News18 : Apr 23, 2020, 03:33 PM
कोरोना वायरस (Coronavirus) पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेकर हर तरफ और हर तरह की तबाही मचा रहा है। सबसे ताकतवर समझे जाने वाले अमेरिका (US) और यूरोपीय देश (Europe) भी कोरोना संकट के सामने घुटने टेक चुके हैं। दुनिया का सबसे ताकतवर देश होने का दंभ भरने वाले अमेरिका की इस समय सबसे बुरी हालत है। ऐसे में वह अन्य देशों की मदद के बजाय पहले खुद मुसीबत से निकलने की जद्दोजह करता नजर आ रहा है।
इस सब के बीच चीन (China) पूरी दुनिया पर हावी होता नजर आ रहा है। दरअसल, हर देश संक्रमण से निपटने में बीजिंग की मदद चाहता है। चीन भी मुसीबत में फंसे देशों की मदद को लगातार आगे आकर महामारी फैलाने को लेकर खुद पर लगे आरोपों को गलत साबित करने की कोशिश कर रहा है। वहीं, उसने दुनिया के सामने ये भी साबित कर दिया है कि वो कोरोना वायरस से निपटने में सक्षम है। आइए 5 प्वाइंट्स में समझते हैं कि कैसे दुनिया कोरोना संकट के दौर में दुनिया पर हावी हो रहा है।।।
सबसे पहले कोरोना वायरस को काबू कर उबरा
चीन के वुहान (Wuhan) शहर से दिसंबर की शुरआत में कोरोना वायरस फैलना शुरू हुआ। इसके बाद जनवरी के मध्य में चीन ने इसके एक से दूसरे व्यक्ति में फैलने की बात स्वीकार की। हालांकि, तब तक काफी देर हो चुकी थी। हजारों की संख्या में लोग संक्रमित हो चुके थे। इसके बाद चीन की सरकार ने सख्त से सख्त फैसले लेकर कोरोना वायरस को फैलने से रोका। फिर ज्यादा से ज्यादा टेस्ट कर संक्रमितों की पहचान की और उन्हें क्वारंटीन और आइसोलेट कर उनका इलाज किया।चीन में संक्रमितों की संख्या बहुत तेजी से 80 के पार पहुंची, लेकिन उसने आक्रामक रणनीति के जरिये मरने वालों की संख्या पर नियंत्रण बनाए रखा। मार्च खत्म होते-होते चीन में संक्रमण पर काफी हद तक काबू पा लिया गया था। इसके बाद अप्रैल की शुरुआत में बाकी देश के बाद वुहान शहर में भी लॉकडाउन को कुछ शर्तों के साथ हटा दिया। हालांकि, वहां अभी भी नए मामले सामने आ रहे हैं, लेकिन इनमें ज्यादातर विदेश से लौटे चीन के लोग हैं। इस तरह चीन ने संक्रमण फैलने की घोषणा के करीब ढाई महीने के भीतर ही इस पर काबू कर दुनिया को दिखाया कि वो कोरोना वायरस से मुकाबला करने में सक्षम है।
मुसीबत में फंसे देशों की मदद को आगे आया
चीन खुद कोरोना वायरस से उबरने के बाद आराम से नहीं बैठा। चीन की सरकार ने कहा कि दुनिया में आखिरी संक्रमित व्यक्ति के ठीक होने तक हम चैन से नहीं बैठेंगे। इसके बाद चीन ने संक्रमण की चपेट में आए इटली, फ्रांस, स्पेन की ओर मदद का हाथ बढाया। उसने कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए यूरोपीय देशों की मदद के लिए मेडिकल उपकरण पहुंचवाए। साथ ही अपने मेडिकल विशेषज्ञों की टीमों को भी इन देशों में भेजा।हालांकि, चीन के कई मेडिकल उपकरणों में तकनीकी खामी की शिकायतें सामने आई और उस पर संक्रमण से मुकाबले के नाम पर धंधा करने और खराब क्वालिटी के उपकरण बेचने का आरोप भी लगा। चीन ने आरोपों को नकारा नहीं, बल्कि खामियों को स्वीकार किया और अच्छी गुणवत्ता के मेडिकल उपकरण बनाने वाली चीनी कंपनियों की सूची बनाकर जारी की। यहां तक कि अमेरिका ने भी हालात बिगडने पर चीन की मदद ली। चीन यहीं नहीं रुका उसने लैटिन अमेरिकी देशों को भी मदद भेजी। वह अमेरिका के सहयोगी देशों की मदद कर उन्हें अपने खेमे में करने की कवायद में जुटा रहा।
अमेरिका के वर्चस्व पर चीन ने किया हमला
चीन ने कोरोना वायरस से मुकाबले में अमेरिका के सहयोगी नाटो देशों की भी मदद की। अमेरिका समेत नाटो में 29 सदस्य देश शामिल हैं। इनमें बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फांस, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, ब्रिटेन शामिल हैं। चीन अब तक इनमें से ज्यादातर देशों की मेडिकल उपकरण और स्वास्थ्य विशेषज्ञ भेजकर मदद कर चुका है। वहीं, इस समय अमेरिका खुद मुसीबत में फंसा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन अमेरिकी नागरिकों को बचाने के लिए ही जूझता हुआ नजर आ रहा है। हालात इतने खराब हैं कि अमेरिका में अब तक 8।49 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से 47 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
ऐसे में अमेरिका किसी भी सहयोगी देश की मदद नहीं कर पा रहा है। अमेरिका के पड़ोसी देशों में चीन ने वेनेजुएला, बोलिविया, इक्वाडोर, अर्जेंटीना और चिली की जमकर मदद की है। यहां तक कि इन देशों ने कोविड-19 पर स्टडी के लिए अपने विशेषज्ञ भी चीन भेजे हैं। यही नहीं, लैटिन अमेरिकी देशों ने चीन से बड़ी खरीदारियां भी की हैं। मेक्सिको ने हाल में चीन को 5।64 करोड़ डॉलर की मेडिकल सप्लाई का ऑर्डर दिया है। इसमें 1।15 करोड़ KN95 मास्क भी शामिल हैं। इस तरह जहां अमेरिका खुद बचाने की जद्दोजहद में उलझा है, वहीं चीन उसके वर्चस्व को खत्म करने का काम कर रहा है। इसके अलावा चीन ने तुर्की की भी मदद की।
यूरोपीय देशों में दारार का चीन को फायदाकोरोना वायरस संकट के बीच यूरोपीय देशों की एकता में भी दरार पड़ती दिख रही है। इटली में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े, तो उसने अपने पड़ोसी देशों से मदद की अपील की। इटली ने उनसे मेडिकल संसाधन उपलब्ध कराने को कहा था, लेकिन उसके दो पड़ोसियों जर्मनी और फ्रांस ने ऐसे उत्पादनों के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। इसके बाद जर्मनी ने सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की मदद के लिए चंदा इकट्ठा कर एक फंड बनाने के प्रस्ताव का भी विरोध कर दिया।जर्मनी के अलावा नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया और फिनलैंड ने भी कोविड-19 प्रभावित देशों की मदद के लिए फंड जुटाने के प्रस्ताव का खुलकर विरोध किया था। इसके उलट इटली, स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम, यूनान, आयरलैंड, पुर्तगाल, स्लोवेनिया और लक्जमबर्ग प्रस्ताव का समर्थन कर रहे थे। चीन ने यूरोपीय देशों के बीच पड़ी दरार का फायदा उठाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जर्मनी के मदद से इनकार के बाद चीन ने इटली को मेडिकल उपकरण और टेस्टिंग किट उपलब्ध कराईं। चीन ने डॉक्टरों का एक दल भी इटली भेजा, जिन्हें वहां हीरोज की तरह देखा जा रहा है। चीन आज अमेरिका के खाली किए कूटनीतिक स्थान को भरने की कोशिश कर रहा है।
अमेरिका फर्स्ट की नीति ने भी की मदद
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सत्ता संभालने के बाद से ही 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति पर चल रहे हैं। वहीं, मौजूदा माहौल में अमेरिका का रवैया किसी के साथ सहयोग का नहीं है। चीन के साथ तनातनी के अलावा, ट्रंप सरकार ने पुराने सहयोगी देश जर्मनी में बनाई जा रही कोरोना वैक्सीन के विशेषाधिकार हासिल करने की कोशिश की। वहीं, मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन हासिल करने के लिए भारत पर भी दबाव बनाने की कोशिश की।वैश्विक महामारी के दौर में अमेरिका का महाशक्ति का तमगा छिनता हुआ दिख रहा है। इसके उलट चीन प्रभावित देशों की मदद को लगातार आगे आकर उसकी खाली की हुई जगह को भरने की कवायद में जुटा है। हालांकि, इस बीच चीन पर कोरोना वायरस को फैलाने और वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के आरोप भी लग रहे हैं। जर्मनी ने चीन को नुकसान की भरपाई के लिए भी कहा है। वहीं, अमेरिका में भी चीन पर वैश्विक महामारी फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए मुकदमा कर दिया गया है। इस बीच चीन दुनिया भर की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी भी बढा रहा है।
इस सब के बीच चीन (China) पूरी दुनिया पर हावी होता नजर आ रहा है। दरअसल, हर देश संक्रमण से निपटने में बीजिंग की मदद चाहता है। चीन भी मुसीबत में फंसे देशों की मदद को लगातार आगे आकर महामारी फैलाने को लेकर खुद पर लगे आरोपों को गलत साबित करने की कोशिश कर रहा है। वहीं, उसने दुनिया के सामने ये भी साबित कर दिया है कि वो कोरोना वायरस से निपटने में सक्षम है। आइए 5 प्वाइंट्स में समझते हैं कि कैसे दुनिया कोरोना संकट के दौर में दुनिया पर हावी हो रहा है।।।
सबसे पहले कोरोना वायरस को काबू कर उबरा
चीन के वुहान (Wuhan) शहर से दिसंबर की शुरआत में कोरोना वायरस फैलना शुरू हुआ। इसके बाद जनवरी के मध्य में चीन ने इसके एक से दूसरे व्यक्ति में फैलने की बात स्वीकार की। हालांकि, तब तक काफी देर हो चुकी थी। हजारों की संख्या में लोग संक्रमित हो चुके थे। इसके बाद चीन की सरकार ने सख्त से सख्त फैसले लेकर कोरोना वायरस को फैलने से रोका। फिर ज्यादा से ज्यादा टेस्ट कर संक्रमितों की पहचान की और उन्हें क्वारंटीन और आइसोलेट कर उनका इलाज किया।चीन में संक्रमितों की संख्या बहुत तेजी से 80 के पार पहुंची, लेकिन उसने आक्रामक रणनीति के जरिये मरने वालों की संख्या पर नियंत्रण बनाए रखा। मार्च खत्म होते-होते चीन में संक्रमण पर काफी हद तक काबू पा लिया गया था। इसके बाद अप्रैल की शुरुआत में बाकी देश के बाद वुहान शहर में भी लॉकडाउन को कुछ शर्तों के साथ हटा दिया। हालांकि, वहां अभी भी नए मामले सामने आ रहे हैं, लेकिन इनमें ज्यादातर विदेश से लौटे चीन के लोग हैं। इस तरह चीन ने संक्रमण फैलने की घोषणा के करीब ढाई महीने के भीतर ही इस पर काबू कर दुनिया को दिखाया कि वो कोरोना वायरस से मुकाबला करने में सक्षम है।
मुसीबत में फंसे देशों की मदद को आगे आया
चीन खुद कोरोना वायरस से उबरने के बाद आराम से नहीं बैठा। चीन की सरकार ने कहा कि दुनिया में आखिरी संक्रमित व्यक्ति के ठीक होने तक हम चैन से नहीं बैठेंगे। इसके बाद चीन ने संक्रमण की चपेट में आए इटली, फ्रांस, स्पेन की ओर मदद का हाथ बढाया। उसने कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए यूरोपीय देशों की मदद के लिए मेडिकल उपकरण पहुंचवाए। साथ ही अपने मेडिकल विशेषज्ञों की टीमों को भी इन देशों में भेजा।हालांकि, चीन के कई मेडिकल उपकरणों में तकनीकी खामी की शिकायतें सामने आई और उस पर संक्रमण से मुकाबले के नाम पर धंधा करने और खराब क्वालिटी के उपकरण बेचने का आरोप भी लगा। चीन ने आरोपों को नकारा नहीं, बल्कि खामियों को स्वीकार किया और अच्छी गुणवत्ता के मेडिकल उपकरण बनाने वाली चीनी कंपनियों की सूची बनाकर जारी की। यहां तक कि अमेरिका ने भी हालात बिगडने पर चीन की मदद ली। चीन यहीं नहीं रुका उसने लैटिन अमेरिकी देशों को भी मदद भेजी। वह अमेरिका के सहयोगी देशों की मदद कर उन्हें अपने खेमे में करने की कवायद में जुटा रहा।
अमेरिका के वर्चस्व पर चीन ने किया हमला
चीन ने कोरोना वायरस से मुकाबले में अमेरिका के सहयोगी नाटो देशों की भी मदद की। अमेरिका समेत नाटो में 29 सदस्य देश शामिल हैं। इनमें बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फांस, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, ब्रिटेन शामिल हैं। चीन अब तक इनमें से ज्यादातर देशों की मेडिकल उपकरण और स्वास्थ्य विशेषज्ञ भेजकर मदद कर चुका है। वहीं, इस समय अमेरिका खुद मुसीबत में फंसा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन अमेरिकी नागरिकों को बचाने के लिए ही जूझता हुआ नजर आ रहा है। हालात इतने खराब हैं कि अमेरिका में अब तक 8।49 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से 47 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
ऐसे में अमेरिका किसी भी सहयोगी देश की मदद नहीं कर पा रहा है। अमेरिका के पड़ोसी देशों में चीन ने वेनेजुएला, बोलिविया, इक्वाडोर, अर्जेंटीना और चिली की जमकर मदद की है। यहां तक कि इन देशों ने कोविड-19 पर स्टडी के लिए अपने विशेषज्ञ भी चीन भेजे हैं। यही नहीं, लैटिन अमेरिकी देशों ने चीन से बड़ी खरीदारियां भी की हैं। मेक्सिको ने हाल में चीन को 5।64 करोड़ डॉलर की मेडिकल सप्लाई का ऑर्डर दिया है। इसमें 1।15 करोड़ KN95 मास्क भी शामिल हैं। इस तरह जहां अमेरिका खुद बचाने की जद्दोजहद में उलझा है, वहीं चीन उसके वर्चस्व को खत्म करने का काम कर रहा है। इसके अलावा चीन ने तुर्की की भी मदद की।
यूरोपीय देशों में दारार का चीन को फायदाकोरोना वायरस संकट के बीच यूरोपीय देशों की एकता में भी दरार पड़ती दिख रही है। इटली में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े, तो उसने अपने पड़ोसी देशों से मदद की अपील की। इटली ने उनसे मेडिकल संसाधन उपलब्ध कराने को कहा था, लेकिन उसके दो पड़ोसियों जर्मनी और फ्रांस ने ऐसे उत्पादनों के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। इसके बाद जर्मनी ने सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की मदद के लिए चंदा इकट्ठा कर एक फंड बनाने के प्रस्ताव का भी विरोध कर दिया।जर्मनी के अलावा नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया और फिनलैंड ने भी कोविड-19 प्रभावित देशों की मदद के लिए फंड जुटाने के प्रस्ताव का खुलकर विरोध किया था। इसके उलट इटली, स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम, यूनान, आयरलैंड, पुर्तगाल, स्लोवेनिया और लक्जमबर्ग प्रस्ताव का समर्थन कर रहे थे। चीन ने यूरोपीय देशों के बीच पड़ी दरार का फायदा उठाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जर्मनी के मदद से इनकार के बाद चीन ने इटली को मेडिकल उपकरण और टेस्टिंग किट उपलब्ध कराईं। चीन ने डॉक्टरों का एक दल भी इटली भेजा, जिन्हें वहां हीरोज की तरह देखा जा रहा है। चीन आज अमेरिका के खाली किए कूटनीतिक स्थान को भरने की कोशिश कर रहा है।
अमेरिका फर्स्ट की नीति ने भी की मदद
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सत्ता संभालने के बाद से ही 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति पर चल रहे हैं। वहीं, मौजूदा माहौल में अमेरिका का रवैया किसी के साथ सहयोग का नहीं है। चीन के साथ तनातनी के अलावा, ट्रंप सरकार ने पुराने सहयोगी देश जर्मनी में बनाई जा रही कोरोना वैक्सीन के विशेषाधिकार हासिल करने की कोशिश की। वहीं, मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन हासिल करने के लिए भारत पर भी दबाव बनाने की कोशिश की।वैश्विक महामारी के दौर में अमेरिका का महाशक्ति का तमगा छिनता हुआ दिख रहा है। इसके उलट चीन प्रभावित देशों की मदद को लगातार आगे आकर उसकी खाली की हुई जगह को भरने की कवायद में जुटा है। हालांकि, इस बीच चीन पर कोरोना वायरस को फैलाने और वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के आरोप भी लग रहे हैं। जर्मनी ने चीन को नुकसान की भरपाई के लिए भी कहा है। वहीं, अमेरिका में भी चीन पर वैश्विक महामारी फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए मुकदमा कर दिया गया है। इस बीच चीन दुनिया भर की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी भी बढा रहा है।