AajTak : Apr 03, 2020, 01:42 PM
कोरोना अलर्ट: पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से असहाय नजर आ रही है। इस महामारी की चपेट में आने से अब तक दुनिया भर में 53 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। सबसे हैरान करने वाली बात है कि ज्यादातर मरने वाले लोग कोई तीसरी दुनिया के नहीं बल्कि विकसित दुनिया के लोग हैं।
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए विभिन्न देशों ने अलग-अलग तरह से लड़ाई शुरू की। दुनिया के कुछ ऐसे देश हैं जिन्होंने कोरोना के संक्रमण की लड़ाई को बहुत ही गंभीरता से लिया और इस मामले में बाकी के देशों से आगे रहे। यहां हम उन्हीं देशों की बात कर रहे हैं। चीन कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई। चीन के पास सार्स की महामारी से लड़ने का अनुभव था और यह अनुभव कोरोना वायरस के संक्रमण में भी काम आया। चीन ने कोरोना वायरस के फैलने का इंतजार नहीं किया बल्कि लोगों की पहचान करना शुरू किया कि कौन कोरोना वायरस से संक्रमित है और कौन नहीं।चीन ने मार्च के आखिर तक तीन लाख 20 हजार से ज्यादा टेस्ट किए। कोरोना वायरस के टेस्ट की प्रक्रिया सबसे पहले चीन में ही विकसित हुई और इसकी विस्तृत जानकारी वुहान में लॉकडाउन से ठीक पहले 24 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर पोस्ट की गई। हॉन्ग कॉन्ग की एक टीम ने सार्स की शिनाख्त के लिए काम किया था, उसने भी इसमें मदद की। चीन दुनिया में सबसे ज्यादा केमिकल का उत्पादन करता है। दवाइयों के लिए कच्चा माल सबसे ज्यादा चीन में ही तैयार होता है। भारत अगर दुनिया में सबसे ज्यादा जेनरिक दवाइयों का निर्यात करता है तो उसका कच्चा माल चीन से ही आता है। ऐसे में चीन ने कोरोना वायरस की जांच के लिए तेजी से किट्स का निर्माण शुरू कर दिया।जर्मनी भी इस बात को समझ गया था कि कोरोना वायरस वैश्विक समस्या बनने जा रहा है। ऐसे में उसने भी इससे लड़ने की तैयारी शुरू कर दी थी। जब ज्यादातर देश कोरोना को चीन की घरेलू समस्या मानकर बैठे थे, ऐसे में जनवरी की शुरुआत में ही बर्लिन के वैज्ञानिक ओलफर्ट लैंड्ट ने अपने शोध में पाया कि यह सार्स से मिलता जुलता है और उन्होंने महसूस किया कि इसके लिए टेस्टिंग किट की जरूरत पड़ेगी। हालांकि, जब जर्मनी के पास कोरोना का कोई अनुवांशिकी सिक्वेंस नहीं था लेकिन ओलफर्ट और उनकी टीम ने सार्स के आधार पर किट बनाया। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर इसकी प्रक्रिया 17 जनवरी को ही प्रकाशित हो गई। जाहिर है यह काम जर्मनी ने चीन से पहले कर लिया। ब्रिटिश सरकार ने भी इस किट को मान्यता दी। फरवरी के आखिर तक ओलफर्ट और उनकी टीम ने 40 लाख किट बना लिए। इसके बाद जर्मनी में बड़ी संख्या में लोगों का टेस्ट होने लगा। जर्मनी ने हर दिन 12 हजार लोगों का टेस्ट करना शुरू कर दिया। दक्षिण कोरिया ने भी इस मामले में बहुत ही आक्रामक रुख अपनाया। यहां भी बड़ी संख्या में लोगों का टेस्ट शुरू हुआ। यहां तक कि कार पार्किंग और मॉल में भी टेस्ट किया जाने लगा। तब ब्रिटेन इसे बहुत गंभीरता से नहीं ले रहा था। ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन ने कहा कि कोरोना वायरस शायद ही और पैर पसारे। दूसरी तरफ, दक्षिण कोरिया ने वुहान से सबक सीखा था और उसने समझ लिया था कि इसका संक्रमण केवल वुहान तक ही सीमित नहीं रहेगा। टेस्ट में जिन लोगों का भी पॉजिटिव केस आया, उन्हें दक्षिण कोरिया ने अलग करना शुरू किया। दक्षिण कोरिया ने हर दिन 15 हजार लोगों के टेस्ट की क्षमता विकसित की। दक्षिण कोरिया ने लाखों टेस्ट बिना कोई चार्ज के किए। कई जगह टेस्टिंग बूथ बनाए गए थे। टेस्ट का रिजल्ट मोबाइल पर मेसेज और फोन के जरिए बताए जाते थे। टेस्ट करने वाले किट लेकर पार्क, कार पार्किंग और मॉल में भी घूमते रहते थे। इसी सक्रियता के कारण दक्षिण कोरिया ने कोरोना वायरस को कंट्रोल में किया। आइसलैंड छोटा और तुलनात्मक रूप से अमीर देश है। कोरोना वायरस की टेस्टिंग में आइसलैंड ने कोई चूक नहीं की। दुनिया भर में कोरोना वायरस का जिस अनुपात में टेस्ट में आइसलैंड में हुआ, उतना कहीं नहीं हुआ। जिनमें किसी भी तरह का कोई लक्षण नहीं था, उनका भी टेस्ट किया गया। आइसलैंड के महामारी विशेषज्ञ थोरोल्फर गुआनसन ने बज फीड से कहा कि आइलैंड की आबादी के कारण यहां टेस्ट की पर्याप्त क्षमता विकसित कर ली गई थी। उनका कहना है कि व्यापक पैमाने पर टेस्ट के कारण ही इसे नियंत्रित किया जा सका है।जर्मनी के बाद इटली ने कोरोना वायरस की टेस्टिंग सबसे ज्यादा की। यहां दो लाख से ज्यादा लोगों के टेस्ट किए गए। हालांकि, इसके बावजूद इटली में दुनिया भर में सबसे ज्यादा मौत कोरोना वायरस के कारण हुई। इटली में जर्मनी की तुलना में कोरोना वायरस से मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। मार्च के अंत तक इटली में कोरोना वायरस के संक्रमण से मृत्यु दर 11 फीसदी थी जबकि पड़ोसी जर्मनी में महज एक फीसदी, चीन में चार फीसदी और दुनिया भर में सबसे कम मृत्यु दर इजरायल में 0।35 फीसदी है। एक बात तो यह कही जा रही है कि संक्रमण की जांच कैसे और किस पैमाने पर की जा रही है, इससे मृत्यु दर पर सीधा असर पड़ता है।इटली में भी टेस्ट व्यापक पैमाने पर हुआ है लेकिन यहां मृत्यु दर ज्यादा होने के पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं। जैसे इटली में जापान के बाद दुनिया की सबसे ज्यादा बुजुर्ग आबादी रहती है। इसके अलावा, इटली में इनफ्लुएंजा से पीड़ित लोग बड़ी संख्या थे। ऐसे में किसी नए वायरस का संक्रमण आसानी से फैलता है। इटली की संस्कृति को भी कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने के लिए एक कारण के तौर पर देखा जा रहा है। इटली में लोग समूहों में खूब मिलते जुलते और एक दूसरे को अभिवादन भी चूम कर करते हैं। जापान में भी बुजुर्ग आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है लेकिन यहां के लोग एकांत प्रिय होते हैं, इसलिए संक्रमण उतना तेजी से नहीं फैला।
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए विभिन्न देशों ने अलग-अलग तरह से लड़ाई शुरू की। दुनिया के कुछ ऐसे देश हैं जिन्होंने कोरोना के संक्रमण की लड़ाई को बहुत ही गंभीरता से लिया और इस मामले में बाकी के देशों से आगे रहे। यहां हम उन्हीं देशों की बात कर रहे हैं। चीन कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई। चीन के पास सार्स की महामारी से लड़ने का अनुभव था और यह अनुभव कोरोना वायरस के संक्रमण में भी काम आया। चीन ने कोरोना वायरस के फैलने का इंतजार नहीं किया बल्कि लोगों की पहचान करना शुरू किया कि कौन कोरोना वायरस से संक्रमित है और कौन नहीं।चीन ने मार्च के आखिर तक तीन लाख 20 हजार से ज्यादा टेस्ट किए। कोरोना वायरस के टेस्ट की प्रक्रिया सबसे पहले चीन में ही विकसित हुई और इसकी विस्तृत जानकारी वुहान में लॉकडाउन से ठीक पहले 24 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर पोस्ट की गई। हॉन्ग कॉन्ग की एक टीम ने सार्स की शिनाख्त के लिए काम किया था, उसने भी इसमें मदद की। चीन दुनिया में सबसे ज्यादा केमिकल का उत्पादन करता है। दवाइयों के लिए कच्चा माल सबसे ज्यादा चीन में ही तैयार होता है। भारत अगर दुनिया में सबसे ज्यादा जेनरिक दवाइयों का निर्यात करता है तो उसका कच्चा माल चीन से ही आता है। ऐसे में चीन ने कोरोना वायरस की जांच के लिए तेजी से किट्स का निर्माण शुरू कर दिया।जर्मनी भी इस बात को समझ गया था कि कोरोना वायरस वैश्विक समस्या बनने जा रहा है। ऐसे में उसने भी इससे लड़ने की तैयारी शुरू कर दी थी। जब ज्यादातर देश कोरोना को चीन की घरेलू समस्या मानकर बैठे थे, ऐसे में जनवरी की शुरुआत में ही बर्लिन के वैज्ञानिक ओलफर्ट लैंड्ट ने अपने शोध में पाया कि यह सार्स से मिलता जुलता है और उन्होंने महसूस किया कि इसके लिए टेस्टिंग किट की जरूरत पड़ेगी। हालांकि, जब जर्मनी के पास कोरोना का कोई अनुवांशिकी सिक्वेंस नहीं था लेकिन ओलफर्ट और उनकी टीम ने सार्स के आधार पर किट बनाया। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर इसकी प्रक्रिया 17 जनवरी को ही प्रकाशित हो गई। जाहिर है यह काम जर्मनी ने चीन से पहले कर लिया। ब्रिटिश सरकार ने भी इस किट को मान्यता दी। फरवरी के आखिर तक ओलफर्ट और उनकी टीम ने 40 लाख किट बना लिए। इसके बाद जर्मनी में बड़ी संख्या में लोगों का टेस्ट होने लगा। जर्मनी ने हर दिन 12 हजार लोगों का टेस्ट करना शुरू कर दिया। दक्षिण कोरिया ने भी इस मामले में बहुत ही आक्रामक रुख अपनाया। यहां भी बड़ी संख्या में लोगों का टेस्ट शुरू हुआ। यहां तक कि कार पार्किंग और मॉल में भी टेस्ट किया जाने लगा। तब ब्रिटेन इसे बहुत गंभीरता से नहीं ले रहा था। ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन ने कहा कि कोरोना वायरस शायद ही और पैर पसारे। दूसरी तरफ, दक्षिण कोरिया ने वुहान से सबक सीखा था और उसने समझ लिया था कि इसका संक्रमण केवल वुहान तक ही सीमित नहीं रहेगा। टेस्ट में जिन लोगों का भी पॉजिटिव केस आया, उन्हें दक्षिण कोरिया ने अलग करना शुरू किया। दक्षिण कोरिया ने हर दिन 15 हजार लोगों के टेस्ट की क्षमता विकसित की। दक्षिण कोरिया ने लाखों टेस्ट बिना कोई चार्ज के किए। कई जगह टेस्टिंग बूथ बनाए गए थे। टेस्ट का रिजल्ट मोबाइल पर मेसेज और फोन के जरिए बताए जाते थे। टेस्ट करने वाले किट लेकर पार्क, कार पार्किंग और मॉल में भी घूमते रहते थे। इसी सक्रियता के कारण दक्षिण कोरिया ने कोरोना वायरस को कंट्रोल में किया। आइसलैंड छोटा और तुलनात्मक रूप से अमीर देश है। कोरोना वायरस की टेस्टिंग में आइसलैंड ने कोई चूक नहीं की। दुनिया भर में कोरोना वायरस का जिस अनुपात में टेस्ट में आइसलैंड में हुआ, उतना कहीं नहीं हुआ। जिनमें किसी भी तरह का कोई लक्षण नहीं था, उनका भी टेस्ट किया गया। आइसलैंड के महामारी विशेषज्ञ थोरोल्फर गुआनसन ने बज फीड से कहा कि आइलैंड की आबादी के कारण यहां टेस्ट की पर्याप्त क्षमता विकसित कर ली गई थी। उनका कहना है कि व्यापक पैमाने पर टेस्ट के कारण ही इसे नियंत्रित किया जा सका है।जर्मनी के बाद इटली ने कोरोना वायरस की टेस्टिंग सबसे ज्यादा की। यहां दो लाख से ज्यादा लोगों के टेस्ट किए गए। हालांकि, इसके बावजूद इटली में दुनिया भर में सबसे ज्यादा मौत कोरोना वायरस के कारण हुई। इटली में जर्मनी की तुलना में कोरोना वायरस से मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। मार्च के अंत तक इटली में कोरोना वायरस के संक्रमण से मृत्यु दर 11 फीसदी थी जबकि पड़ोसी जर्मनी में महज एक फीसदी, चीन में चार फीसदी और दुनिया भर में सबसे कम मृत्यु दर इजरायल में 0।35 फीसदी है। एक बात तो यह कही जा रही है कि संक्रमण की जांच कैसे और किस पैमाने पर की जा रही है, इससे मृत्यु दर पर सीधा असर पड़ता है।इटली में भी टेस्ट व्यापक पैमाने पर हुआ है लेकिन यहां मृत्यु दर ज्यादा होने के पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं। जैसे इटली में जापान के बाद दुनिया की सबसे ज्यादा बुजुर्ग आबादी रहती है। इसके अलावा, इटली में इनफ्लुएंजा से पीड़ित लोग बड़ी संख्या थे। ऐसे में किसी नए वायरस का संक्रमण आसानी से फैलता है। इटली की संस्कृति को भी कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने के लिए एक कारण के तौर पर देखा जा रहा है। इटली में लोग समूहों में खूब मिलते जुलते और एक दूसरे को अभिवादन भी चूम कर करते हैं। जापान में भी बुजुर्ग आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है लेकिन यहां के लोग एकांत प्रिय होते हैं, इसलिए संक्रमण उतना तेजी से नहीं फैला।