Corona Effect / मोदी सरकार ने पिछले एक महीने में चीन को क्यों दिए ये तीन बड़े झटके?

AajTak : May 25, 2020, 04:02 PM
Coronavirus: कोरोना वायरस की महामारी ने दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। एक तरफ, सुपरपावर अमेरिका चीन से सभी संबंधों को खत्म करने की बात कर रहा है तो दूसरी तरफ, यूरोप के देश चीन के खिलाफ कोरोना वायरस की जांच कराने की मांग कर रहे हैं। चीन पर सवाल केवल यूरोप और अमेरिका से ही नहीं उठ रहे हैं बल्कि भारत ने भी उसके खिलाफ कई कदम उठाए हैं।

FDI के नियमों में सख्ती

पिछले 30 दिनों में भारत ने चीन को सीधे प्रभावित करने वाले कई कदम उठाए हैं। सबसे पहले भारत ने शुरुआत की विदेशी निवेश (FDI) के नियमों में बदलाव कर। अप्रैल महीने में भारत ने चीन से होने वाले निवेश के ऑटोमैटिक रूट को बंद कर दिया था और चीनी निवेश के पहले भारत सरकार की मंजूरी अनिवार्य कर दी। भारत को आशंका थी कि कोरोना वायरस की महामारी में भारतीय कंपनियों का कारोबार ठप पड़ा है और इसका फायदा उठाकर चीनी कंपनियां इनका सस्ते में टेकओवर कर सकती हैं।

भारत के इस कदम के बाद चीन की तरफ से तुरंत प्रतिक्रिया आई। चीन ने भारत के इस कदम को एकतरफा और विश्व व्यापार संगठन के नियमों के खिलाफ बताकर नाराजगी भी जताई थी। यहां तक कि चीनी मीडिया ने भारत को मेडिकल सप्लाई बैन करने की ही धमकी दे दी थी। चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था, "भारत मेडिकल सप्लाई के लिए काफी हद तक चीन पर निर्भर है और भारतीय कंपनियों के कथित अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने की कोशिश इस संकट की घड़ी में भारत के लिए सप्लाई के रास्ते में ही मुश्किल खड़ी करेगी।"

कोरोना महामारी के बीच चीन से कई कंपनियां अपना कारोबार समेटकर भारत आना चाह रही हैं। इसे लेकर भी चीन परेशान है। भारत के वर्ल्ड फैक्ट्री बनने की रिपोर्ट्स पर चीनी मीडिया ने कहा था कि भारत चीन की जगह लेने की कोशिश कर रहा है लेकिन वह इसमें कभी कामयाब नहीं होगा। चीन में यह चिंता उस समय जताई गई जब पिछले दिनों जर्मनी की एक जूता कंपनी ने अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चीन से उत्तर प्रदेश शिफ्ट करने की बात कही।

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था, उत्तर प्रदेश में चीन में मैन्युफैक्चरिंग करने वाली उन कंपनियों को जो शिफ्ट करने की योजना बना रही है, को आकर्षित करने के लिए एक आर्थिक टास्क फोर्स का गठन बनाया है। हालांकि, इस तरह के प्रयासों के बावजूद, कोरोना महामारी के दौर में आर्थिक दबाव के बीच चीन को पीछे छोड़कर भारत का दुनिया की अगली फैक्टरी बनने की उम्मीद कम ही है।

कोरोना वायरस की जांच को समर्थन

भारत ने पिछले हफ्ते चीन के खिलाफ एक और कदम उठाया। कोरोना वायरस की महामारी के संबंध में सबसे पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि कोरोना वायरस प्राकृतिक नहीं है और यह किसी लैब में पैदा हुआ है। इसके बाद, भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की बैठक में कोरोना वायरस की उत्पत्ति की स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय जांच का भी समर्थन किया।

इससे पहले, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया की तरफ से इस तरह की जांच की मांग उठती रही है। भारत ने पहली बार इस तरह की जांच में शामिल होने के लिए औपचारिक रूप से हामी भरी। इस प्रस्ताव में भले ही चीन या वुहान का जिक्र नहीं था लेकिन जाहिर तौर पर जांच शुरू होने से चीन की मुश्किलें बढ़ेंगी।

ताइवान पर कूटनीतिक दबाव?चीन ताइवान को लेकर भी कूटनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। ताइवान को चीन 'एक देश दो सिस्टम' का हिस्सा मानता है जबकि ताइवान खुद को स्वतंत्र मानता है। हॉन्गकॉन्ग भी इसी सिस्टम के तहत चीन का हिस्सा है। भारत वैसे तो शुरू से ताइवान को लेकर बीजिंग की 'वन चाइना पॉलिसी' को मानता रहा है और उसके साथ किसी भी तरह के कूटनीतिक संबंध स्थापित नहीं किए हैं लेकिन अब इस नीति में बदलाव के संकेत मिलते दिख रहे हैं। पिछले हफ्ते जब ताइवान की साई इंग-वेन ने दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली तो समारोह में बीजेपी के दो सांसदों का भी बधाई संदेश दिखाया गया। बीजेपी के दोनों सांसद 41 देशों के उन प्रतिनिधियों में शामिल थे जिन्होंने ताइवान की राष्ट्रपति को बधाई संदेश दिया।

ताइवान की राष्ट्रपति साई-इंग वेन चीन के वन नेशन टू सिस्टम को सिरे से खारिज करती रही हैं। चीन ताइवान की सरकार के साथ-साथ उन देशों का भी खुलकर विरोध करता है जो उसे समर्थन देने या उसके साथ संबंध मजबूत करने की कोशिश करते हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री ने इसी सप्ताह जब ताइवान के लोकतांत्रिक मूल्यों की सराहना करते हुए राष्ट्रपति साई इंग को बधाई दी तो चीन ने अंजाम भुगतने तक की धमकी दे डाली थी। जाहिर है कि मोदी सरकार के इस कदम से चीन की चिंता बढ़ी होगी।

एक तरफ बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने ताइवान की खूब तारीफ की और बधाई संदेश भेजा तो दूसरी तरफ चीन पर जमकर निशाना साधा। ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख में कहा था कि भारत चीन की जगह लेने का सपना देख रहा है। इस आर्टिकल को ट्वीट करते हुए बीजेपी सांसद ने जवाब दिया, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रोपेगैंडा मशीनरी की परेशानी समझी जा सकती है! जहां तक चीन की जगह लेने की बात है, हमें ऐसा करने की ना तो जरूरत है और ना ही ऐसी कोई इच्छा है। भारत का वैश्विक इतिहास में अपना स्थान रहा है और वह उस पर ही फिर से दावा कर रहा है।

बदलती आर्थिक और रणनीतिक पृष्ठभूमि के बीच पिछले कुछ दिनों में भारत-चीन की सेनाओं के बीच तनाव भी बढ़ गया है। पूर्वी लद्दाख में LAC से लगे इलाके पैगोंग शो और गालवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पिछले कई दिनों से झड़प की घटनाएं सामने आई हैं। दरअसल, उत्तरी लद्दाख इलाके पर चीन अपना कब्जा जताना चाहता है इसीलिए यहां भारत की तरफ से हो रहे निर्माण कार्य को लेकर विरोध जता रहा है। लद्दाख के अलावा सिक्किम में भी सीमा पर दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आ गए थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन के सैन्य दबाव बनाने के बावजूद भारत निर्माण कार्य नहीं छोड़ेगा।

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