AajTak : Apr 24, 2020, 02:42 PM
दिल्ली: के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को कहा है कि राज्य में प्लाज्मा थेरेपी पहले स्टेज में कारगर साबित हुई है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि शुरुआती नतीजे बहुत उत्साहवर्धक हैं। दिल्ली सीएम ने कोरोना के इलाज के लिए प्लाज्मा डोनेशन की भी अपील की। आइए जानते हैं प्लाज्मा थेरेपी क्या है और यह कैसे काम करती है-
प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना से ठीक हो चुके लोगों के खून से प्लाज्मा लेकर कोरोना मरीजों का इलाज किया जाता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार लोगों पर प्लाज्मा तकनीक के ट्रायल को मंजूरी दे दी है।
प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरी तरह ठीक हो चुके लोगों का 800 मिली। खून लिया जाता है और एंटीबॉडीज से युक्त प्लाज्मा अलग कर लिया जाता है। इसके बाद प्लाज्मा को कोरोना वायरस के मरीजों को दिया जाता है।
जब शरीर किसी बैक्टीरिया या रोगाणु के संपर्क में आता है तो प्रतिरक्षा तंत्र अपने आप सक्रिय हो जाता है और एंटीबॉडीज रिलीज होने लगती हैं। कोरोना वायरस संक्रमण से रिकवर हो चुके मरीजों के प्लाज्मा में ऐसी एंटीबॉडीज होती हैं जो पहले ही कोरोना वायरस से लड़ चुकी होती हैं। ऐसे में, नए मरीजों में इस प्लाज्मा के इस्तेमाल से कोरोना वायरस को ज्यादा असरदार तरीके से रोका जा सकता है।
कैसे होता है प्लाज्मा डोनेशन- प्लाज्मा थेरेपी में सबसे अहम रोल कोरोना से रिकवर हो चुके डोनर का है, जो अपना प्लाज्मा डोनेट करता है। दिल्ली सीएम ने बताया कि जिस तरह से डेंगू के लिए ब्लड दिया जाता है, ठीक उसी तरह आपके ब्लड में से प्लाज्मा निकाल लिया जाएगा। डोनर को चिंता करने की जरूरत नहीं है। जो लोग ठीक होकर गए हैं, उन्हें सरकार की ओर से फोन किया जाएगा और उनका प्लाज्मा लिया जाएगा।
स्टडीज से पता चलता है कि किसी प्रभावी दवा या वैक्सीन की गैर-मौजूदगी में प्लाज्मा थेरेपी कोरोना के इलाज में काफी हद तक असरदार साबित हो रही है। चीन, दक्षिण कोरिया, यूएस और यूके भी इसका परीक्षण कर रहे हैं। भारत भी इस तकनीक के ट्रायल पर आगे बढ़ रहा है।
केरल देश का पहला राज्य है जिसने प्लाज्मा थेरेपी पर रिसर्च और प्रोटोकॉल को शुरू कर दिया है। श्री चित्रा तिरुनल इंस्टिट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज ऐंड टेक्नॉलजी (SCTIMST) को आईसीएमआर ने प्लाज्मा थेरेपी के परीक्षण के लिए 11 अप्रैल को मंजूरी दे दी है। हालांकि, डीसीजीआई (ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) की तरफ से हरी झंडी मिलना अभी बाकी है। दरअसल, डीसीजीआई ने ब्लड डोनेट करने को लेकर कई नियम बनाए हैं, जैसे ब्लड डोनर का पिछले तीन महीनों में विदेशी यात्रा का कोई रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए। SCTIMST ने ट्रायल के लिए नियमों में ढील देने की अपील की है।
केरल ने प्लाज्मा थेरेपी का परीक्षण तभी शुरू कर दिया था जब यूएस फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने भी इसे मंजूरी नहीं दी थी। आईसीएमआर के सूत्रों ने बताया कि कुछ दिनों में पता चल जाएगा कि देश भर में कुल कितने ट्रायल कराए जाएंगे। 2003 में सार्स महामारी, एच-1एन-1 इन्फ्लुएंजा और 2012 में मार्स की महामारी के दौरान भी प्लाज्मा थेरेपी पर स्टडीज की गई थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि इबोला में भी इसका परीक्षण किया गया था लेकिन उसमें ये असरदार साबित नहीं हुई।
जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन (जामा) की 27 मार्च को छपी एक स्टडी में बताया गया है कि प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना वायरस के 5 मरीजों में सुधार देखने को मिला है। यूएस एफडीए ने कहा है, प्लाज्मा थेरेपी में उम्मीदें नजर आ रही हैं लेकिन अभी तक इसके सुरक्षित और असरदार होने की बात साबित नहीं हो सकी है। इसलिए क्लीनिकल ट्रायल में इसकी सुरक्षा और प्रभावी होने की जांच किया जाना जरूरी है।
प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना से ठीक हो चुके लोगों के खून से प्लाज्मा लेकर कोरोना मरीजों का इलाज किया जाता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार लोगों पर प्लाज्मा तकनीक के ट्रायल को मंजूरी दे दी है।
प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरी तरह ठीक हो चुके लोगों का 800 मिली। खून लिया जाता है और एंटीबॉडीज से युक्त प्लाज्मा अलग कर लिया जाता है। इसके बाद प्लाज्मा को कोरोना वायरस के मरीजों को दिया जाता है।
जब शरीर किसी बैक्टीरिया या रोगाणु के संपर्क में आता है तो प्रतिरक्षा तंत्र अपने आप सक्रिय हो जाता है और एंटीबॉडीज रिलीज होने लगती हैं। कोरोना वायरस संक्रमण से रिकवर हो चुके मरीजों के प्लाज्मा में ऐसी एंटीबॉडीज होती हैं जो पहले ही कोरोना वायरस से लड़ चुकी होती हैं। ऐसे में, नए मरीजों में इस प्लाज्मा के इस्तेमाल से कोरोना वायरस को ज्यादा असरदार तरीके से रोका जा सकता है।
कैसे होता है प्लाज्मा डोनेशन- प्लाज्मा थेरेपी में सबसे अहम रोल कोरोना से रिकवर हो चुके डोनर का है, जो अपना प्लाज्मा डोनेट करता है। दिल्ली सीएम ने बताया कि जिस तरह से डेंगू के लिए ब्लड दिया जाता है, ठीक उसी तरह आपके ब्लड में से प्लाज्मा निकाल लिया जाएगा। डोनर को चिंता करने की जरूरत नहीं है। जो लोग ठीक होकर गए हैं, उन्हें सरकार की ओर से फोन किया जाएगा और उनका प्लाज्मा लिया जाएगा।
स्टडीज से पता चलता है कि किसी प्रभावी दवा या वैक्सीन की गैर-मौजूदगी में प्लाज्मा थेरेपी कोरोना के इलाज में काफी हद तक असरदार साबित हो रही है। चीन, दक्षिण कोरिया, यूएस और यूके भी इसका परीक्षण कर रहे हैं। भारत भी इस तकनीक के ट्रायल पर आगे बढ़ रहा है।
केरल देश का पहला राज्य है जिसने प्लाज्मा थेरेपी पर रिसर्च और प्रोटोकॉल को शुरू कर दिया है। श्री चित्रा तिरुनल इंस्टिट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज ऐंड टेक्नॉलजी (SCTIMST) को आईसीएमआर ने प्लाज्मा थेरेपी के परीक्षण के लिए 11 अप्रैल को मंजूरी दे दी है। हालांकि, डीसीजीआई (ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) की तरफ से हरी झंडी मिलना अभी बाकी है। दरअसल, डीसीजीआई ने ब्लड डोनेट करने को लेकर कई नियम बनाए हैं, जैसे ब्लड डोनर का पिछले तीन महीनों में विदेशी यात्रा का कोई रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए। SCTIMST ने ट्रायल के लिए नियमों में ढील देने की अपील की है।
केरल ने प्लाज्मा थेरेपी का परीक्षण तभी शुरू कर दिया था जब यूएस फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने भी इसे मंजूरी नहीं दी थी। आईसीएमआर के सूत्रों ने बताया कि कुछ दिनों में पता चल जाएगा कि देश भर में कुल कितने ट्रायल कराए जाएंगे। 2003 में सार्स महामारी, एच-1एन-1 इन्फ्लुएंजा और 2012 में मार्स की महामारी के दौरान भी प्लाज्मा थेरेपी पर स्टडीज की गई थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि इबोला में भी इसका परीक्षण किया गया था लेकिन उसमें ये असरदार साबित नहीं हुई।
जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन (जामा) की 27 मार्च को छपी एक स्टडी में बताया गया है कि प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना वायरस के 5 मरीजों में सुधार देखने को मिला है। यूएस एफडीए ने कहा है, प्लाज्मा थेरेपी में उम्मीदें नजर आ रही हैं लेकिन अभी तक इसके सुरक्षित और असरदार होने की बात साबित नहीं हो सकी है। इसलिए क्लीनिकल ट्रायल में इसकी सुरक्षा और प्रभावी होने की जांच किया जाना जरूरी है।