कोरोना अलर्ट / US की स्टडी में खुलासाः हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना के इलाज में कारगर नहीं

पहली बार अमेरिका में आधिकारिक तौर पर यह मान लिया गया है कि मलेरिया की दवाई हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों के इलाज में कारगर नहीं है। यह बात न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रूयू कुओमो ने एक चैनल से गुरुवार शाम कही। न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रूयू कुओमो ने कहा कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन पर बड़े पैमाने पर हुई स्टडी की प्राथमिक रिपोर्ट आ गई है।

AajTak : Apr 24, 2020, 09:31 AM
अमेरिका: पहली बार अमेरिका में आधिकारिक तौर पर यह मान लिया गया है कि मलेरिया की दवाई हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों के इलाज में कारगर नहीं है। यह बात न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रूयू कुओमो ने एक चैनल से गुरुवार शाम कही।

न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रूयू कुओमो ने कहा कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन पर बड़े पैमाने पर हुई स्टडी की प्राथमिक रिपोर्ट आ गई है। इसमें स्पष्ट है कि यह दवा कोरोना वायरस से पीड़ित गंभीर मरीजों के इलाज में कारगर नहीं है।

गवर्नर एंड्रूयू कुओमो ने बताया कि न्यूयॉर्क स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ ने 22 अस्पतालों में 600 कोरोना मरीजों पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा के असर का अध्ययन किया गया है। लेकिन नतीजे बहुत आशाजनक नहीं निकले।

यूनिवर्सिटी ऑफ अलबानी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डीन डेविड होल्टग्रेव ने बताया कि जिन मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दी गई वो कोरोना के संक्रमण को बर्दाश्त नहीं पर पाए। ज्यादातर की मौत हो गई। यह कोरोना से ग्रसित गंभीर मरीजों के लिए नहीं है।

न्यूयॉर्क गवर्नर के आधिकारिक बयान से पहले भी हाइ़ड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर एक स्टडी सामने आई थी जिसमें यह कहा गया था कि इसे लेने वाले कुल मरीजों में से 28 फीसदी की मौत हो रही है। यह स्टडी की थी अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के शोधकर्ताओं ने। 

NIH की स्टडी में बताया गया था कि जिन कोरोना मरीजों का इलाज सामान्य तरीकों से हो रहा है, उनके मरने की आशंका कम रहती है। जबकि, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा का उपयोग करने पर मरीजों की ज्यादा मौत हुई है। 

इस स्टडी में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा से करीब 28 फीसदी कोरोना मरीजों की मौत हो रही है। जबकि, सामान्य प्रक्रिया से इलाज करते हैं तो सिर्फ 11 प्रतिशत मरीज ही अपनी जान गंवा रहे हैं।

इस स्टडी से सामने आई रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा कोरोना मरीज को अकेले दी जाए या एजिथ्रोमाइसिन के साथ दी जाए। मरीज के ठीक होने के चांस कम रहते हैं। जबकि, उसकी हालत बिगड़ने और मरने की आशंका ज्यादा रहती है।

NIH और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के वैज्ञानिकों की टीम ने 368 कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट प्रक्रिया की जांच की। इनमें से कई मरीज या तो मर चुके थे, या फिर ठीक होकर अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिए गए थे। 

इस जांच में पता चला कि 97 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दी गई। 113 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के साथ एजिथ्रोमाइसिन दी गई। जबकि, 158 मरीजों का इलाज सामान्य तरीके से किया गया। उन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा नहीं दी गई। 

जिन 97 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा दी गई थी, उसमें से 27।8% मरीजों की मौत हो गई। जिन 113 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा के साथ एजिथ्रोमाइसिन की दवा दी गई थी उनमें से 22।1% मरीजों की मौत हो गई। जबकि, उन 158 मरीजों की बात करें तो जिन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा नहीं दी गई, उनमें सिर्फ 11।4% मरीज ही मारे गए।

इस स्टडी रिपोर्ट से ये बात तो स्पष्ट होती नजर आ रही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मलेरिया के लिए उपयोग में लाई जाने वाली दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के लिए जितनी पैरवी की, उतनी ये कारगर नहीं है। 

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार अगर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को दुनियाभर में कोरोना के इलाज के लिए अनुमति मिलती है तो उससे ये दवा बनाने वाली कंपनियों को बहुत फायदा होगा। ऐसी ही एक कंपनी में डोनाल्ड ट्रंप का शेयर है। साथ ही उस कंपनी के बड़े अधिकारियों के साथ डोनाल्ड ट्रंप के गहरे रिश्ते हैं।

वेबसाइट पर लिखा है कि डोनाल्ड ट्रंप का फ्रांस की दवा कंपनी सैनोफी को लेकर व्यक्तिगत फायदा है। कंपनी में ट्रंप का शेयर भी है। ये कंपनी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा को प्लाकेनिल ब्रांड के नाम से बाजार में बेचती है।