देश / सिर्फ इंसान को नहीं सता रही बीमारी, समंदर के नीचे भी फैली है एक 'महामारी'

धरती के ऊपर कोरोना वायरस महामारी से इंसान परेशान है, वहीं एक महामारी समुद्र के नीचे भी फैली हुई है। समुद्र और उसके वातावरण पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों की माने तो 50 साल में पहली बार समुद्र के अंदर इतनी बड़ी महामारी देखने को मिली है। समुद्री जीवों का अध्ययन करने वाले एक वैज्ञानिक ने तो इसकी तुलना इबोला से कर डाली है

AajTak : Apr 20, 2020, 02:13 PM
दिल्ली: धरती के ऊपर कोरोना वायरस महामारी से इंसान परेशान है, वहीं एक महामारी समुद्र के नीचे भी फैली हुई है। समुद्र और उसके वातावरण पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों की माने तो 50 साल में पहली बार समुद्र के अंदर इतनी बड़ी महामारी देखने को मिली है। समुद्री जीवों का अध्ययन करने वाले एक वैज्ञानिक ने तो इसकी तुलना इबोला से कर डाली है।

इस बीमारी की चपेट में जो जीव है जो समुद्र के अंदर के जीवन चक्र का आधार माना जाता है। इस जीव का नाम है कोरल रीफ। जिस बीमारी की जकड़ में कोरल रीफ आए हैं- उसका नाम है स्टोनी कोरल टिश्यू लॉस डिजीस (Stony Coral Tissue Loss Disease - SCTLD)। 

अमेरिका के वर्जिन आइलैंड्स के सेंट थॉमस तट के नीचे मौजूद कोरल रीफ SCTLD बीमारी से सबसे ज्यादा ग्रसित हैं। यह बीमारी बेहद तेजी से फैल रही है। वैज्ञानिक इसके फैलने की गति से परेशान हैं। इसकी वजह से करीब 22 प्रजातियों के कोरल रीफ चपेट में आ गए हैं। ऐसा मंजर 50 साल पहले देखने को मिला था।

1970 के दशक में व्हाइट बैंड बीमारी की वजह से समुद्र के अंदर मौजूद कोरल रीफ की दो प्रजातियां खत्म हो गई थी। लेकिन इस बार SCTLD ने कोरल रीफ की 22 प्रजातियों को अपनी चपेट में ले रखा है। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि वैज्ञानिकों के पास इस बीमारी को रोकने का कोई तरीका नहीं है।

2014 में वर्जिन आइलैंड्स पर कुछ गोताखोरों ने कोरल रीफ में ये बीमारी देखी। उसके बाद से ये बीमारी अमेरिका के मायामी से फ्लोरिडा तक के तटों के नीचे मौजूद कोरल रीफ को चपेट में लेता चला गया। 2017 तक अमेरिका के मायामी से ऊत्तर करीब 150 किलोमीटर और दक्षिण में 250 किलोमीटर दूर स्थित की-वेस्ट द्वीप तक फैल गई यह बीमारी।

SCTLD बीमारी का शुरुआती लक्षण ये है कि कोरल रीफ के ऊपर सफेद रंग के धब्बे दिखने लगते हैं। धीमे-धीमे ये पूरे कोरल रीफ पर फैल जाते हैं। इसके बाद कोरल रीफ का रंग बदलने लगता है और उसके जीवन का अंत होने लगता है।

'फ्लोरिडा के तटों के नीचे मौजूद आधे कोरल रीफ और कैरेबियन सागर में मौजूद करीब एक तिहाई कोरल रीफ स्टोनी कोरल टिश्यू डिजीस यानी SCTLD की चपेट में आ चुके हैं। इसकी वजह से करीब 400 किलोमीटर की दूरी में फैले अमेरिकी तटों के नीचे कोरल रीफ खतरे में हैं।

फ्लोरिडा फिश एंड वाइल्डलाइफ कमिशन की माने तो क्लाइमेट चेंज की वजह से फ्लोरिडा अपर कीज के समुद्र में 40 फीसदी कोरल रीफ खत्म हो चुके हैं। लेकिन अब इस बीमारी को रोक पाना और मुश्किल लग रहा है। क्योंकि इसका कोई इलाज पांच साल में नहीं खोजा जा सका है

यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जिन आइलैंड्स की रिसर्चर मैरिलिन ब्रैंड ने कहा कि यह इबोला की तरह फैल रहा है और हमारे पास इसका कोई इलाज नहीं है। SCTLD ने अब तक 22 प्रजातियों के कोरल रीफ को अपनी चपेट में लिया है। यह एक तरह का कोरल ब्लीचिंग ही है लेकिन सामान्य कोरल ब्लीचिंग से कहीं ज्यादा खतरनाक।

कोरल रीफ सैकड़ों सालों में विकसित होती हैं। ये एक प्रकार की एल्गी के साथ मिलकर लाइमस्टोन स्केलेटन बनाती है। जो कई प्रकार के समुद्री जीवों के लिए निवास या प्रजनन का केंद्र बनता है। लेकिन अगर ये कोरल रीफ खत्म हो गए तो समुद्र का जीवन चक्र खत्म हो जाएगा।

कोरल रीफ की ब्लीचिंग होने का मतलब उनका रंग गायब हो जाना। सफेद हो जाना और समय से पहले सख्त होकर टूट जाना। जबकि SCTLD में यह प्रक्रिया और तेज हो रही है। कोरल रीफ की पूरी कॉलोनी इससे नष्ट हो रही है। SCTLD पूरे कोरल रीफ को खा जा रहा है।

कोरल रीफ पूरी धरती के एक फीसदी हिस्से में हैं। ये समुद्री जीवन चक्र का मुख्य स्तंभ हैं। ये ऐसे जीव हैं जो हर प्रकार की प्रजातियों के जीवों का स्वागत करते हैं। इसी वजह से वैज्ञानिक और गोताखोर इन्हें देखने समुद्र के नीचे जाते रहते हैं। 

यूएस जियोलॉजिकल सर्वे रिपोर्ट 2019 के अनुसार कोरल रीफ हर साल अमेरिका में बाढ़ और सुनामी आने से बचाते हैं। इन कोरल रीफ की वजह से हर साल अमेरिका के 1।8 बिलियन डॉलर यानी करीब 13,794 करोड़ रुपए बचते हैं। इनकी वजह से अमेरिका में हर साल करीब 18 हजार लोग बाढ़ और सुनामी जैसी आपदाओं में मरने से बच जाते हैं।