देश / देशभर में हर फांसी से पहले क्यों मारा जाता है गंगाराम?

News18 : Jan 13, 2020, 06:08 PM
भारत में किसी भी दोषी को फांसी (Hanging) पर चढ़ाए जाने के पहले लंबी प्रक्रिया होती है।  फांसी होने से पहले फांसी की रस्सी को फिर चेक किया जाता है।  फिर उस रस्सी के साथ एक डमी फांसी दी जाती है, जिसमें फांसी पाए दोषी के शरीर के वजन से डेढ़ गुना ज्यादा वजन का डमी पुतला तैयार किया जाता है।  उसे फांसी के फंदे पर लटकाया जाता है।  डमी सफल होने के बाद उस रस्सी और उस ड्रिल के हिसाब से असल फांसी दी जाती है।  भारतीय जेलों में आम तौर पर इस पुतले का नाम गंगाराम रखा जाता है। 

फांसी की प्रक्रिया को अपनी आंखों से देखने वाले पत्रकार गिरिजाशंकर ने अपनी किताब ' आंखों देखी फांसी' में लिखा है कि जेल प्रशासन में ये परंपरा लंबे समय से चली आ रही है।  दरअसल गिरिजाशंकर ने साल 1978 में रायपुर की जेल में बैजू नाम के एक दोषी की फांसी की रिपोर्टिंग की थी।  ये शायद भारत के इतिहास में इकलौता मामला है जब कोई पत्रकार फांसी के दौरान मौजूद था। 

उन्होंने किताब में लिखा है- 'बैजू की फांसी के लिए तैयार किए गए लकड़ी के इस पुतले का नाम था गंगाराम जो खुद चलकर कहीं आ-जा नहीं सकता था।  क्योंकि उसके पांव नहीं थे।  हैं तो सिर्फ सिर, हाथ कटा हुआ धड़ और घुटनों तक की जांघें।  मैंने कौतुहलवश जेल अधीक्षक से पूछा कि लकड़ी के इस पुतले का नाम गंगाराम ही क्यों रखा गया? कोई और नाम क्यों नहीं? उन्होंने बताया कि 1968 में जेल अधीक्षक के पद पर नियुक्ति के बाद जब वो ट्रेनिंग के लिए 2 माह केंद्रीय जेल जबलपुर में पदस्थ थे उस दौरान एक दुर्दांत डाकू छिद्दा सिंह को फांसी हुई थी।  उस समय उन्होंने भी जबलपुर जेल के अधिकारियों से यही पूछा था कि पुतले का नाम गंगाराम ही क्यों रखा गया? कोई और नाम क्यों नहीं? तब पुराने जेल अधिकारियों ने बताया कि भई उन्हें नहीं मालूम कि पहली बार किसने और कब लकड़ी के पुतले का नाम गंगाराम रखा। 

उनसे पहले के जेल अधिकारियों से यही सुना है कि भारतवर्ष में एक मृतक के लिए भगवान राम और गंगा जल का विशिष्ट स्थान है।  संभवत: गंगा जल के लिए गंगा शब्द और मुक्ति के लिए राम शब्द को मिलाकर गंगाराम बना होगा।  इसीलिए जेलों में लंबे समय से लकड़ी के पुतले का नामकरण गंगाराम ही प्रचलन में आ गया। '

गिरिजाशंकर ने किताब में आगे लिखा है-कभी यह जलाऊ लकड़ी का एक मोटा हिस्सा था जिसे जेल के अन्य कैदियों ने छील-छालकर पुतले का रूप दे दिया था।  इसी पुतले के कटे हुए हाथों के दोनों ओर लगी मोटी लंबी नुकली कीलों पर रेत की बोरियां लटकाकर इसे फांसी के फंदे पर लटकने वाले कैदी के वजन से डेढ़ गुना वजन का बनाया है।  यही लकड़ी का पुतला गंगाराम उस ट्रायल के काम आता है जो फांसी की सजा या किसी कैदी को फांसी के फंदे पर लटकाने के पहले किया जाता है। '

निर्भया सामूहिक दुष्कर्म, मृत्युदंड, पुणे, सजा, यरवदा केंद्रीय जेल, Nirbhaya Gang Rape, Capital Punishment, Pune, Punishment, Yerwada Central Jailफांसी के वक्त 5 लोग ही रह सकते हैं मौजूद

फांसी की सजा देते वक्त सिर्फ पांच लोग ही मौजूद रह सकते हैं।  इसके लिए बाकायदा प्रावधान है।  जेल मैन्युअल के मुताबिक फांसी होते हुए केवल 5 लोग ही देख सकते हैं।  जिनमें जेल सुपरिटेंडेंट, डिप्टी सुपरिटेंडेंट, RMO, मेडिकल अफसर और मजिस्ट्रेट या उनके नुमाइंदे ADM शामिल हैं।  इसके अलावा फांसी की सजा पाने वाला दोषी चाहे तो वह उसके धर्म का कोई भी नुमाइंदा जैसे पंडित, मौलवी भी मौजूद रह सकता है। 




SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER