देश / लद्दाख के इस गांव में हर घर में है सैनिक, वर्षों से चली आ रही परंपरा

AajTak : Jul 02, 2020, 08:49 AM
लद्दाख के 63 घरों के एक छोटे से गांव के ज्यादातर लोग भारतीय सेना से जुड़े हुए हैं। हर घर से जो कम उम्र के लोग हैं, वे भारतीय सेना के सदस्य हैं। जिनकी पोस्टिंग लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के समीपवर्ती इलाकों में हुई है।

पीढ़ियों से चुशोत गांव के लोग सेना को सेवाएं देते रहे हैं। यहां के लोग लद्दाख स्काउट, इन्फ्रेंट्री रेजीमेंट का हिस्सा भी हैं। कोमल, विनम्र लेकिन खतरनाक योद्धा युवकों ने पुरानी परंपरा को जारी रखा है। इस गांव के ज्यादातर लोग आर्मी को अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

गांव में महिलाएं ज्यादा दिखती हैं, कुछ छोटे बच्चे भी नजर आते हैं। इस गांव में सेना में शामिल हुए लोग रहते हैं। जारा बानो की उम्र 34 वर्ष है। उनके पति अपनी ड्यूटी निभाने के दौरान शहीद हो चुके हैं। उनके तीन भाई हैं जो सेना में हैं।

उनका कहना है, 'मेरे दो बेटे हैं, जो शायद भारतीय सेना में शामिल हों। लड़कों के लिए यहां यही नियम जैसा है।'

पैंगोंग को लेकर तनाव जारी, भारत-चीन ने लद्दाख में चारों मोर्चों पर बढ़ाई सैनिकों की तैनातीजारा बानो अपनी दोनों बच्चियों के करियर के प्रति स्पष्टता से नहीं सोच पा रही हैं। उन्होंने कहा, 'मेरी दोनों बेटियां को भी अच्छी शिक्षा की जरूरत है। हमारे पास यहां अच्छे स्कूल नहीं हैं। मैं उनके भविष्य के बारे में निश्चित नहीं हूं।'


नहीं हैं बेहतर स्कूल

अन्य ग्रामीणों की भी यही चिंता है। शिक्षा का अभाव यहां लोगों को पीछे खींच रहा है। महिला और पुरुष दोनों की चिंताएं शिक्षा को लेकर यहां एक सी हैं। हजिरा बानो के पास तीन भाई हैं। सभी लद्दाख स्काउट का हिस्सा हैं। सभी की तैनाती एलएसी के पास पूर्वी लद्दाख में हुई है।

उन्होंने कहा, 'हमें नहीं पता कि वे कैसे हैं। फोन नेटवर्क यहां डाउन है। मौजूदा हालात को देखते हुए उन्हें फोन इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है।'

27 साल की रुकैया बानो ग्रेजुएशन करने गई थीं लेकिन उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। वह फिलाहल नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन में काम करती हैं। सरकार के इस मिशन के जरिए महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है।

हाई स्कलू से ज्यादा नहीं पढ़ पा रही हैं लड़कियां

उनका कहना है कि यहां ज्यादातर लड़कियां हाई स्कूल से ज्यादा नहीं पढ़ती हैं। यहां लड़के 12वीं तक पढ़ते हैं, जिससे वे भारतीय सेना में शामिल हो सकें। जहां यहां रहने वाली कम उम्र की महिलाएं आगे बढ़कर बात करती हैं, वहीं बुजुर्ग महिलाएं अपने बच्चों की बात करने में झिझकती हैं।

सेना में शामिल होने वाले यहां के जांबाज लोगों को अगर अच्छी शिक्षा मिली तो ये सैन्य अधिकारी के तौर पर उभर सकते हैं।

अच्छी शिक्षा की कमी से जूझ रहे हैं लोग

1971 में हुए भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के हीरो गुलाम मोहम्मद के दो बेटे हैं। वे चाहते हैं कि अगर यहां अच्छी शिक्षा मिले तो वे भी सैन्य अधिकारी हो सकते हैं। रिटायर्ड हवलदार गुलाम मोहम्मद ने कहा, 'हमारे पास यहां अच्छी शिक्षा की कमी है। मैं चाहता हूं कि हमारी अगली पीढ़ी सेना में अधिकारी बने।'

गुलाम मोहम्मद का एक बेटा गलवान घाटी के पास तैनात है, वहीं दूसरा बेटा दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर के पास चीन से जारी तनाव के बीच तैनात है।

इस गांव के महिला और पुरुषों का संयुक्त रूप से मानना है कि अच्छी शिक्षा मिले तो यहां के लोगों का भविष्य बेहतर हो सकता है।

यहां मौजूद ज्यादातर महिलाओं का कहना है कि वे भी सेना में शामिल होना चाहती हैं लेकिन महिलाओं को रणक्षेत्र में उतारने के लिए अवसर नहीं दिया जाता। अगर उनके पास अच्छी शिक्षा हो तो वे अधिकारी बन सकती हैं, साथ ही बेहतर अवसर मिले तो दूसरे क्षेत्रों में भी जा सकती हैं।


SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER