Coronavirus / कोरोना के कारण बच्चों पर पड़ रहे बुरे असर को कम करेंगे ये उपाय

Zoom News : Jun 07, 2021, 01:12 PM
Coronavirus: लंबे वक्त से कोरोनाकाल में जी रहे छोटे बच्चों के बचपन के अनुभव हम और आपके बचपन से कई मायनों में अलग हैं। हमारे बच्चे पिछली एक शताब्दी के सबसे भयावह दौर में बड़े हो रहे हैं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के सेंटर ऑन द डेवलपिंग चाइल्ड के मुताबिक, शुरूआती बचपन में बाहर की दुनिया से बिल्कुल कट चुके इन बच्चों के अनुभव उनके भविष्य के व्यक्तित्व व मानसिक सेहत पर असर डाल सकते हैं। आइए जानते हैं कि कोरोना महामारी के कारण बच्चों के मन पर पड़ रहे बुरे असर से उन्हें किस तरह बचाया जा सकता है। 

बच्चों को संवाद सिखाएं 

जब आपके बच्चे ठीक ढंग से बोलना और चलना भी नहीं सीख पाए हों, उस उम्र में उन्हें इस तरह का संवाद सिखाए जिसमें उन्हें पता रहे कि अगर वे मुस्कुराएंगे तो उन्हें दूसरों से वापसी में मुस्कुराहट ही मिलेगी। हार्वर्ड विवि के विशेषज्ञ इसे‘सर्व एंड रिटर्न’का सिद्धांत कहते हैं। जिसमें बच्चे के चेहरे पर जो भाव आते हैं, उसकी देखभाल करने वाला वयस्क भी ठीक उन्हीं भाव के हिसाब से उससे हावभाव अथवा आवाजों के जरिए संवाद करता है। आज के चुनौतीपूर्ण समय में इस तरह के संवाद की सबसे ज्यादा जरूरत है जो आपके बच्चे को भविष्य की चुनौतियों से निपटने लायक बनाएगा। 

सबसे जुड़ना सिखाएं 

संक्रमण से बचाव के लिए शारीरिक दूरी बनाना बेहद जरूरी है लेकिन इस वजह से हमारे बच्चे सीखने की उम्र में सबसे दूर होते जा रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए अपने बच्चों की फोन पर उनके दादा-दादी, नाना-नानी से बातचीत कराते रहें, वीडियो कॉल कराकर उन्हें नजदीकी का अहसास कराएं। इस तरह जब बच्चे बड़े होंगे तो उन्हें रिश्तेदारों की अहमियत का पता रहेगा, वे स्वकेंद्रित व्यक्तित्व वाले नहीं बनेंगे। बच्चों को गेट के बाहर ले जाकर पड़ोसियों और रास्ते से गुजरते लोगों से हेलो करवाने जैसे तरीके भी कारगर हो सकते हैं। पर ध्यान रहे कि बच्चों को दूर ही रखा जाए। 

दर्दनाक घटनाओं का बच्चों पर गहरा असर 

वैज्ञानिकों का कहना है कि भावनात्मक अनुभवों और दर्दनाक घटनाओं पर वयस्कों की तुलना में बच्चों की प्रतिक्रिया बहुत अलग होती है। घर या आसपास के माहौल में होने वाली ऐसी घटनाओं के कारण बच्चे अवसाद और विकारों के शिकार हो सकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि इन समस्याओं को हल्के में न लिया जाए और समय रहते डॉक्टरी सलाह ली जाए। 

वयस्कों की तरह बच्चों में भी अवसाद संभव

ब्रिटेन की जानी मानी हेल्थ बेवसाइट एनएचएस च्वाइस के मुताबिक, 19 साल के होने से पहले हर चार में से एक बच्चे को डिप्रेशन होता है। यानी अवसाद होना वयस्कों में जितना सामान्य है, उतना ही बच्चों में भी। इस बेवसाइट के अनुसार, बच्चों में जितनी जल्द डिप्रेशन का पता चल जाए उतना बेहतर होता है। अगर लंबा खिंचता है तो इससे उबरने मे ज्यादा वक़्त लगता है। 

बच्चों में अवसाद के लक्षण-

-लोगों के बीच जाने से बचने की कोशिश करना। 

-दोस्त न बना पाना। 

-खाना नहीं खाना। 

-हमेशा मायूस रहना। 

-हर बात के लिए इनकार करना। 

-पैनिक अटैक आना और चिड़चिड़ापन।

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