China) सहित दुनिया के ज़्यादातर देश देख रहे हैं, लेकिन ये सब चीन में 110 साल पहले भी हुआ था। तब एक महामारी (Epidemic) 60 हज़ार जानें लील गई थी और वैश्विक महामारी (Pandemic) बनने के पूरे खतरे थे। लेकिन दुनिया के सहयोगी रवैये के कारण और नुकसान होने से बचा लिया गया।
इतिहास के पन्नों (History) से यह कहानी कोरोना वायरस (Corona Virus) के संक्रमण से बने वर्तमान हालात और चुनौतियों को समझने के रास्ते खोलने का माद्दा रखती है। आज की दुनिया पूरी तरह से ध्रुवीकरण (Polarisation) की शिकार दिख रही है और सिर्फ अमेरिका और चीन (US and China) ही नहीं बल्कि कई देश गुटों में उलझकर एक दूसरे पर निशाना साधने में लगे हैं, वहीं 1911 में चीन की मदद के लिए अमेरिका, जापान, रूस और यूरोपीय देश सभी दोस्त बनकर आए थे और एक महामारी पर मानवीय एकता (Humanity) की भावना ने जीत हासिल की थी। आइए उस ऐतिहासिक कहानी के बारे में जानें।
क्या थी महामारी और कैसी फैली थी?
पहाड़ी चूहे जैसा एक जानवर मार्मट होता है, जिसके शिकार की उस ज़माने में बड़ी कीमत थी। विदेशी लोग बंजारों से इस जीव का शिकार करवाया करते थे। शिकारी बंजारे हालांकि बीमार मार्मटों का मांस खाने से बचते थे, लेकिन बीमार मार्मट के बिलों से दूरी बनाने का खयाल उन्हें नहीं आया। इन्हीं मार्मटों के कारण एक संक्रमण फैला, जिसे बाद में ग्रेट मन्चूरियन प्लेग के नाम से जाना गया।इस महामारी का भूगोल जानें
इतिहास की कहानी से पहले उस समय की चीन और इस महामारी के भूगोल को समझना ज़रूरी है। आज के उत्तर पूर्व चीन के मंचूरिया हिस्से में यह महामारी फैली थी, जो मंगोलिया की सीमा से जुड़ा था। सबसे ज़्यादा चपेट में हार्बिन शहर, जिसे अब हिलॉंगजियांग क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। उस समय हार्बिन अंतर्राष्ट्रीय शहर था, जहां रूसी, जापानी, यूरोपीय और अमेरिकी रहते थे। अस्ल में, उस समय पूर्वी चीन का रेलवे रूस के हाथ में था और डालियान का बंदरगाह जापानियों के हाथ में था। कारोबार के चलते अमेरिकी और यूरोपीय देशों के कई लोग यहां रहते थे। इसलिए जब यहां महामारी फैली तो पूरा खतरा था कि यह दुनिया भर में फैल सकती थी।कितनी खतरनाक थी महामारी?
साल 1910 के आखिरी महीनों में फैलने वाली यह संक्रामक महामारी 1911 तक मंचूरिया क्षेत्र में कहर ढाती रही और शुरूआत में इस बीमारी के चलते मृत्यु दर 100 फीसदी तक थी। लाशें सामूहिक दफन किए जाने के निर्देश दिए जा चुके थे। महामारी के शुरूआती दौर में 5 से 10 तक के क्वारैण्टीन के बाद व्यक्ति के ठीक होने पर उसे एक रिस्टबैंड की अनिवार्यता के साथ छोड़ा जाता था और उसे प्लेग मुक्त माना जाता था।
प्लेग से निपटने की चुनौतियां कैसे हुईं पार?उस समय न विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्था थी और न ही इस किस्म का और कोई संगठन। चीनी मूल के एक डॉक्टर वू लीन तेह उस समय महामारी को रोकने के लिए तमाम रोकथाम के उपाय कर रहे थे। तेह ने पोस्टमॉर्टम के ज़रिये पता लगाया कि यह बीमारी न्यूमॉनिक प्लेग थी, न कि ब्यूबॉनिक। यानी इसमें फेफड़े प्रभावित थे लिम्फ नहीं। फिर, लॉकडाउन, मास्क की अनिवार्यता और यात्राओं पर प्रतिबंध जैसे कदम तेह के कहने पर ही उठाए गए जबकि चीनी नववर्ष करीब था, ऐसे में यात्रा प्रतिबंधित करना बड़ा कदम था।कैसे कम हो सके मामले?तेह के निर्देशों के बावजूद पूर्वी चीनी रेल और डालियान पोर्ट का संचालन जारी था इसलिए मामलों की रफ्तार कम नहीं हो पा रही थी। पूरे चीन से विशेषज्ञों की मदद लिये जाने के बावजूद महामारी पैर पसारती जा रही थी और हार्बिन के अलावा शेनयांग जैसे दूसरे इलाकों में भी मामले शुरू हो चुके थे। मंचूरिया में भले ही महामारी पर काबू नहीं हो सका लेकिन तेह ने जनवरी 1911 के अंत में हार्बिन को महामारी से तकरीबन मुक्त बताया था।सबसे कारगर क्या रहा? इमरजेंसी क्वारैण्टीन और पूर्ण यात्रा प्रतिबंध के कारण ही यह महामारी चीन से बाहर नहीं फैल सकी। इसके साथ ही तेह का समय पर न्यूमॉनिक प्लेग पहचान लेना और मास्क पहनना अनिवार्य करना भी बड़े कारण रहे। साथ ही, तेज़ी से प्लेग अस्पताल बनाकर वहां संक्रमितों को आइसोलेशन में रखा जाना भी कारगर कदम साबित हुआ।
फिर हुआ शेनयांग का ऐतिहासिक सम्मेलन
महामारी के वास्तविक कारणों और रोकथाम के बारे में जानने के लिए दुनिया भर के वॉयरोलॉजी, बैक्टीरियोलॉजी और महामारी विशेषज्ञों के साथ शोधकर्ताओं के एक सम्मेलन की योजना बनी। उस समय चीन जाना खतरे से खाली नहीं था फिर भी, जापान, अमेरिका, फ्रांस, यूके, इटली, जर्मनी, मेक्सिको और नीदरलैंड्स जैसे कई देशों ने अपने विशेषज्ञों को समाधान के लिए चीन भेजा। इस सम्मेलन को ऐतिहासिक माना गया क्योंकि इससे कई बातें सामने आईं।1। खराब विज्ञान और गॉसिप को खत्म करने पर विचार हुआ।2। बैक्टीरिया की वैज्ञानिक जड़ खोजने पर विमर्श हुआ।3। कफ के ज़रिये संक्रमण फैलने पर चर्चा के साथ ही संक्रमण फैलने की भ्रामक थ्योरियों पर चर्चा हुई।4। जिन मरीज़ों में लक्षण नहीं दिखते यानी asymptomatic पेशेंट और संक्रमण के सुपर स्प्रेडर्स जैसे आधुनिक समझे जाने वाले कॉंसेप्टों पर भी चर्चा हुई थी।इस महामारी के बाद बदली सोच
चीन की इस महामारी और शेनयांग सम्मलेन ने दुनिया की सोच बदलने का काम किया। पूरी दुनिया राजनीति से उठकर मानवता के पक्ष में दिखी। पहले विश्वयुद्ध के बाद पेरिस शांति समझौते के चलते राष्ट्र लीग बनी जिसने वैश्विक हेल्थ ब्यूरो बनाया। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूएन ने इसी संस्था को विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वरूप में मान्यता दी थी।कुल मिलाकर, 1911 की दुनिया में सहयोग की भावना थी इसलिए दुनिया के वैज्ञानिक राजनीतिक संदेहों के बावजूद चीन की मदद के लिए तत्पर थे। सीएनएन की रिपोर्ट पर आधारित इस कहानी का सार सीएनएन के शब्दों में इस तरह है :
'शायद कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के बाद किसी न किसी रूप में यही ज़रूरी होगा : राजनीति चाहे न चाहे, दुनिया भर के वैज्ञानिकों को एक मंच पर आना होगा और कोविड 19 के बारे में विस्तार से विमर्श और विचार साझा करने होंगे।'
इतिहास के पन्नों (History) से यह कहानी कोरोना वायरस (Corona Virus) के संक्रमण से बने वर्तमान हालात और चुनौतियों को समझने के रास्ते खोलने का माद्दा रखती है। आज की दुनिया पूरी तरह से ध्रुवीकरण (Polarisation) की शिकार दिख रही है और सिर्फ अमेरिका और चीन (US and China) ही नहीं बल्कि कई देश गुटों में उलझकर एक दूसरे पर निशाना साधने में लगे हैं, वहीं 1911 में चीन की मदद के लिए अमेरिका, जापान, रूस और यूरोपीय देश सभी दोस्त बनकर आए थे और एक महामारी पर मानवीय एकता (Humanity) की भावना ने जीत हासिल की थी। आइए उस ऐतिहासिक कहानी के बारे में जानें।
क्या थी महामारी और कैसी फैली थी?
पहाड़ी चूहे जैसा एक जानवर मार्मट होता है, जिसके शिकार की उस ज़माने में बड़ी कीमत थी। विदेशी लोग बंजारों से इस जीव का शिकार करवाया करते थे। शिकारी बंजारे हालांकि बीमार मार्मटों का मांस खाने से बचते थे, लेकिन बीमार मार्मट के बिलों से दूरी बनाने का खयाल उन्हें नहीं आया। इन्हीं मार्मटों के कारण एक संक्रमण फैला, जिसे बाद में ग्रेट मन्चूरियन प्लेग के नाम से जाना गया।इस महामारी का भूगोल जानें
इतिहास की कहानी से पहले उस समय की चीन और इस महामारी के भूगोल को समझना ज़रूरी है। आज के उत्तर पूर्व चीन के मंचूरिया हिस्से में यह महामारी फैली थी, जो मंगोलिया की सीमा से जुड़ा था। सबसे ज़्यादा चपेट में हार्बिन शहर, जिसे अब हिलॉंगजियांग क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। उस समय हार्बिन अंतर्राष्ट्रीय शहर था, जहां रूसी, जापानी, यूरोपीय और अमेरिकी रहते थे। अस्ल में, उस समय पूर्वी चीन का रेलवे रूस के हाथ में था और डालियान का बंदरगाह जापानियों के हाथ में था। कारोबार के चलते अमेरिकी और यूरोपीय देशों के कई लोग यहां रहते थे। इसलिए जब यहां महामारी फैली तो पूरा खतरा था कि यह दुनिया भर में फैल सकती थी।कितनी खतरनाक थी महामारी?
साल 1910 के आखिरी महीनों में फैलने वाली यह संक्रामक महामारी 1911 तक मंचूरिया क्षेत्र में कहर ढाती रही और शुरूआत में इस बीमारी के चलते मृत्यु दर 100 फीसदी तक थी। लाशें सामूहिक दफन किए जाने के निर्देश दिए जा चुके थे। महामारी के शुरूआती दौर में 5 से 10 तक के क्वारैण्टीन के बाद व्यक्ति के ठीक होने पर उसे एक रिस्टबैंड की अनिवार्यता के साथ छोड़ा जाता था और उसे प्लेग मुक्त माना जाता था।
प्लेग से निपटने की चुनौतियां कैसे हुईं पार?उस समय न विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्था थी और न ही इस किस्म का और कोई संगठन। चीनी मूल के एक डॉक्टर वू लीन तेह उस समय महामारी को रोकने के लिए तमाम रोकथाम के उपाय कर रहे थे। तेह ने पोस्टमॉर्टम के ज़रिये पता लगाया कि यह बीमारी न्यूमॉनिक प्लेग थी, न कि ब्यूबॉनिक। यानी इसमें फेफड़े प्रभावित थे लिम्फ नहीं। फिर, लॉकडाउन, मास्क की अनिवार्यता और यात्राओं पर प्रतिबंध जैसे कदम तेह के कहने पर ही उठाए गए जबकि चीनी नववर्ष करीब था, ऐसे में यात्रा प्रतिबंधित करना बड़ा कदम था।कैसे कम हो सके मामले?तेह के निर्देशों के बावजूद पूर्वी चीनी रेल और डालियान पोर्ट का संचालन जारी था इसलिए मामलों की रफ्तार कम नहीं हो पा रही थी। पूरे चीन से विशेषज्ञों की मदद लिये जाने के बावजूद महामारी पैर पसारती जा रही थी और हार्बिन के अलावा शेनयांग जैसे दूसरे इलाकों में भी मामले शुरू हो चुके थे। मंचूरिया में भले ही महामारी पर काबू नहीं हो सका लेकिन तेह ने जनवरी 1911 के अंत में हार्बिन को महामारी से तकरीबन मुक्त बताया था।सबसे कारगर क्या रहा? इमरजेंसी क्वारैण्टीन और पूर्ण यात्रा प्रतिबंध के कारण ही यह महामारी चीन से बाहर नहीं फैल सकी। इसके साथ ही तेह का समय पर न्यूमॉनिक प्लेग पहचान लेना और मास्क पहनना अनिवार्य करना भी बड़े कारण रहे। साथ ही, तेज़ी से प्लेग अस्पताल बनाकर वहां संक्रमितों को आइसोलेशन में रखा जाना भी कारगर कदम साबित हुआ।
फिर हुआ शेनयांग का ऐतिहासिक सम्मेलन
महामारी के वास्तविक कारणों और रोकथाम के बारे में जानने के लिए दुनिया भर के वॉयरोलॉजी, बैक्टीरियोलॉजी और महामारी विशेषज्ञों के साथ शोधकर्ताओं के एक सम्मेलन की योजना बनी। उस समय चीन जाना खतरे से खाली नहीं था फिर भी, जापान, अमेरिका, फ्रांस, यूके, इटली, जर्मनी, मेक्सिको और नीदरलैंड्स जैसे कई देशों ने अपने विशेषज्ञों को समाधान के लिए चीन भेजा। इस सम्मेलन को ऐतिहासिक माना गया क्योंकि इससे कई बातें सामने आईं।1। खराब विज्ञान और गॉसिप को खत्म करने पर विचार हुआ।2। बैक्टीरिया की वैज्ञानिक जड़ खोजने पर विमर्श हुआ।3। कफ के ज़रिये संक्रमण फैलने पर चर्चा के साथ ही संक्रमण फैलने की भ्रामक थ्योरियों पर चर्चा हुई।4। जिन मरीज़ों में लक्षण नहीं दिखते यानी asymptomatic पेशेंट और संक्रमण के सुपर स्प्रेडर्स जैसे आधुनिक समझे जाने वाले कॉंसेप्टों पर भी चर्चा हुई थी।इस महामारी के बाद बदली सोच
चीन की इस महामारी और शेनयांग सम्मलेन ने दुनिया की सोच बदलने का काम किया। पूरी दुनिया राजनीति से उठकर मानवता के पक्ष में दिखी। पहले विश्वयुद्ध के बाद पेरिस शांति समझौते के चलते राष्ट्र लीग बनी जिसने वैश्विक हेल्थ ब्यूरो बनाया। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूएन ने इसी संस्था को विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वरूप में मान्यता दी थी।कुल मिलाकर, 1911 की दुनिया में सहयोग की भावना थी इसलिए दुनिया के वैज्ञानिक राजनीतिक संदेहों के बावजूद चीन की मदद के लिए तत्पर थे। सीएनएन की रिपोर्ट पर आधारित इस कहानी का सार सीएनएन के शब्दों में इस तरह है :
'शायद कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के बाद किसी न किसी रूप में यही ज़रूरी होगा : राजनीति चाहे न चाहे, दुनिया भर के वैज्ञानिकों को एक मंच पर आना होगा और कोविड 19 के बारे में विस्तार से विमर्श और विचार साझा करने होंगे।'