दुनिया / जब चीन में माओ के आदेश पर चुन-चुनकर मारी गईं थीं गौरैया, ये थी वजह

जब पूरी दुनिया कोरोना के संकट से जूझ रही है, तभी चीन फैसला लेता है कि वो अपने यहां से बहने वाली मेकांग नदी का बहाव कम कर देगा। इससे 4 देशों- लाओस, कंबोडिया, वियतनाम और थाइलैंड में सूखे की नौबत आ चुकी है। चीन की निर्ममता की ये अकेली मिसाल नहीं। आज से लगभग 60 साल पहले भी वहां के हुक्मरानों ने एक ऐसा फैसला लिया कि पूरा पर्यावरण हिल गया था। उन्होंने देश से गौरैया खत्म करने की मुहिम चलाई।

News18 : Apr 16, 2020, 02:21 PM
चीन: जब पूरी दुनिया कोरोना (coronavirus) के संकट से जूझ रही है, तभी चीन (China) फैसला लेता है कि वो अपने यहां से बहने वाली मेकांग नदी (Mekong river) का बहाव कम कर देगा। इससे 4 देशों- लाओस, कंबोडिया, वियतनाम और थाइलैंड में सूखे की नौबत आ चुकी है। चीन की निर्ममता की ये अकेली मिसाल नहीं। आज से लगभग 60 साल पहले भी वहां के हुक्मरानों ने एक ऐसा फैसला लिया कि पूरा पर्यावरण हिल गया था। उन्होंने देश से गौरैया (sparrow) खत्म करने की मुहिम चलाई।

ये थी वजह

दरअसल 1958 में माओ जेडोंग (Mao Zedong), जिसे माओत्सेतुंग के नाम से भी जाना जाता है, ने एक मुहिम शुरू की। Four Pests Campaign नामक इस मुहिम के तहत नुक़सान पहुंचानेवाले 4 कीड़ों को मारने का फैसला हुआ- चूहे, जिनसे प्लेग फैलता है, मच्छर क्योंकि वे मलेरिया फैलाते हैं और मक्खियां जो कि हैजा फैलाती हैं। इनके साथ चौथी थी गौरैया। जेडोंग का मानना था कि ये चिड़िया फसल के दाने खा जाती है जिससे काफी नुकसान हो रहा है।

देश को उबारने के लिए फैसला

जेडोंग, जो तब People’s Republic of China के नेता थे, ऐसे तरीके खोज रहे थे, जिससे चीन के लोगों की जिंदगी बेहतर हो सके। दरअसल साल 1950 से देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था। इससे उबरने के लिए जेडोंग ने Great Leap Forward प्लान बनाया। इसके कई हिस्से थे। इन्हीं में से एक था Four Pests Campaign। नेता के अनुसार ये एक तरह का हाइजीन कैंपन था, जिससे लोगों की जान और अनाज दोनों बचने वाले थे।


चारों को मारने का अभियान तेजी से चल निकला

मक्खी, मच्छर और चूहे तो छिपने में माहिर थे लेकिन गौरैया की अपनी सीमाएं थीं। उन्हें ढूंढा जाने लगा और जहां भी वे बैठी दिखें, चीनी जनता ड्रम, टिन, थालियां बजाते हुए उनकी तरफ दौड़ पड़ती। बर्तनों का शोर करते हुए लोग चिड़ियों के पीछे लगातार भागते जाते और तब तक दौड़ते, जब तक कि चिड़िया थककर गिर न जाए या खुद ही दम न तोड़ दे। गौरैया का मरना सुनिश्चित करने के लिए उनके घोंसले खोजे जाते और उनके अंडे फोड़ दिए जाते। चिड़िया के बच्चों को जमीन पर पटक दिया जाता। गौरैया का मरना सुनिश्चित करने के लिए उनके घोंसले खोजे जाते और उनके अंडे फोड़ दिए जाते


खुशी से की मारने की शुरुआत

बड़ों के साथ बच्चे भी खूब खुशी से गौरैया के सामूहिक कत्ल का हिस्सा बनने लगे। इसके पीछे एक वजह ये भी थी कि जेडोंग ने गौरैया मारने पर इनाम रखा था। जो जितनी ज्यादा गौरैया मारता, उसे उसी हिसाब से इनाम दिया जाता। हत्यारों का सार्वजनिक सभा में सम्मान भी हुआ करता। यहां तक कि संस्थाएं, स्कूल और कॉलेजों में कंपीटिशन होता और उन्हें मेडल दिया जाता था, जो ज्यादा से ज्यादा गौरैया मारें। Radio Peking के मुताबिक गौरैया मारने के अभियान में देश के लगभग 3 लाख लोगों ने हिस्सा लिया।

दूतावास के बार दिया धरना

धीरे-धीरे हर उम्र और पेशे के लोग जेडोंग की नजरों में आने के लिए गौरैया मारने में जुट गए। कुछ वक्त बाद इस नन्ही चिड़िया को समझ आया कि कहां छिपा जा सकता है। इनका बड़ा सा झुंड पीकिंग के पोलैंड स्थित दूतावास में जा घुसा। पोलिश अधिकारियों को इस छोटी चिड़िया से कोई आपत्ति नहीं थी। उन्होंने गौरैया का पीछा कर रहे लोगों को दूतावास के भीतर आने से मना कर दिया। लेकिन जिद पर आए लोगों ने तब भी पीछा नहीं छोड़ा। वे दूतावास के बाहर बैठकर थालियां और ड्रम पीटने लगे।

2 दिन और 2 रात लगातार ये शोर हुआ। शोर से घबराया झुंड दूतावास की छत पर ही उड़कर टकराने लगा और आखिरकार दम तोड़ दिया। बाद में दूतावास में काम करने वाले लोगों ने फावड़े और बेलचे ले-लेकर मरी हुई चिड़ियों को बाहर फेंक दिया। आज भी गौरैया मारने के इस अभियान को दुनिया के सबसे बड़े environmental disasters (पर्यावरण की क्षति) में गिना जाता है।

Four Pests Campaign के बाद चूहे, मच्छर और मक्खियों का तो कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन पूरे चीन से गौरैया लगभग खत्म हो गई। गौरैया जैसी पर्यावरण की रक्षा करने वाली चिड़ियों को मारने का अंजाम साल 1960 में दिखाई दिया। जिस गौरैया को किसानों का दुश्मन और अनाज खाने वाला कहकर मार दिया गया था, वो असल में टिड्डियों को खाकर फसलों की रक्षा करती थीं। 1960 में फसल बहुत कम आई क्योंकि सारे धान पर टिड्डियां लग चुकी थीं। जेडोंग को तब तक अपनी गलती समझ आ चुकी थी।

भुखमरी से गई करोड़ों जानें

ये अप्रैल 1960 की बात है। उसने Four Pests Campaign की लिस्ट से गौरैया को हटाने और उसकी जगह टिड्डियों को मारने का आदेश जारी किया। कीटनाशक डाले जाने लगे। लेकिन इन 2 सालों में गौरैया न होने के कारण टिड्डियों और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले दूसरे कीड़ों की तादाद तेजी से बढ़ चुकी थी। पैदावार लगातार घटती गई और यहां तक कि इस वजह से चीन में भयंकर अकाल पड़ा। माना जाता है कि इस दौरान 2।5 करोड़ से भी ज्यादा चीनी आबादी मारी गई। इसे Great Chinese Famine के नाम से जाना जाता है। वैसे चीन के सरकारी आंकड़ों में भुखमरी से मौत के आंकड़े 1।5 करोड़ बताए जाते हैं।

चीन के पत्रकार Yang Jisheng ने इस दुर्घटना पर एक किताब Tombstone लिखी थी, जो चीन में ही बैन कर दी गई। इस किताब में पत्रकार ने जिक्र किया है कि कैसे भूख से मरते लोग अपनों की लाशों को ही खाने लगे थे।