अमेरिका WHO से औपचारिक तौर पर बाहर / अमेरिका चीन को क्यों बनने दे रहा चौधरी? ट्रंप ने खुद दिए ये 12 मौके

AajTak : Jul 08, 2020, 04:38 PM
America: जिन अंतरराष्ट्रीय संगठनों और समझौतों में कभी अमेरिका का दबदबा हुआ करता था, अब अमेरिका खुद ही उनसे अलग हो रहा है। अमेरिका बुधवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से औपचारिक तौर पर बाहर हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दलील है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन में अब चीन का वर्चस्व हो गया है।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद कई अंतरराष्ट्रीय संगठन अस्तित्व में आए थे ताकि आपसी सहयोग के जरिए एक बेहतर और टकराव मुक्त दुनिया बनाई जा सके। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध की त्रासदी ने सबकी आंखें खोल दी थीं। लेकिन अब एक बार फिर से लग रहा है ये संगठन अप्रासंगिक हो गए हैं। सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया एकध्रुवीय हो गई थी। अमेरिका का दबदबा पूरी दुनिया में था और यह अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भी था। यूएन की हर नीति में अमेरिका की छाप जरूर दिखती थी। लेकिन अब यह ट्रेंड पुराना पड़ता दिख रहा है।

डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता में आने से पहले ही अपने चुनावी कैंपेन में 'अमेरिका फर्स्ट' का नारा दिया। इससे साफ था कि ट्रंप दुनिया में बोरिया बिस्तर समेट अमेरिका पर फोकस होना चाहते हैं। सत्ता में आने के बाद ही उन्होंने यह काम शुरू कर दिया। जाहिर है कि यह चीन के लिए मौके की तरह था और उसने इसे लपक लिया। अब चीन के बढ़ते प्रभाव तो देखकर यही लगता है कि किसी भी अंतराष्ट्रीय टकराव और विवाद में चीन का रुख क्या है, इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। कई लोग कहने लगे हैं कि चीन अब इस नई दुनिया का नया चौधरी है।

रणनीतिक, सैन्य और आर्थिक हितों की पूर्ति करने के लिए अमेरिका दशकों से जिन वैश्विक संगठनों या संधियों का हिस्सा रहा, ट्रंप की नजरों में अब वे बेकार पड़ चुके हैं। ट्रंप कई संधियों या संगठनों से अमेरिका को बाहर कर चुके हैं या फिर फंडिंग में कटौती कर उन्हें कमजोर कर दिया है। ट्रंप ने सत्ता में आते ही साफ कर दिया था कि वह अमेरिका फर्स्ट की रणनीति पर काम करेंगे। एशिया में जापान और दक्षिण कोरिया के साथ अमेरिका के खास रिश्ते थे। दोनों देशों की सेना और उनकी सुरक्षा में अमेरिका की अहम भूमिका रही है। लेकिन ट्रंप ने साफ कह दिया कि जापान अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद ले। दक्षिण कोरिया के मामले में भी ट्रंप ने यही किया। दक्षिण कोरिया को उत्तर कोरिया से सबसे ज्यादा खतरा है लेकिन ट्रंप ने किम जोंग उन से बात करना ज्यादा ठीक समझा।


ट्रंप के लिए अंतरराष्ट्रीय राजनीति में डिप्लोमैसी, मानवाधिकार, लोकतंत्र, महिला अधिकार जैसे आधुनिक मूल्यों से ज्यादा अहम आर्थिक हित रहे। इसे हम सऊदी अरब और कनाडा को मिसाल के तौर पर ले सकते हैं। कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति शपथ लेने के बाद पहला विदेशी दौरा कनाडा या मेक्सिको का करता था लेकिन ट्रंप ने सऊदी अरब को चुना। ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की मार केवल कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया, और मेक्सिको पर ही नहीं पड़ी बल्कि इसका शिकार भारत भी बना। भारत को अमेरिका से निर्यात में कई तरह की छूट मिलती थी जिसे ट्रंप ने खत्म कर दिया और भारत की आर्थिक नीतियों की आलोचना भी की।

ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद से अब तक 12 संगठनों और संधियों से अमेरिका को बाहर कर चुके हैं और उनके इन फैसलों से दुनिया पर गहरा प्रभाव पड़ा है। जानिए वो कौन-कौन से संगठन और संधियां हैं-


ट्रांस-पैसेफिक पार्टनरशिप (TPP)-

नवंबर 2016 में डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के कुछ दिन बाद ही इस व्यापार समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया था। इसमें कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया समेत प्रशांत क्षेत्र के 12 देश और आसियान (ASEAN) देश शामिल थे। ट्रंप चुनाव से पहले भी ट्रांस-पैसेफिक पार्टनरशिप के आलोचक थे। ट्रंप इसे अमेरिका के लिए एक बेहद खराब डील कहते थे। ट्रंप ने यहां तक कह दिया था कि इस समझौते में शामिल होना चीन को मजबूत करना है। हालांकि चीन इस समझौते का हिस्सा नहीं था। अगर अमेरिका ट्रांस-पैसेफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) से बाहर ना निकलता तो इसकी वैश्विक जीडीपी में 40 फीसदी हिस्सेदारी होती।


पेरिस जलवायु समझौता-

लंबे वक्त तक चलीं कोशिशों के बाद पेरिस जलवायु समझौता, 2015 अस्तित्व में आया था। इस पर 196 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते में बड़े और छोटे देशों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि, ट्रंप इस समझौते को घाटे का सौदा बताते हुए जून 2017 में इससे बाहर हो गए। ट्रंप ने साथ ही कहा कि अमेरिका इस समझौते पर अपनी शर्तों पर फिर से शामिल होने पर विचार कर सकता है। उन्होंने कहा था कि समझौते में अमेरिका को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है जबकि दूसरे देशों पर कोई बोझ नहीं डाला जा रहा है। ट्रंप ने चीन और भारत का विशेष तौर पर जिक्र किया था। अमेरिका और दुनिया भर के पर्यावरणविदों ने अमेरिका के इस फैसले की जमकर आलोचना की थी।


यूनेस्को (UNESCO)

अक्टूबर 2017 में अमेरिका और इजरायल एक साथ संयुक्त राष्ट्र के सांस्कतिक और शैक्षणिक संगठन यूनेस्को से बाहर हो गए। अमेरिका 195 सदस्यीय संगठन पर इजरायल के खिलाफ पूर्वाग्रह अपनाने का आरोप लगाता रहा है। इसके बाद, दिसंबर 2017 में 'अमेरिका ग्लोबल कॉम्पैक्ट फॉर माइग्रेशन' डील से भी निकल गया। इस समझौते में दुनिया भर में प्रवासियों की सुरक्षा और प्रबंधन को लेकर प्रस्ताव शामिल किए गए थे।


ईरान परमाणु समझौता (ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन- JCPOA)

मई 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते से बाहर होने का फैसला किया। ईरान के साथ परमाणु समझौता साल 2015 में ओबामा प्रशासन के दौरान हुआ था। इस समझौते में जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन भी शामिल थे। समझौते के तहत, ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर राजी हुआ था। बदले में उसके खिलाफ अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने आर्थिक प्रतिबंधों को वापस ले लिया था।

ट्रंप ने समझौते को ईरान के पक्ष में झुका हुआ बताया और इससे बाहर होने के बाद ईरान पर कड़े प्रतिबंध थोप दिए। ट्रंप ने कहा कि वह ऐसा करके दुनिया को ज्यादा सुरक्षित बना रहे हैं। हालांकि, इससे अमेरिका के वादों की विश्वसनीयता भी घेरे में आ गई। यूरोपीय यूनियन के सदस्य देशों, रूस और चीन ने अमेरिका के समझौते से बाहर होने की तीखी आलोचना की थी। केवल इजरायल ने ही अमेरिका के इस फैसले का स्वागत किया।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC)-

जून 2018 में अमेरिका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से बाहर हो गया। अमेरिका ने यूनेस्को की तरह इस संस्था को भी अपने सहयोगी देश इजरायल के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित बताकर आलोचना की। मानवाधिकार परिषद ने एक महीने पहले ही गाजा में हुईं हत्याओं की जांच शुरू की थी और इजरायल पर सैन्य ताकत का ज्यादा इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।

यूनाइडेट नेशन्स रिलीफ ऐंड वर्क एजेंसी (UNRWA)-

डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने अगस्त 2018 में इस संस्था की फंडिंग खत्म करने का ऐलान कर दिया था। इस संस्था को भी अमेरिका ने इजरायल विरोधी बताया था। इस संस्था को दुनिया भर के शरणार्थियों की मदद के उद्देश्य से बनाया गया था। इसी के तहत, संस्था फिलीस्तीनी शरणार्थियों को भी मदद पहुंचाने का काम कर रही थी।


WTO Appellate Authority-

ट्रंप प्रशासन ने डब्ल्यूटीओ में जजों की नियुक्ति का रास्ता रोक दिया। वर्तमान में संगठन में सिर्फ एक ही जज मौजूद है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप विश्व व्यापार संगठन को  छोड़ने की भी धमकी दे चुके हैं। हालांकि, अभी तक उन्होंने ऐसा किया नहीं है। ट्रंप का आरोप है कि विश्व व्यापार संगठन का रवैया अमेरिका के प्रति उचित नहीं है।


इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्स ट्रीट्री (INF)-

अमेरिका मध्यम दूरी परमाणु शक्ति संधि (Intermediate-Range Nuclear Forces Treaty: INF) से भी बाहर हो चुका है। अमेरिका और रूस के बीच तनाव दूर करने में इस संधि की अहम भूमिका रही है। यह समझौता हथियार नियंत्रण पर छह वर्षों तक चली वार्ताओं का नतीजा था।


ओपन स्काई ट्रीटी-

21 मई 2020 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिका ओपन स्काई ट्रीटी से अलग होने जा रहा है। अमेरिका ने कहा है कि रूस इस संधि की शर्तों का लगातार उल्लंघन कर रहा है। ओपन स्काई ट्रीट्री 1992 में हुई थी और इसे वर्ष 2002 में लागू किया गया था। इस समझौते में रूस समेत 35 सदस्य हैं। ओपन स्काई ट्रीटी के सदस्य देश, एक दूसरे के क्षेत्र में बिना हथियारों वाले विमान की उड़ान भर सकते हैं। इस संधि का मकसद, सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास और स्थिरता कायम करना था।

आने वाले समय में दो अन्य समझौतों के भी बिखरने की आशंका है। अमेरिका और रूस के बीच साल 2010 में न्यू स्टार्ट (New START) संधि हुई थी। इस समझौते की शर्तों के अनुसार, अमेरिका और रूस के सक्रिय सामरिक परमाणु हथियारों की संख्या सीमित की गई थी। दोनों ही देश अधिकतम 700 लॉन्चर और 1550 परमाणु हथियार रख सकते हैं। इस समझौते की अवधि फरवरी 2021 में समाप्त हो रही है। और इसे अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ाए जाने की संभावना कम ही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वो इस संधि की समय सीमा को और आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं।

नाटो (NATO) को भी किया कमजोर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सैन्य साझेदारी के मकसद से बनाए गए नॉर्थ अटलांटिक ट्रीट्री ऑर्गेनाइजेशन (नाटो) को भी कमजोर किया है। ट्रंप ने नाटो चार्टर के अनुच्छेद 5 को खारिज कर दिया है जिसके तहत सदस्य देशों की सामूहिक सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की गई है।

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