AajTak : Apr 13, 2020, 02:11 PM
राजस्थान: कोरोना से जंग को लेकर राजस्थान की गहलोत सरकार के भीलवाड़ा मॉडल की देशभर में तारीफ भी हो रही है। साथ ही कई राज्य सरकारें भीलवाड़ा मॉडल को अपना भी रही है। केंद्र सरकार भी सबसे ज्यादा प्रभावित जगहों पर इसी तर्ज पर काबू करने की बात कर रही है। हालांकि राजस्थान के कई और शहर भी कोरोनो के लिए हॉटस्पॉट बन गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि गहलोत सरकार ने इस मॉडल को वहां क्यों नहीं अपनाया?
राजस्थान में कोरोना संक्रमण के करीब 815 मामले सामने आए हैं और अबतक 3 लोगों की इसकी चपेट में आकर मौत भी हो चुकी है। प्रदेश में सबसे ज्यादा केस राजधानी जयपुर के रामगंज क्षेत्र में सामने आए हैं। जयपुर जिला में 341 लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। इसके अलावा, भरतपुर टोंक और गुजरात से लगा बांसवाड़ा जिला है, जहां कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है।
रामगंज में जनसंख्या घनत्व बनी बड़ी मुसीबत
जयपुर के रामगंज के जनसंख्या घनत्व और भीलवाड़ा की आबादी में काफी फर्क है। रामगंज में जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है। इसके अलावा गलियां काफी संकरी हैं जबकि भीलवाड़ा में चौड़ी सड़के और खुलापन है। भीलवाड़ा की तर्ज पर रामगंज में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन संभव नहीं हो सका है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ। रघु शर्मा भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि रामगंज और भीलवाड़ा की भौगोलिक स्थितियां बिल्कुल अलग हैं। मंत्री ने कहा था कि इसी के चलते रामगंज के लिए गहलोत सरकार विशेष मॉडल पर काम कर रही है।
रामगंज का सामाजिक परिवेश से बढ़ा मामला
रामगंज और भीलवाड़ा का सामाजिक परिवेश में भी काफी अंतर है। भीलवाड़ा के जिस अस्पताल से संक्रमण फैला और संक्रमित मिले, उनमें 70 फीसदी लोग उसी अस्पताल के कर्मचारी या स्वास्थ्यकर्मी थे। वहीं, रामगंज में लोअर मिडिल क्लास के लोगों में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए हैं तो बांसवाड़ा में आदिवासी समुदाय के लोग ज्यादा पॉजिटिव पाए गए हैं।
डॉक्टर पढ़े-लिखे और स्वास्थ्य के विषय में जागरूक होते हैं। इसलिए भीलवाड़ा में सब लोग सामने आए और खुलकर टेस्ट कराए। प्रशासन ने भी डॉक्टरों के संपर्क में आए लोगों का तुरंत पता लगा लिया। यही भीलवाड़ा मॉडल की सबसे बड़ी सफलता है। भीलवाड़ा प्रशासन के साथ-साथ वहां की जनता की भी ये सफलता है लेकिन राजस्थान के दूसरे शहरों में सोशल डेस्टिंग का पालन नहीं हो सका।
रामगंज सहित बाकी शहरों के लोगों के मन में यह भय व्याप्त हो गया कि अगर वे अस्पताल जाएंगे तो उन्हें कोरोना हो जाएगा। इसीलिए वे लक्षणों को स्वास्थ्य विभाग की टीम से छुपा रहे हैं। उन्हें लग रहा था कि घर में रहकर वे ज्यादा सुरक्षित हैं, जबकि ऐसा नहीं है। क्योंकि रामगंज जैसे सघन आबादी क्षेत्र में घर सुरक्षित नहीं हैं। ना चाहते हुए भी लोग एक-दूसरे के संपर्क में आ रहे हैं। रामगंज में मस्कट से आए शख्स ने क्वारेनटाइन का पालन नहीं किया और पूरे गांव में घूमता रहा, जिसके वजह से रामगंज की स्थिति बिगड़ी है।
राजस्थान के दूसरे शहरों को सील करने में देरी
भीलवाड़ा राजधानी जयपुर से बहुत छोटा शहर है। भीलवाड़ा में जनसंख्या कम है, जिसे आसानी से चारों तरफ से सील कर दिया गया था। इसके बाद एक-एक घर जाकर लोगों की स्क्रीनिंग की गई। जयपुर और दूसरे शहर काफी बड़े और घनी आबादी वाले हैं। रामगंज, बांसवाड़ा, टोंक सहित तमाम जिलों को सील करने में एक तरफ भौगोलिक स्थिति तो दूसरी तरफ सरकार की लापरवाही रही।
बांसवाड़ा की सीमा गुजरात से लगी हुई है, जहां लॉकडाउन के बाद करीब 30 हजार मजदूर दूसरे राज्यों से वापस अपने घर आए हैं, इनकी यात्रा का कोई रिकार्ड सरकार के पास नहीं है। जयपुर के रामगंज में अल्पसंख्यक समुदाय की बड़ी आबादी है। सरकार इनके विरोध का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी, जिसके चलते उन्हें पहले समझाने की कोशिश की गई। इसमें काफी देरी हुई।होम टू होम नहीं हो सकी जांच
भीलवाड़ा की तरह राजस्थान के दूसरे शहरों में होम टू होम लोगों की स्क्रीनिंग का काम सरकार नहीं कर सकी। देश के कई राज्यों में स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा जांच करने के लिए जाने पर मारपीट के मामले सामने आए थे, जिसकी वजह से राजस्थान के रामगंज की घनी आबादी वाले इलाके में भी स्वास्थ्य कर्मचारी जाने से डर रहे थे। इसके चलते वहां होम टू होम स्क्रीनिंग नहीं हो सकी।
भीलवाड़ा मॉडल से कोरोना पर काबू
बता दें कि राजस्थान के भीलवाड़ा के बांगड़ निजी अस्पताल में डॉक्टर के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद उस अस्पताल के कई स्वास्थ्यकर्मी भी पॉजिटिव हो गए थे। इस केस के सामने आते ही राजस्थान का स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन हरकत में आया। गहलोत सरकार ने तुरंत एक्शन लिया और पूरे शहर में कर्फ्यू लगाकर बॉर्डर सील कर दिया। भीलवाड़ा के छह हजार लोगों को लिस्ट बनाकर तलाशा गया। दो दिन के अंदर ही सभी की पहचान की गई और उन्हें आइसोलेट किया गया ताकि कोरोना की कड़ी टूट सके।
समाज के विभिन्न धर्मगुरूओं से सहायता ली गई कि वे लोगों से घरों में ही रहने की अपील करें। राजस्थान के 16 हजार स्वास्थ्य कर्मियों की टीम भीलवाड़ा शहर में भेज दी गई जहां पर कर्फ्यू के दौरान घर-घर जाकर स्क्रीनिंग का काम शुरू किया गया।
सरकार ने बेहद सख्ती के साथ लॉकडाउन किया। कर्फ्यू के साथ-साथ पूरे जिले की करीब 30 लाख लोगों की तीन बार स्क्रीनिंग करने का भी दावा किया गया। इसके लिए प्रशासन ने 5 कंट्रोल रूम भी बनाए। भीलवाड़ा प्रशासन ने जिले के 42 अस्पताल और होटलों में क्वारेनटाइन के लिए 1551 बेड की व्यवस्था की गई, जिसके चलते 27 कोरोना पाजिटिव मामले निगेटिव में तबदील हो गए।
घर-घर जाकर सर्वे के आदेशराजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिलाधिकारियों से कहा है कि वे प्रदेश में कोरोना की जांच और रोकथाम के लिए भीलवाड़ा मॉडल को अपनाएं। साथ ही जिलाधिकारियों से लॉकडाउन और हॉटस्पॉट के रूप में चिह्नित किए गए इलाकों में कर्फ्यू का सख्ती से पालन कराने को कहा है। उन्होंने भीलवाड़ा मॉडल फॉलो करते हुए अधिक से अधिक टीमें तैयार कर हर घर का सर्वे कराने के भी निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे कोरोना संक्रमित लोगों का पता चल सकेगा और इस संक्रमण को फैलने से रोका जा सकेगा।
राजस्थान में कोरोना संक्रमण के करीब 815 मामले सामने आए हैं और अबतक 3 लोगों की इसकी चपेट में आकर मौत भी हो चुकी है। प्रदेश में सबसे ज्यादा केस राजधानी जयपुर के रामगंज क्षेत्र में सामने आए हैं। जयपुर जिला में 341 लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। इसके अलावा, भरतपुर टोंक और गुजरात से लगा बांसवाड़ा जिला है, जहां कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है।
रामगंज में जनसंख्या घनत्व बनी बड़ी मुसीबत
जयपुर के रामगंज के जनसंख्या घनत्व और भीलवाड़ा की आबादी में काफी फर्क है। रामगंज में जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है। इसके अलावा गलियां काफी संकरी हैं जबकि भीलवाड़ा में चौड़ी सड़के और खुलापन है। भीलवाड़ा की तर्ज पर रामगंज में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन संभव नहीं हो सका है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ। रघु शर्मा भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि रामगंज और भीलवाड़ा की भौगोलिक स्थितियां बिल्कुल अलग हैं। मंत्री ने कहा था कि इसी के चलते रामगंज के लिए गहलोत सरकार विशेष मॉडल पर काम कर रही है।
रामगंज का सामाजिक परिवेश से बढ़ा मामला
रामगंज और भीलवाड़ा का सामाजिक परिवेश में भी काफी अंतर है। भीलवाड़ा के जिस अस्पताल से संक्रमण फैला और संक्रमित मिले, उनमें 70 फीसदी लोग उसी अस्पताल के कर्मचारी या स्वास्थ्यकर्मी थे। वहीं, रामगंज में लोअर मिडिल क्लास के लोगों में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए हैं तो बांसवाड़ा में आदिवासी समुदाय के लोग ज्यादा पॉजिटिव पाए गए हैं।
डॉक्टर पढ़े-लिखे और स्वास्थ्य के विषय में जागरूक होते हैं। इसलिए भीलवाड़ा में सब लोग सामने आए और खुलकर टेस्ट कराए। प्रशासन ने भी डॉक्टरों के संपर्क में आए लोगों का तुरंत पता लगा लिया। यही भीलवाड़ा मॉडल की सबसे बड़ी सफलता है। भीलवाड़ा प्रशासन के साथ-साथ वहां की जनता की भी ये सफलता है लेकिन राजस्थान के दूसरे शहरों में सोशल डेस्टिंग का पालन नहीं हो सका।
रामगंज सहित बाकी शहरों के लोगों के मन में यह भय व्याप्त हो गया कि अगर वे अस्पताल जाएंगे तो उन्हें कोरोना हो जाएगा। इसीलिए वे लक्षणों को स्वास्थ्य विभाग की टीम से छुपा रहे हैं। उन्हें लग रहा था कि घर में रहकर वे ज्यादा सुरक्षित हैं, जबकि ऐसा नहीं है। क्योंकि रामगंज जैसे सघन आबादी क्षेत्र में घर सुरक्षित नहीं हैं। ना चाहते हुए भी लोग एक-दूसरे के संपर्क में आ रहे हैं। रामगंज में मस्कट से आए शख्स ने क्वारेनटाइन का पालन नहीं किया और पूरे गांव में घूमता रहा, जिसके वजह से रामगंज की स्थिति बिगड़ी है।
राजस्थान के दूसरे शहरों को सील करने में देरी
भीलवाड़ा राजधानी जयपुर से बहुत छोटा शहर है। भीलवाड़ा में जनसंख्या कम है, जिसे आसानी से चारों तरफ से सील कर दिया गया था। इसके बाद एक-एक घर जाकर लोगों की स्क्रीनिंग की गई। जयपुर और दूसरे शहर काफी बड़े और घनी आबादी वाले हैं। रामगंज, बांसवाड़ा, टोंक सहित तमाम जिलों को सील करने में एक तरफ भौगोलिक स्थिति तो दूसरी तरफ सरकार की लापरवाही रही।
बांसवाड़ा की सीमा गुजरात से लगी हुई है, जहां लॉकडाउन के बाद करीब 30 हजार मजदूर दूसरे राज्यों से वापस अपने घर आए हैं, इनकी यात्रा का कोई रिकार्ड सरकार के पास नहीं है। जयपुर के रामगंज में अल्पसंख्यक समुदाय की बड़ी आबादी है। सरकार इनके विरोध का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी, जिसके चलते उन्हें पहले समझाने की कोशिश की गई। इसमें काफी देरी हुई।होम टू होम नहीं हो सकी जांच
भीलवाड़ा की तरह राजस्थान के दूसरे शहरों में होम टू होम लोगों की स्क्रीनिंग का काम सरकार नहीं कर सकी। देश के कई राज्यों में स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा जांच करने के लिए जाने पर मारपीट के मामले सामने आए थे, जिसकी वजह से राजस्थान के रामगंज की घनी आबादी वाले इलाके में भी स्वास्थ्य कर्मचारी जाने से डर रहे थे। इसके चलते वहां होम टू होम स्क्रीनिंग नहीं हो सकी।
भीलवाड़ा मॉडल से कोरोना पर काबू
बता दें कि राजस्थान के भीलवाड़ा के बांगड़ निजी अस्पताल में डॉक्टर के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद उस अस्पताल के कई स्वास्थ्यकर्मी भी पॉजिटिव हो गए थे। इस केस के सामने आते ही राजस्थान का स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन हरकत में आया। गहलोत सरकार ने तुरंत एक्शन लिया और पूरे शहर में कर्फ्यू लगाकर बॉर्डर सील कर दिया। भीलवाड़ा के छह हजार लोगों को लिस्ट बनाकर तलाशा गया। दो दिन के अंदर ही सभी की पहचान की गई और उन्हें आइसोलेट किया गया ताकि कोरोना की कड़ी टूट सके।
समाज के विभिन्न धर्मगुरूओं से सहायता ली गई कि वे लोगों से घरों में ही रहने की अपील करें। राजस्थान के 16 हजार स्वास्थ्य कर्मियों की टीम भीलवाड़ा शहर में भेज दी गई जहां पर कर्फ्यू के दौरान घर-घर जाकर स्क्रीनिंग का काम शुरू किया गया।
सरकार ने बेहद सख्ती के साथ लॉकडाउन किया। कर्फ्यू के साथ-साथ पूरे जिले की करीब 30 लाख लोगों की तीन बार स्क्रीनिंग करने का भी दावा किया गया। इसके लिए प्रशासन ने 5 कंट्रोल रूम भी बनाए। भीलवाड़ा प्रशासन ने जिले के 42 अस्पताल और होटलों में क्वारेनटाइन के लिए 1551 बेड की व्यवस्था की गई, जिसके चलते 27 कोरोना पाजिटिव मामले निगेटिव में तबदील हो गए।
घर-घर जाकर सर्वे के आदेशराजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिलाधिकारियों से कहा है कि वे प्रदेश में कोरोना की जांच और रोकथाम के लिए भीलवाड़ा मॉडल को अपनाएं। साथ ही जिलाधिकारियों से लॉकडाउन और हॉटस्पॉट के रूप में चिह्नित किए गए इलाकों में कर्फ्यू का सख्ती से पालन कराने को कहा है। उन्होंने भीलवाड़ा मॉडल फॉलो करते हुए अधिक से अधिक टीमें तैयार कर हर घर का सर्वे कराने के भी निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे कोरोना संक्रमित लोगों का पता चल सकेगा और इस संक्रमण को फैलने से रोका जा सकेगा।