Lockdown / लॉकडाउन में राहत के बाद भी पहले जैसी ग्रोथ क्यों नहीं कर पा रही भारतीय अर्थव्यवस्था?

Jansatta : Jul 14, 2020, 09:08 AM
Lockdown: बीते सप्ताह हमें दो अलग-अलग स्टोरीज पढ़ने को मिली थीं, लेकिन दोनों का आपस में जुड़ाव था। पहली खबर अमेरिका के मैसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के हवाले से थी, जिसने अपनी स्टडी में आशंका जताई थी कि भारत में 2021 की शुरुआत में हर दिन कोरोना के मामलों का आंकड़ा 2.87 लाख के लेवल तक पहुंच सकता है। कोरोना की तब तक कोई दवा ईजाद न होने पर यह स्थिति पैदा होगी। स्टडी के अनुसार सर्दियों के अंत तक कोरोना के नए मामले सबसे ज्यादा भारत में सामने आएंगे।

अगली खबर लॉकडाउन में रियायत के बाद भारत में आर्थिक गतिविधियों में तेज से जुड़ी थी। रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन में रियायत के बाद आर्थिक गतिविधियां तेज होती दिखी हैं। हालांकि मोबिलिटी डेटा, जॉब्स डेटा, बिजली के उपभोग के डेटा की बात करें तो इनकी बढ़ोतरी में कोरोना से पहले के दौर के मुकाबले गिरावट की स्थिति देखने को मिली है। ये दोनों ही खबरें आपस में जुड़ी हुई हैं। पहली खबर हमें यह बताती है कि कोरोना की महामारी को लेकर अब भी अनिश्चितता की स्थिति है। कोई भी यह नहीं कह सकता कि कोरोना के केसों का पीक कब होगा और कब इनके आंकड़ो में गिरावट आनी शुरू होगी।

अनिश्चितता की इस स्थिति के गहरे प्रभाव दिख रहे हैं। इससे अर्थव्यवस्था में तेजी का कोई भी अवसर पैदा होना मुश्किल है। सामान्य कारोबारी गतिविधियां नहीं चल पा रही हैं। हर सप्ताह किसी शहर, जिले या राज्य में हमें लॉकडाउन जैसी पाबंदियों की खबरें सुनने को मिल रही हैं। पिछले सप्ताह एक इंटरनेशनल ब्रोकरेज फर्म ने भारत की जीडीपी ग्रोथ को लेकर भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि इस साल अर्थव्यवस्था में गिरावट देखने को मिलेगी, लेकिन अगले साल उतनी ही तेजी रहेगी। हालांकि विश्लेषक ने इस आशावाद को लेकर कोई ठोस कारण नहीं बताया था।

टेस्ट क्रिकेट बीते सप्ताह से शुरू हो चुका है और यदि इस खेल की भाषा में ही बात करें तो कोरोना का संकट एक तरह से ग्राहकों और कारोबारियों को ऑफ साइड बॉलिंग की तरह है। हम हर बॉल को खेलने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन सभी को मिस कर रहे हैं। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि कोरोना के चलते अर्थव्यवस्था को किस हद तक नुकसान पहुंचा है, इसका सटीक आंकड़ा तभी सामने आ पाएगा, जब कोरोना के मामलों का पीक गुजर जाएगा।

हर गुजरते सप्ताह और महीने का विश्लेषण करें तो अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता से कम परफॉर्म कर पा रही है। इसका सीधा अर्थ है कि लोगों की कमाई में कमी आई है और उसके चलवे उन्होंने अपने खर्च पर भी लगाम कसी है। इसी के चलते कारोबारी नए लोन लेने से बच रहे हैं और उत्पादन में लगातार कटौती की जा रही है। ऐसी स्थिति में बैंक नए लोन जारी करने को लेकर अनिश्चित हैं क्योंकि पुराने लोन तेजी से एनपीए में तब्दील होते नजर आ रहे हैं।

पिछले सप्ताह ही आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एनपीए में इजाफे और सरकारी एवं निजी बैंकों की पूंजी के क्षरण की संभावना को एक तरह से खारिज किया था। फिर रास्ता क्या है? दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना के संकट से पहले ही सुस्ती के दौर से गुजर रही थी। इसलिए कोरोना के बाद संकट से बाहर निकलने में सामान्य से ज्यादा वक्त लगेगा। हमें अपनी नीतियां सटीक और लक्ष्य केंद्रित बनानी होंगी, तभी कोरोना के संकट से निपटा जा सकता है। हमें अपने बैंकों में तत्काल सुधार करना होगा। 2014 में पीजे नायक कमिटी ने बैंकिंग सेक्टर में कुछ बड़े सुधारों का सुझाव दिया था, लेकिन बेहद मामूली बदलावों के साथ ही पुरानी व्यवस्था कायम है।

यही वजह है कि हर गुजरते साल के साथ पब्लिक सेक्टर के बैंकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था को अपने पैरों पर खड़ा करने या फिर आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग-अलग सेक्टरों के आधार पर सुधार की रणनीति अपनानी होगी।

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