हैरानी / जब महिला को शादी के नौ साल बाद पता चला कि वो एक पुरुष है, हैरान कर देगा ये मामला

AMAR UJALA : Jun 30, 2020, 10:40 PM
नई दिल्ली | एक महिला 32 साल से सामान्य जिंदगी जी रही थी। उनकी शादी को नौ साल हो चुके थे और वैवाहिक जीवन अच्छा बीत रहा था, लेकिन अचानक उन्हें पता चला कि वो एक पुरुष हैं और उन्हें टेस्टिक्यूलर कैंसर है। पश्चिम बंगाल में बीरभूम की रहने वालीं ये महिला शरीर से तो महिला हैं, लेकिन आनुवंशिक तौर पर वो पुरुष पैदा हुई थीं। 

जब उनका मामला अस्पताल पहुंचा तो डॉक्टर भी ये देखकर हैरान रह गए और उन्हें इस समस्या के बारे में जानने के लिए एक लंबी जांच प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। इसके बाद पता चला कि इस महिला को एंड्रोजन इंसेंसिटिविटी सिंड्रोम है, जिसमें व्यक्ति का शरीर महिलाओं का होता है लेकिन क्रोमोसोम पुरुष के होते हैं। 

पेट दर्द की शिकायत

यह महिला कुछ महीनों पहले पेट में तेज दर्द की शिकायत लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस कैंसर अस्पताल गई थीं। उनका इलाज करने वाले डॉक्टर भी पहले ये समझ नहीं पाए उन्हें क्या बीमारी है। कैंसर हॉस्पिटल में कंसल्टेंट क्लीनिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर अनुपम दत्ता और कंसल्टेंट सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर सौमेन दास उनका इलाज कर रहे थे। 

डॉक्टर अनुपम दत्ता बताते हैं, 'महिला अस्पताल में तेज पेट दर्द की शिकायत लेकर आई थीं। जब उनके टेस्ट किए तो पता चला कि उनमें गर्भाशय (यूट्रस) और अंडाशय (ओवरी) नहीं हैं। पेट में एक ट्यूमर जैसा है। तब हमने उसकी बायोप्सी निकाली तो पता चला कि उन्हें सेनिनोमा है जो पुरुषों में होने वाला टेस्टिक्यूलर कैंसर होता है।'

टेस्टिक्यूलर कैंसर टेस्टिकल्स (अंडाशय) में होता है जो कि पुरुषों के जननांग है. लेकिन इस महिला के पेट में ये जननांग पाया गया जो अब ट्यूमर का रूप ले चुका था। ये क्यों हुआ इसका पता करने के लिए महिला का जीन टेस्ट किया गया। डॉक्टर अनुपम बताते हैं, 'हमने उनका जीन टेस्ट किया जिसमें क्रोमोसोम का विश्लेषण किया गया। इसमें पता चला कि उनमें 46 एक्सवाई क्रोमोसोम हैं जो कि पुरुषों में होता है। महिलाओं में 46 एक्सएक्स क्रोमोसोम और पुरुषों में 46 एक्सवाई क्रोमोसोम पाया जाता है।'

'इससे हमें पता चला कि महिला एक दुर्लभ बीमारी एंड्रोजन इंसेंसिटिविटी सिंड्रोम से ग्रस्त हैं। हालांकि, वो एक सामान्य जीवन जी रही हैं और इस सिंड्रोम की वजह से उनके वैवाहिक जीवन पर भी कोई असर नहीं पड़ा है।'

डॉक्टर अनुपम ने बताया कि इस बीमारी में कोई और समस्या नहीं होती, लेकिन महिला कभी मां नहीं बन सकती। उनके शरीर में अंडाशय और गर्भाशय नहीं होते। इस कारण इस महिला को भी कभी महावारी नहीं हुई। महिला ने माहवारी ना होने पर इलाज भी कराया था, लेकिन डॉक्टर ने अंडाशय और गर्भाशय ना होने का कारण पता लगाने की कोशिश नहीं की। इसकी वजह ये भी हो सकती है कि कई बार जन्म से ही किसी और कारण से लड़कियों में ये अंग नहीं होते। 

आंटी और बहन को भी सिंड्रोम

इस मामले में एक और बात सामने आई कि सिर्फ उस महिला को ही नहीं बल्कि उनकी एक आंटी और 28 साल की बहन को भी यही सिंड्रोम है। डॉक्टर अनुपम ने बताया, 'जब हमें इस सिंड्रोम का पता चला तो हमने उनके परिवार के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि उनके परिवार की दो और महिलाओं को भी माहवारी नहीं होती। उनकी जांच करने पर ये सिंड्रोम पाया गया, लेकिन वो भी सामान्य जिंदगी जी रही हैं। अब हम जांच करेंगे कि उनके भी पेट में टेस्टिकल्स है या नहीं। अगर ऐसा होगा तो उन्हें निकाल दिया जाएगा ताकि आगे कैंसर का खतरा ना रहे।' 

फिलहाल महिला का ऑपरेशन करके चार से पांच किलो का ट्यूमर निकाल दिया गया है। पूरी तरह इलाज के लिए कीमोथेरेपी चल रही है और महिला की हालत स्थिर है। महिला में क्रोमोसोम पुरुषों के हैं लेकिन वो पूरी तरह से एक महिला हैं। इस बात को समझने और स्वीकार करने के लिए उनकी काउंसिलिंग भी की जा रही है। डॉक्टर कहते हैं कि उनकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं हुआ है, सब पहले जैसा है। उनका परिवार भी ये बात समझ रहा है। 

क्यों होती है ये बीमारी

ये एक जेनेटिक डिसऑर्डर है जो बच्चे के जननांगों और प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है। इसमें जननांग अविकसित हो सकते हैं और प्रजनन अंग शरीर में होते ही नहीं हैं। डॉक्टर अनुपम दत्ता बताते हैं कि इस जेनेटिक डिसऑर्डर में मरीज की कोई गलती नहीं होती। इस बीमारी में शरीर से निकलने वाले टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन (मेल हार्मोन) को शरीर स्वीकार नहीं करता है, जिसके कारण उसका शरीर पर असर नहीं होता। वो टेस्टोस्टेरॉन फिर एस्ट्रोजन में बदल जाता है जो फीमेल हार्मोन है। इससे बच्चा महिला के तौर पर ही बढ़ा होता है। 

ये एक दुर्लभ बीमारी है और करीब 22 या 25 हजार बच्चों में हो सकती है। साथ ही ये भी जरूरी नहीं कि इस सिंड्रोम से ग्रस्त सभी महिलाओं को टेस्टिकल्स में कैंसर हो जाए। हालांकि, पहले से सिंड्रोम का पता चल जाने पर कैंसर के खतरे से बचा जा सकता है। 

दो तरह का एंड्रोजन इंसेंसिटिविटी सिंड्रोम

गुड़गांव के फोर्टिस अस्पताल में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की प्रमुख डॉ. सुनीता मित्तल बताती हैं कि ये एक जेनेटिक बीमारी है जो मां से बच्चे में आती है। ये सिंड्रोम दो तरह के होते हैं, पार्शियल और कंप्लीट। पार्शियल एंड्रोजन इंसेसिटिविटी सिंड्रोम (पीएआईएस) का अक्सर जन्म से ही पता चल जाता है। इसमें गुप्तांग ठीक से विकसित नहीं होते। अंडाशय और गर्भाशय नहीं होते और इस कारण माहवारी नहीं हो पाती। 

ऐसे बच्चे अधिकतर लड़के के तौर पर ही बड़े होते हैं। हालांकि, ये उनकी इच्छा पर निर्भर करता है कि वो अपने आप को महिला मानते हैं या पुरुष। उसके बाद उनकी काउंसलिंग की जाती है और कुछ सर्जरी करके उनके गुप्तांगों को उनके जेंडर के अनुसार ढालने की कोशिश होती है। 

कंप्लीट एंड्रोजन इंसेसिटिविटी सिंड्रोम (सीएआईएस) में गुप्तांग लड़कियों की तरह ही होते हैं। इसलिए इसका अंदाजा माहवारी ना होने पर ही लगता है। हर्निया हो जाने पर भी डॉक्टर सीएआईएस के लिए जांच कर सकते हैं। टेस्टिकल्स के पेट से अंडकोष में ना जाने पर भी बच्चों में हर्निया हो सकता है। इसमें भी अंडाशय और गर्भाशय नहीं होते और लड़की मां नहीं बन सकती। अंडरआर्म और गुप्तांगों पर बाल कम होते हैं और आम लड़कियों से लंबाई थोड़ी ज्यादा होती है। 

इसमें बच्चा महिलाओं की तरह ही बढ़ा होता है और उसमें महिलाओं का शरीर व उन्हीं की जैसी भावनाएं होती हैं। उनके वैवाहिक जीवन में भी कोई समस्या नहीं आती। उनमें पुरुषों जैसे कोई लक्षण नहीं होते। डॉक्टर सुनीता कहती हैं कि ये ऐसी बीमारी है जिसके बारे में लोगों को ना के बराबर पता होता है। कई लोग तो पूरी जिंदगी गुजार लेते हैं, लेकिन उन्हें इसका पता नहीं चलता। अगर कोई बड़ी समस्या ना हो तो इस सिंड्रोम के साथ सामान्य जिंदगी जी जा सकती है। पार्शियल सिंड्रोम में जरूर कुछ बदलावों की जरूरत पड़ती है।

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