कोरोना से जंग में मिलेगी कामयाबी / भारत में साल के अंत तक आ सकता है टीका, नाक में केवल एक बूंद डालनी होगी

अमेरिका और चीन द्वारा कोरोना टीका सबसे पहले विकसित करने की होड़ के बीच खबर है कि हैदराबाद की टीका कंपनी भारत बायोटेक ने कोरोना को मात देने के लिए वैक्सीन विकसित कर लिया है। अमेरिका में इसका एनिमल ट्रायल शुरू हो चुका है। तीन से छह महीने तक चलने वाले इस ट्रायल में सेफ्टी साबित हुई तो भारत में इसका ह्यूमन ट्रायल होगा। 2020 खत्म होने से पहले यह टीका इस्तेमाल के लिए उपलब्ध हो सकता है।

Dainik Bhaskar : Apr 06, 2020, 09:44 AM
Coronavirus in India: अमेरिका और चीन द्वारा कोरोना टीका सबसे पहले विकसित करने की होड़ के बीच खबर है कि हैदराबाद की टीका कंपनी भारत बायोटेक ने कोरोना को मात देने के लिए वैक्सीन विकसित कर लिया है। अमेरिका में इसका एनिमल ट्रायल शुरू हो चुका है। तीन से छह महीने तक चलने वाले इस ट्रायल में सेफ्टी साबित हुई तो भारत में इसका ह्यूमन ट्रायल होगा। 2020 खत्म होने से पहले यह टीका इस्तेमाल के लिए उपलब्ध हो सकता है। 

यह टीका नेजल ड्रॉप के रूप में होगा यानी टीके की केवल एक बूंद नाक में डालनी होगी। कोरोफ्लू नाम का यह टीका कोरोना के साथ फ्लू का भी इलाज करेगा। भारत बायोटेक के सीएमडी व विज्ञानी डॉ. कृष्णा एला ने बताया कि कोविड-19 का वायरस नाक के रास्ते शरीर में प्रवेश करता है और फेफड़ों में पहुंचकर उसे संक्रमित करता है, इसलिए टीका देने के लिए भी नाक का रास्ता चुना गया, ताकि यह वायरस पर तेज व गहरा असर कर सके। 

एक बॉटल में 10-20 बूंदें ही होंगी 

कंपनी ने तय किया है कि इसे मल्टी डोज वैक्सीन के रूप में तैयार किया जाएगा। यानी एक ही बोटल (बाइल) में 10 या 20 बूंदें होगी, ताकि इनका रखरखाव और डिलीवरी में आसानी हो। उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों में जहां आंगनवाड़ी या आशा वर्कर काम करते हैं, वे इंजेक्शन नहीं दे सकते, ऐसे में इस टीके को देने की सरल विधि होना जरूरी है। नाक में केवल एक बूंद डालने का टीका होगा तो उसकी डिलीवरी बहुत आसान होगी। 

प्रतिवर्ष 30 करोड़ डोज बनाने की तैयारी

डॉ. एला ने भास्कर को बातचीत में बताया कि कंपनी की तैयारी मांग के हिसाब से हर साल 30 करोड़ डोज बनाने की है। भारत में रेस्पिरेट्री पैथोलॉजी रिसर्च में कोई विशेषज्ञता नहीं है। देश में एनिमल ट्रायल और जीन सिंथेसिस सुविधा न होने के चलते टीके का एनिमल ट्रायल अमेरिका में कराना पड़ रहा है। इसके लिए दुनिया के सबसे प्रसिद्ध जापानी वायरोलॉजिस्ट योशीहीरो कवाओका और अमेरिका के विस्कॉन्सिन मेडिसन यूनिवर्सिटी के साथ गठजोड़ किया है। योशीहीरो फ्लू वैक्सीन के वर्ल्ड अथारिटी हैं और यूनिवर्सिटी की इंफ्लूएंजा रिसर्च लैब में एनिमल ट्रायल के लिए हाईलेवल बायोसेफ्टी फैसिलिटी मौजूद है। 

योशीहोरो ने एम2एसआर नाम का टीका विकसित किया है जो शरीर में फ्लू के खिलाफ प्रतिरोधकता पैदा करता है। उनकी लैब में एम2एसआर में ही सार्स कोव-2 का जीन सीक्वेंस भी जोड़ दिया गया। सार्स कोव-2 ही वह वायरस है जो कोविड-19 रोग की वजह है। इस तरह यह नया टीका कोरोना वायरस के खिलाफ भी प्रतिरोधकता पैदा करेगा। हमें नए टीके के लिए एनिमल ट्रायल के लिए जिन चूहों की जरूरत है, वह देश में उपलब्ध नहीं है। अमेरिका से उन्हें आयात करने में दो साल का वक्त लग जाता, इसलिए टीके को ट्रायल के लिए अमेरिका ही भेज दिया। भारत में रीएजेंट इंपोर्ट करने पर भी पाबंदी है। 

फ्लू के टीके सफलता से बंधी है कोरोना टीके की सफलता की उम्मीद

कोरोना टीके की कामयाबी की संभावना जताते हुए डॉ. एला ने कहा कि अच्छी बात यह है कि योशीहीरो के एम2एसआर टीके का चार बार फेज-1 और फेज-2 क्लीनिकल ह्यूमैन ट्रायल सफल रहे हैं। वह सैकड़ों उदाहरणों में सुरक्षित व सहनीय पाया गया, इसने फ्लू के खिलाफ मजबूत प्रतिरोधकता पैदा की। यदि सरकार हमें फेज-1 के बाद ही मंजूरी देती है कि फेज-2 ट्रायल की जरूरत नहीं है तो निश्चित ही इस साल के खत्म होने से पहले कोरोना का टीका बाजार में आ सकता है। 

दुनिया के केवल चुनिंदा देश और कंपनियां ही बनाती हैं टीका 

डॉ. एला ने बताया कि टीका बनाने का काम बहुत जटिल है। अमेरिका और यूरोप में केवल दो-दो टीका कंपनियां हैं, अफ्रीकन देशों में कोई भी टीका कंपनी नहीं है। एशिया में केवल चीन और दक्षिण कोरिया (दो) में टीका कंपनियां हैं। टीका बनाने की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है, भारी निवेश के साथ इसमें लंबा वक्त मांगती है। जैसे रोटा वायरस का टीका विकसित करने में 17 साल लग गए थे। यह फार्मा कंपनियों की तरह नहीं है कि किसी दवा के जेनेरिक फॉर्म्यूले की नकल की और उत्पादन शुरू कर दिया। उन्हें दवा बनाने के लिए न तो कोई एनिमल ट्रायल करना है न क्लीनिकल रिसर्च की जरूरत है। 

भारत बायोटेक को हाईरिक्स पेंडेमिक टीका बनाने का अनुभव

भारत बायोटेक को हाई रिस्क पेंडेमिक वैक्सीन बनाने का अनुभव है। डॉ. एला की कंपनी को दुनिया में सबसे पहले एच1एन1 फ्लू, टाइफाइड, चिकुनगुनिया, जीका का वैक्सीन बनाने के साथ 16 किस्म के टीके विकसित करने महारत हासिल है। कंपनी अभी तक 60-70 क्लीनिकल ट्रायल करने का अनुभव है। इसमें भारत के अलावा बांग्लादेश, नेपाल, बरकीनोफासो, फिलीस्तीन, वियतनाम, जांबिया में भी क्लीनिकल ट्रायल किया है। 

यदि भारत में होती ये सुविधा तो और जल्द विकसित होता टीका 

डॉ. एला के मुताबिक, सरकार को चाहिए कि एनिमल ट्रायल की छूट दे, क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति आसानी से मिले। रीएजेंट आयात करने में मुश्किल न हो। जीन सिंथेसिस की सुविधा विकसित की जाए। अमेरिका में कोई भी टीका इसलिए जल्दी आ पाता है क्योंकि वहां एनिमल ट्रायल और ह्यूमन ट्रायल समानांतर किया जाता है। चीन का तरीका और भी खतरनाक है, वहां एनिमल ट्रायल को छोड़कर सीधे ह्यूमन ट्रायल किए जा रहे हैं। हालांकि, चीनी तरीके को भारत में लागू करने की जरूरत नहीं है। 

देश की अकादमिक शोध संस्थाओं का उद्देश्य पेपर प्रकाशित करना भर रह गया है, वे समाज की समस्याओं के समाधान के प्रति ध्यान ही नहीं दे रहे। देश की किसी भी बड़ी संस्था से पूछिए कि उसने समाज की किस समस्या के लिए क्या समाधान दिया है। लेकिन हमें शोध व इनोवेशन पर जोर देना पड़ता है, क्योंकि उसी के जरिए हम पैसा कमा सकते हैं। 

क्या कहती है सरकार

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उन्हें इस टीके के विकास के संबंध में जानकारी मिली है। सरकार भी कोरोना को लेकर बहुत गंभीर है। हम चाहते हैं कि कोरोना का टीका जितनी जल्द हो सके, इस्तेमाल के लिए उपलब्ध हो। इसमें सरकार अपनी तरफ से हरसंभव मदद करेगी। प्रधानमंत्री ने सार्क देशों और अफ्रीकन देशों की मदद की घोषणा भी की है।