AMAR UJALA : Apr 10, 2020, 06:16 PM
कोरोना वायरस भारत में अब तेजी से पैर पसारने लगा है। भारत में कोरोना से संक्रमितों की संख्या 6,000 के आंकड़े को पार कर चुकी है, वहीं पूरी दुनिया में इस वक्त 1,453,804 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। कोरोना की वैक्सीन को लेकर पूरी दुनिया में रिसर्च चल रही है। हजारों वैज्ञानिक कोरोना की वैक्सीन बनाने में लगे हैं।
आमतौर किसी वैक्सीन को बनाने में दो से पांच साल का वक्त लगता है। इसके बाद वैक्सीन इस्तेमाल करने से पहले सर्टिफिकेशन के लिए छह चरणों में टेस्ट किया जाता है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक ये छह चरण एक्सप्लोरेट्री, प्री-क्लिनिकल, क्लिनिकल डेवलपमेंट और इसके बाद के तीन चरण में मानव पर वैक्सीन का परीक्षण किया जाता है।एक्सप्लोरेट्री- इस चरण में वायरस के कमजोर कड़ी की पहचान की जाती है।प्री-क्लिनिकल- किसी वैक्सीन की टेस्टिंग का यह दूसरा चरण होता है। इसमें जानवरों पर वैक्सीन का परीक्षण होता है। परीक्षण के दौरान जानवरों में वायरस (एंटीजन) को डाला जाता है और फिर देखा जाता है कि जानवर का शरीर एंटीबॉडी उत्पन्न करता है या नहीं।क्लिनिकल डेवलपमेंट- यह चरण तभी शुरू किया जाता है जब दूसरे चरण में जानवर पर परीक्षण सफल होता है। तीसरे चरण में ही वैक्सीन के सैंपल को अमेरिका में एफडीआई और भारत में डीसीजीआई जैसी संस्थाएं टेस्ट करती हैं। तीसरे चरण में परीक्षण की शुरुआत कम-से-कम 100 लोगों पर होती है और इसी चरण में सबसे अधिक समय लगता है, क्योंकि इस दौरान यह भी देखना होता है कि वैक्सीन को कोई प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है। तीसरे चरण में सालों-साल लग जाते हैं।क्लिनिकली ट्रायल के बाद जब किसी इंसान में वैक्सीन का प्रतिकूल प्रभाव नजर नहीं आता है तब वैक्सीन को सर्टिफाइड किया जाता है और इसके बाद उत्पादन और गुणवत्ता पर काम शुरू होता है। इस चरण को चौथा चरण भी कहा जाता है।कोरोना वायरस के मामले में वैक्सीन को लेकर काफी तेजी से काम चल रहा है और खास बात यह है कि कोविद -19 की वैक्सीन को लेकर पूरी दुनिया में रिसर्च चल रही है। चीन ने जनवरी में SARS-Cov-2 के आरएनए अनुक्रम को दुनिया के साझा किया था।
फिलहाल कोरोना की वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल में है जिसका परीक्षण अमेरिका में मॉडर्न थैरेप्यूटिक्स की देखरेख में हो रहा है। कोरोना की वैक्सीन इसलिए भी जल्दी तैयार हो सकती है क्योंकि इसके 80-90 फीसदी आनुवंशिक कोड सार्स से मेल खाते हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि कोरोना की वैक्सीन 12-18 महीने में तैयार हो जाएगी।
आमतौर किसी वैक्सीन को बनाने में दो से पांच साल का वक्त लगता है। इसके बाद वैक्सीन इस्तेमाल करने से पहले सर्टिफिकेशन के लिए छह चरणों में टेस्ट किया जाता है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक ये छह चरण एक्सप्लोरेट्री, प्री-क्लिनिकल, क्लिनिकल डेवलपमेंट और इसके बाद के तीन चरण में मानव पर वैक्सीन का परीक्षण किया जाता है।एक्सप्लोरेट्री- इस चरण में वायरस के कमजोर कड़ी की पहचान की जाती है।प्री-क्लिनिकल- किसी वैक्सीन की टेस्टिंग का यह दूसरा चरण होता है। इसमें जानवरों पर वैक्सीन का परीक्षण होता है। परीक्षण के दौरान जानवरों में वायरस (एंटीजन) को डाला जाता है और फिर देखा जाता है कि जानवर का शरीर एंटीबॉडी उत्पन्न करता है या नहीं।क्लिनिकल डेवलपमेंट- यह चरण तभी शुरू किया जाता है जब दूसरे चरण में जानवर पर परीक्षण सफल होता है। तीसरे चरण में ही वैक्सीन के सैंपल को अमेरिका में एफडीआई और भारत में डीसीजीआई जैसी संस्थाएं टेस्ट करती हैं। तीसरे चरण में परीक्षण की शुरुआत कम-से-कम 100 लोगों पर होती है और इसी चरण में सबसे अधिक समय लगता है, क्योंकि इस दौरान यह भी देखना होता है कि वैक्सीन को कोई प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है। तीसरे चरण में सालों-साल लग जाते हैं।क्लिनिकली ट्रायल के बाद जब किसी इंसान में वैक्सीन का प्रतिकूल प्रभाव नजर नहीं आता है तब वैक्सीन को सर्टिफाइड किया जाता है और इसके बाद उत्पादन और गुणवत्ता पर काम शुरू होता है। इस चरण को चौथा चरण भी कहा जाता है।कोरोना वायरस के मामले में वैक्सीन को लेकर काफी तेजी से काम चल रहा है और खास बात यह है कि कोविद -19 की वैक्सीन को लेकर पूरी दुनिया में रिसर्च चल रही है। चीन ने जनवरी में SARS-Cov-2 के आरएनए अनुक्रम को दुनिया के साझा किया था।
फिलहाल कोरोना की वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल में है जिसका परीक्षण अमेरिका में मॉडर्न थैरेप्यूटिक्स की देखरेख में हो रहा है। कोरोना की वैक्सीन इसलिए भी जल्दी तैयार हो सकती है क्योंकि इसके 80-90 फीसदी आनुवंशिक कोड सार्स से मेल खाते हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि कोरोना की वैक्सीन 12-18 महीने में तैयार हो जाएगी।