देश / संकट में बेहिसाब नोट छापकर RBI क्यों नहीं करता मदद? जान लें हकीकत

AajTak : May 22, 2020, 05:58 PM
दिल्ली: बहुत लोगों के मन में ऐसे सवाल आते होंगे कि आखिर जब देश की अर्थव्यवस्था संकट में होती है तो भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) बेहिसाब नोट छापकर सरकार की मदद क्यों नहीं करता? खासकर कोरोना के दौर में तो रिजर्व बैंक से यह उम्मीद लोगों की और बढ़ गई है। गूगल और कोरा जैसे प्लेटफॉर्म पर भी ऐसे सवाल खूब पूछे जाते हैं।

अब तो रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कह दिया है कि रिजर्व बैंक को अतिरिक्त नोट छापकर इस समय मदद करनी चाहिए। हम यहां आपको पूरी जानकारी दे रहे हैं कि नोट छापना क्यों आसान नहीं होता और रिजर्व बैंक आखिर इससे क्यों बचता है?

हाल में भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि इस समय अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए खर्च बढ़ाने की जरूरत है। ऐसा नहीं किया गया तो नुकसान होगा। उन्होंने इस असाधारण समय में गरीबों व प्रभावितों के साथ अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिए सरकारी कर्ज के लिए रिजर्व बैंक की ओर से अतिरिक्त नोट जारी किए जाने और राजकोषीय घाटे की सीमा बढ़ाने की वकालत की।

असल में ज्यादा नोट छापने से जो समस्या होती है उसे देखते हुए रिजर्व बैंक ही नहीं, कोई भी केंद्रीय बैंक असीमित करेंसी छापने से बचता है। पहले जिन देशों ने ऐसी कोशिश की उनको इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है।

कैसे तय होता है कि कितना नोट छापना है-

किसी वित्त वर्ष में कितनी करेंसी छापनी है इस​के लिए रिजर्व बैंक सबसे पहले यह देखता है कि  सर्कुलेशन में कितनी मुद्रा है। इसके अलावा इकोनॉमी और अन्य कई फैक्टर्स पर विचार किया जाता है। उसके बाद यह फैसला लिया जाता है कि कितनी करेंसी छापी जाए। RBI द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019 में देश में नोटों का सर्कुलेशन 21।1 लाख करोड़ रुपये रहा था। बेहिसाब

नोट छापने से बेतहाशा बढ़ेगी महंगाई-

होरैसिस विजन कम्युनिटी थिंक टैंक के संस्थापक और विश्व आर्थ‍िक मंच के पूर्व निदेशक फ्रैंक जर्गन रिक्टर का कहना है कि इससे बेतहाशा महंगाई बढ़ जाएगी। उनके मुताबिक जब अचानक सब लोगों के पास काफी ज्यादा पैसा आएगा, तो उनकी अपेक्षाएं भी बढ़ जाएंगी, लोग खूब खर्च करेंगे। इसके चलते सामान की कीमतें भी आसमान पर पहुचेंगी।

करोड़पति भी हो जाएंगे गरीब-

बेतहाशा करेंसी छापने का आलम यह होगा कि जिनके पास करोड़ों रुपये होंगे वह भी गरीब कहलाने लगेंगे। असल में पहले जो सामान 10 रुपये का मिलता था, अब उसकी कीमत सैकड़ों गुना बढ़ जाएगी। इस तरह लोगों के पास करोड़ों रुपये होने के बावजूद उनकी वैल्यू काफी कम हो जाएगी और वे अमीर नहीं रह जाएंगे। इससे सर्कुलेशन में नकली नोटों की भरमार होना शुरू हो जाएगी, शेयर बाजार भी धड़ाम हो जाएगा। ऐसे हालात में आपको 1 लीटर दूध या एक किलो प्याज लेने के लिए हजारों-लाखों रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं।

इन देशों ने भुगता है दर्द-

करेंसी बेतहाशा छापने से क्या हालात होते हैं, यह जिम्बाबवे वेनेजुएला के लोगों से बेहतर कोई और नहीं बता सकता। हाल के वर्षों में वेनेजुएला इसकी वजह से गंभीर हालात से जूझता रहा है। दरअसल, वहां के केंद्रीय बैंक ने इकोनॉमी को संभालने के लिए बेतहाशा नोट छापे। इस देश में 1 करोड़ और एक खरब का नोट भी छापा गया है।आलम यह रहा है कि साल 2018 में वहां महंगाई 18 लाख फीसदी तक बढ़ गई। लोग भूख से तड़पने लगे, सुपरमार्केट में सामान नहीं मिल रहा था। वहां एक लीटर दूध और अंडे खरीदने की खातिर लोगों को लाखों रुपये खर्च करने पड़े।

दरअसल, असीमित नोट छापने की वजह से वहां की मुद्रा की वैल्यू डॉलर के मुकाबले एकदम गिर गई। वहां के 25 लाख बोलिवर एक डॉलर के बराबर हो गए। मुद्रा पूरी तरह से धराशाई हो गई और लोग करेंसी कूड़े में फेकने लगे। इसी तरह के संकट से जूझ रहे जिम्बाबवे में साल 2008 में महंगाई 79।6 अरब फीसदी तक पहुंच गई थी।

इन उदाहरणों को देखकर आप समझ गए होंगे कि रिजर्व बैंक ज्यादा नोट छापने से क्यों बचता है। रिजर्व बैंक ही नहीं, कोई भी केंद्रीय बैंक भला यह जोखिम क्यों लेना चाहेगा? 

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