Coronavirus India / दूसरे राज्यों से उत्तर प्रदेश में क्यों कम है कोरोना का कहर? जानें क्या हैं 8 वजहें

Zoom News : Mar 21, 2021, 08:05 AM
Coronavirus India: भारत में कोरोना महामारी के करीब एक साल पूरे हो चुके हैं। क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से बड़े राज्यों में शामिल उत्तर प्रदेश में अभी तक छह लाख के करीब मामले सामने आए हैं। रिकवरी रेट की बात करें तो, यहां यह 98.2 प्रतिशत है। इसके साथ ही योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाले प्रदेश में कोरोना महामारी से मरने वालों का दर यानी मृत्यु दर महज 1.4 प्रतिशत हैं। कुल मिलाकर यहां एक संतोषजनक नतीजे सामने आए हैं। हालांकि सफलता की यह कहानी उन आठ कारकों के बिना संभव नहीं हो सकी, जिन्होंने यूपी को अपनी भारी आबादी और सीमित संसाधनों के बावजूद संभलने में मदद की।

तीन सूत्रीय बल: उत्तर प्रदेश का राजनीतिक नेतृत्व प्रभावी कोरोना प्रबंधन का नायक रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा वित्त और चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना और स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने भी सराहनीय भूमिका निभाई है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'शीर्ष लीडरशिप के मंत्र का हमारे कार्य संस्कृति पर खासा असर होता है। इससे हमें काफी मदद मिलती है। सीमित बुनियादी ढांचा और महामारी का डर है हमारे सामने था, लेकिन प्रतिबद्ध राजनीतिक नेतृत्व ने हमें इसके प्रबंधन में हमारी मदद की। इसकी सराहना डब्ल्यूएचओ द्वारा भी की गई।''

टीम-11: अगला बड़ा सवाल था कि इसे कैसे संभव बनाया जाए, जिसके जवाब में यूपी की टीम -11 का गठन किया गया। टीम -11 ने ना सिर्फ स्थितियों की समीक्षा की, बल्कि इससे लड़ने के लिए समाधान भी खोजे। शुरूआती चरण में चुनौतियों को कम किया गया। इसके बाद विभिन्न क्षेत्रों को योगदान करने के लिए साथ लाकर खड़ा किया गया।

फुट सोल्जर्स: चूंकि कोरोना के 80 प्रतिशत रोगी एसिम्पटोमेटिक थे, इसलिए वायरस के कैरियर का पता लगाने और उसे अलग करने के लिए निगरानी ही एकमात्र तरीका था। एक लाख से अधिक कर्मियों ने विभिन्न शहरों में इलाकों को कवर किया। टीमों ने अब तक 1.86 लाख इलाकों में 3.12 करोड़ परिवारों को कवर किया है। 

टेस्टिंग वारियर्स: डॉक्टर, माइक्रोबायोलॉजिस्ट, तकनीशियन, संग्रह एजेंट, डेटा ऑपरेटर और मशीनों को चलाने और इसे दुरुस्त बनाए रखने में मदद करने वालों के कारण ही यूपी में सबसे ज्यादा टेस्टिंग हो सकी। 15 मार्च तक के आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में 3.2 करोड़ से अधिक टेस्टिंग हुई।

बड़ी सोच: वायरस नया था, जर अज्ञात था। एक पारंपरिक दृष्टिकोण ने इसे तेजी से फैलने और तबाही मचाने का मौका दे सकता था। लेकिन सरकार, नीति-निर्माताओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के खुले दिमाग ने पूल परीक्षण और प्लाज्मा थेरेपी जैसी पहल के साथ इस लड़ाई को मजबूत किया। कोरोना का पता लगाने के लिए टीबी परीक्षण मशीनों सीबी नैट और ट्रुनेट का उपयोग किया गया। एमएसएमई इकाइयों और चीनी मिलों को पीपीई किट, पल्स ऑक्सीमीटर, थर्मामीटर, सैनिटाइजर और मेडिकल ऑक्सीजन के निर्माण की जिम्मेदारी दी गी।

प्रौद्योगिकी: जब मामले बढ़ने लगे तो जिलों में निगरानी और अंतर-विभागीय समन्वय कठिन हो गया। ऐसे समय में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसे प्रौद्योगिकी उपकरणों की मदद ली गई। सेल फोन जीपीएस का उपयोग रोगियों पर निगरानी रखने और चेन को तोड़ने के लिए संभावित संपर्कों के रिकॉर्ड को कॉल करने के लिए किया गया था।

हेलो डॉक्टर: महामारी पर सभी का ध्यान केंद्रित होने के कारण से इससे इतर अन्य बीमारियों की देखभाल एक चुनौती बन गई। ई-संजीवनी जैसी टेलीमेडिसिन सेवाएं ऐसे समय में रक्षक बन गए। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि यूपी में 6.2 लाख से अधिक लोगों ने ई-संजीवनी सेवा का इस्तेमाल किया है। SGPGI और अन्य संस्थानों के विशेषज्ञों द्वारा टेलीमेडिसिन और टेलीफ़ोनिक परामर्श ने लोगों को संकट में मदद की।

राज्य के मित्र: महामारी से निपटने के लिए हेल्थकेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर को बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता थी। टाटा ट्रस्ट और एचसीएल जैसे कॉरपोरेट्स ने इसमें काफी मदद की। यूपी सीएम के कोरोना केयर फंड में जमकर दान आए। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ ने तकनीकी सहायता प्रदान की। लॉकडाउन के समय में धार्मिक नेताओं और मीडिया जैसे प्रभावशाली लोगों और संस्थानों ने भी काफी मदद की।

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