News18 : Apr 30, 2020, 09:41 AM
कोरोना वायरस: कोविड-19 (Covid-19) की शुरुआत को लगभग 5 महीने हो चुके हैं लेकिन इस दौरान भी वैज्ञानिक (scientists) इस खतरनाक वायरस के बारे में रोज नई जानकारी जुटा रहे हैं। इसी कड़ी में फरवरी-मार्च में वुहान (Wuhan) के दो अस्पतालों की हवा में कोरोना वायरस के जेनेटिक हिस्से नजर आए, जिन्हें आरएनए (RNA) कहते हैं। ये एक इंच के 10,000 वें हिस्से के बराबर हैं लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इतना ही हिस्सा लगभग 2 घंटे तक किसी को भी बीमार कर सकता है। हालांकि शोधकर्ताओं की दूसरी टीम ने अलग नतीजे पाए। उनके मुताबिक अगर हवा की आवाजाही बनाई रखी जा सके और साथ ही आसपास को संक्रमणरहित किया जाए तो वायरस का खतरा लगभग नहीं रहता है।
अस्पतालों की हवा में मिले जेनेटिक मटेरियल पर हुई शुरुआती स्टडी साइंस जर्नल Nature में आई। इसके मुताबिक हवा में मौजूद Sars-CoV-2 वायरस के आरएनए सांस के जरिए स्वस्थ लोगों तक पहुंच सकते हैं और उन्हें संक्रमित कर सकते हैं। लेकिन अगर खिड़कियां-दरवाजे खोलकर क्रॉस वेंटिलेशन किया जाए तो वायरस के आरएनए लगभग निष्क्रिय हो जाते हैं और खतरा कम हो जाता है। स्टडी में वायरस का एरोडायनेमिक विश्लेषण किया गया और वैज्ञानिकों ने माना कि एरोसोल के कारण बीमारी हवा से भी फैल सकती है।
फरवरी-मार्च में वुहान के दो अस्पतालों की हवा में कोरोना वायरस के जेनेटिक हिस्से नजर आए
शुरुआती स्टडी के बाद मचे हड़कंप के बीच अब वैज्ञानिकों का दूसरा खेमा भी सामने आया है जो मानता है कि आरएनए के कारण संक्रमण नहीं फैल सकता है। हिंदुस्तान टाइम्स में आई रिपोर्ट के मुताबिक इंस्टीट्यूट ऑफ जीनॉमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के डायरेक्टर अनुराग अग्रवाल का कहते हैं कि वायरस का RNA संक्रमण फैलाने वाला हो सकता है लेकिन ये सिर्फ थ्योरी है। ऐसा कोई मामला आज तक नहीं देखा गया। वही वायरस संक्रमण फैलाने वाला होता है जिसकी संरचना पूरी हो। इसे विज्ञान की भाषा में विरिऑन (virion) कहते हैं जो एक होस्ट सेल से निकलकर दूसरी होस्ट सेल पर हमला करने को तैयार होता है और खुद की हजारों प्रतियां बना पाता है।
World Health Organization (WHO) का भी फिलहाल तक यही मानना है कि अकेला वायरस का RNA संक्रमण नहीं फैला सकता। इसके अनुसार कोरोना वायरस संक्रमित की छींक या खांसी से जो छोटे-छोटे कण निकलते हैं, वो आसपास के लोगों को भी संक्रमित कर देते हैं। साथ ही वायरस ठोस सतह पर कई घंटे रह पाते हैं। इस वजह से संक्रमित सतह को छूने वाला व्यक्ति भी अगर इसके बाद अपनी नाक, आंखें या मुंह छूता है तो बीमार हो सकता है।
वैज्ञानिकों ने माना कि एरोसोल के कारण बीमारी हवा से भी फैल सकती हैवैसे फिलहाल कोरोना के बारे में किसी जानकारी को लेकर वैज्ञानिक पक्का नहीं हैं। जैसे मार्च में आई एक स्टडी जो New England Journal of Medicine में छपी थी, के मुताबिक लैब में एरोसोल की तरह मौजूद वायरस, जो 5 माइक्रॉन से छोटे थे, वे तीन घंटे के भीतर निष्क्रिय हो गए। बता दें कि सूक्ष्म तरल बूंदों या ठोस के हवा में जमा होने को एरोसोल कहते हैं। जैसे AC चलाने पर भी एरोसोल बनता है। चीन में इसपर भी एक स्टडी हुई जो अप्रैल में Nature Medicine में आई। ये बाती है कि आइसोलेशन वार्ड या ICU में पहुंचे मरीजों के कमरों में कोरोना के वायरस के जेनेटिक मटेरियल यानी RNA मौजूद तो थे लेकिन उसकी संख्या बहुत कम थी। हालांकि टॉयलेट एरिया में इसकी मौजूदगी काफी ज्यादा दिखी।
स्टडी के आगे के चरण में देखा गया कि अगर कमरे का वेंटिलेशन सही हो और टॉयलेट एरिया की साफ-सफाई सही ढंग से की जाए तो हवा में मौजूद वायरस के RNA काफी हद तक निष्क्रिय हो जाते हैं। इन्हीं नतीजों को देखते हुए वैज्ञानिक कमरों में हवा की पूरी आवाजाही पर लगातार जोर दे रहे हैं।
AC की वजह से कमरे में जमा होने वाली हवा के कारण भी कोरोना संक्रमण का डर रहता है
बता दें कि AC की वजह से कमरे में जमा होने वाली हवा के कारण भी कोरोना संक्रमण का डर रहता है। ऐसा एक मामला चीन में आ भी चुका है। एसी से संक्रमण का मामला चीन के Guangzhou शहर में देखा गया। दरअसल 23 जनवरी को यहां के एक रेस्त्रां में वुहान से लौटा एक शख्स अपने परिवार समेत पहुंचा। उनके लंच करने के दौरान पास की टेबलों पर दूसरे 2 परिवार भी बैठे हुए थे। उसी रात वुहान से आए शख्स में बुखार के साथ कोरोना के दूसरे लक्षण दिखने लगे। इसके कुछ दिनों बाद 5 फरवरी को शख्स के परिवार समेत दूसरी टेबलों पर बैठे कुल 9 लोग भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। सीसीटीवी फूटेज के जरिए कोरोना संक्रमण के स्त्रोत और बाकी परिवारों को ट्रैक किया गया। बाद में हुई स्टडी में देखा गया कि पांचवे माले पर बने रेस्त्रां में सेंट्रल एसी लगा हुआ है और सारी खिड़कियां बंद रहती हैं। हर टेबल के बीच लगभग 1 मीटर की ही दूरी थी। तीनों ही परिवारों ने लगभग 1 घंटा रेस्त्रां में बिताया।
स्टडी के नतीजे Centres for Disease Control and Prevention अमेरिका ने प्रकाशित किए। माना जा रहा है कि कोरोना संक्रमण की वजह एसी के कारण हुआ होगा, जिसमें संक्रमित शख्स की खांसी या छींक से फैले वायरस एसी के तेज एयरफ्लो की वजह से जल्दी से फैल सके होंगे।
इसके नतीजे देखते हुए माना जा रहा है कि न केवल बाहर की हवा, बल्कि रोशनी के लिए भी लोगों को घरों के परदे और खिड़कियां खुली रखनी चाहिए। इससे वायरस ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रह पाते हैं। इससे पहले सार्स और मर्स के दौरान भी पाया गया है कि UV डे-लाइट पैथोजन के फैलने के लिए अनुकूल वातावरण नहीं है।
अस्पतालों की हवा में मिले जेनेटिक मटेरियल पर हुई शुरुआती स्टडी साइंस जर्नल Nature में आई। इसके मुताबिक हवा में मौजूद Sars-CoV-2 वायरस के आरएनए सांस के जरिए स्वस्थ लोगों तक पहुंच सकते हैं और उन्हें संक्रमित कर सकते हैं। लेकिन अगर खिड़कियां-दरवाजे खोलकर क्रॉस वेंटिलेशन किया जाए तो वायरस के आरएनए लगभग निष्क्रिय हो जाते हैं और खतरा कम हो जाता है। स्टडी में वायरस का एरोडायनेमिक विश्लेषण किया गया और वैज्ञानिकों ने माना कि एरोसोल के कारण बीमारी हवा से भी फैल सकती है।
फरवरी-मार्च में वुहान के दो अस्पतालों की हवा में कोरोना वायरस के जेनेटिक हिस्से नजर आए
शुरुआती स्टडी के बाद मचे हड़कंप के बीच अब वैज्ञानिकों का दूसरा खेमा भी सामने आया है जो मानता है कि आरएनए के कारण संक्रमण नहीं फैल सकता है। हिंदुस्तान टाइम्स में आई रिपोर्ट के मुताबिक इंस्टीट्यूट ऑफ जीनॉमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के डायरेक्टर अनुराग अग्रवाल का कहते हैं कि वायरस का RNA संक्रमण फैलाने वाला हो सकता है लेकिन ये सिर्फ थ्योरी है। ऐसा कोई मामला आज तक नहीं देखा गया। वही वायरस संक्रमण फैलाने वाला होता है जिसकी संरचना पूरी हो। इसे विज्ञान की भाषा में विरिऑन (virion) कहते हैं जो एक होस्ट सेल से निकलकर दूसरी होस्ट सेल पर हमला करने को तैयार होता है और खुद की हजारों प्रतियां बना पाता है।
World Health Organization (WHO) का भी फिलहाल तक यही मानना है कि अकेला वायरस का RNA संक्रमण नहीं फैला सकता। इसके अनुसार कोरोना वायरस संक्रमित की छींक या खांसी से जो छोटे-छोटे कण निकलते हैं, वो आसपास के लोगों को भी संक्रमित कर देते हैं। साथ ही वायरस ठोस सतह पर कई घंटे रह पाते हैं। इस वजह से संक्रमित सतह को छूने वाला व्यक्ति भी अगर इसके बाद अपनी नाक, आंखें या मुंह छूता है तो बीमार हो सकता है।
वैज्ञानिकों ने माना कि एरोसोल के कारण बीमारी हवा से भी फैल सकती हैवैसे फिलहाल कोरोना के बारे में किसी जानकारी को लेकर वैज्ञानिक पक्का नहीं हैं। जैसे मार्च में आई एक स्टडी जो New England Journal of Medicine में छपी थी, के मुताबिक लैब में एरोसोल की तरह मौजूद वायरस, जो 5 माइक्रॉन से छोटे थे, वे तीन घंटे के भीतर निष्क्रिय हो गए। बता दें कि सूक्ष्म तरल बूंदों या ठोस के हवा में जमा होने को एरोसोल कहते हैं। जैसे AC चलाने पर भी एरोसोल बनता है। चीन में इसपर भी एक स्टडी हुई जो अप्रैल में Nature Medicine में आई। ये बाती है कि आइसोलेशन वार्ड या ICU में पहुंचे मरीजों के कमरों में कोरोना के वायरस के जेनेटिक मटेरियल यानी RNA मौजूद तो थे लेकिन उसकी संख्या बहुत कम थी। हालांकि टॉयलेट एरिया में इसकी मौजूदगी काफी ज्यादा दिखी।
स्टडी के आगे के चरण में देखा गया कि अगर कमरे का वेंटिलेशन सही हो और टॉयलेट एरिया की साफ-सफाई सही ढंग से की जाए तो हवा में मौजूद वायरस के RNA काफी हद तक निष्क्रिय हो जाते हैं। इन्हीं नतीजों को देखते हुए वैज्ञानिक कमरों में हवा की पूरी आवाजाही पर लगातार जोर दे रहे हैं।
AC की वजह से कमरे में जमा होने वाली हवा के कारण भी कोरोना संक्रमण का डर रहता है
बता दें कि AC की वजह से कमरे में जमा होने वाली हवा के कारण भी कोरोना संक्रमण का डर रहता है। ऐसा एक मामला चीन में आ भी चुका है। एसी से संक्रमण का मामला चीन के Guangzhou शहर में देखा गया। दरअसल 23 जनवरी को यहां के एक रेस्त्रां में वुहान से लौटा एक शख्स अपने परिवार समेत पहुंचा। उनके लंच करने के दौरान पास की टेबलों पर दूसरे 2 परिवार भी बैठे हुए थे। उसी रात वुहान से आए शख्स में बुखार के साथ कोरोना के दूसरे लक्षण दिखने लगे। इसके कुछ दिनों बाद 5 फरवरी को शख्स के परिवार समेत दूसरी टेबलों पर बैठे कुल 9 लोग भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। सीसीटीवी फूटेज के जरिए कोरोना संक्रमण के स्त्रोत और बाकी परिवारों को ट्रैक किया गया। बाद में हुई स्टडी में देखा गया कि पांचवे माले पर बने रेस्त्रां में सेंट्रल एसी लगा हुआ है और सारी खिड़कियां बंद रहती हैं। हर टेबल के बीच लगभग 1 मीटर की ही दूरी थी। तीनों ही परिवारों ने लगभग 1 घंटा रेस्त्रां में बिताया।
स्टडी के नतीजे Centres for Disease Control and Prevention अमेरिका ने प्रकाशित किए। माना जा रहा है कि कोरोना संक्रमण की वजह एसी के कारण हुआ होगा, जिसमें संक्रमित शख्स की खांसी या छींक से फैले वायरस एसी के तेज एयरफ्लो की वजह से जल्दी से फैल सके होंगे।
इसके नतीजे देखते हुए माना जा रहा है कि न केवल बाहर की हवा, बल्कि रोशनी के लिए भी लोगों को घरों के परदे और खिड़कियां खुली रखनी चाहिए। इससे वायरस ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रह पाते हैं। इससे पहले सार्स और मर्स के दौरान भी पाया गया है कि UV डे-लाइट पैथोजन के फैलने के लिए अनुकूल वातावरण नहीं है।