विशेष / नेहरू के दामाद या इंदिरा के पति के रूप में ही क्यों याद किए जाएं फिरोज गांधी?

Zoom News : Sep 12, 2019, 12:13 PM
आज फिरोज गांधी की जयंती है। 11 सितम्बर 1912 से 8 सितम्बर 1960 तक मात्र 48 की उम्र पाने वाले फिरोज के ससुर, पत्नी और बेटा भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं। उन्हें इसी के तौर पर याद किया जाता है कि वह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दामाद थे। वह भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री आयरन लेडी इन्दिरा गांधी के पति थे। अथवा राजीव—संजय गांधी के​ पिता, सोनिया गांधी के ससुर या फिर राहुल—प्रियंका गांधी के दादा के रूप में याद किए जाते हैं। परन्तु क्या उन्हें ​उनकी जयंती पर इसीलिए याद किया जाना चाहिए?
यह प्रश्न जब अपने जवाब खोजने निकला तो कई सारे बातें सामने आई जो दुनिया को मालूम नहीं। है तो ​भी उनका जिक्र नहीं होता। हम कई पहलुओं से फिरोज गांधी पर उपलब्ध बातों को आपके सामने रखने की कोशिश कर रहे हैं। वह गांधी परिवार के अंतिम पंक्तियों में याद किए जाने वाले शख्स नहीं थे। वह एक और गांधी के रूप में ही क्यों याद किए जाएं जो समर्पित कांग्रेस कार्यकर्ता थे, एक युवा स्वतंत्रता सेनानी, एक सांसद, एक पत्रकार और भारत के पहले व्हिसल ब्लोवर भी थे।
फिरोज गांधी आजाद भारत में वह पहले शख्स थे, जो अपनी ही पार्टी कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी (टीटी कृष्णमचारी) को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। एलआईसी में घोटाला उजागर किया। प्रेस की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और देश में प्रेस के लिए कानून बनाया। उसे आज भी फिरोज गांधी प्रेस लॉ कहा जाता है, लेकिन इंदिरा गांधी ने आपातकाल में उसी प्रेस लॉ को कूड़े में फेंक दिया। देश में एक संसद सदस्य के निजी विधेयक को कानून बनना संभव नहीं है। बताया जाता है कि करीब एक दर्जन निजी सदस्यों के बिल ही कानून बन पाए हैं। फिरोज गांधी का प्रेस लॉ उसका एक उदाहरण है।
कमला नेहरू का एक धरने के दौरान बेहोश होना और फिरोज का नेहरू परिवार से नजदीकियां बढ़ना इंदिरा से उनकी मुलाकात का कारण था। परन्तु नेहरू को पारसी परिवार में जन्मे फिरोज पसंद नहीं थे। उनके लिए महात्मा गांधी कहते थे कि यदि मुझे फिरोज जैसे सात लड़के मिल जाए तो भारत को बहुत जल्दी आजाद करवा लूं। इंदिरा के विवाह के लिए इलाहबाद में कार्यक्रम हुआ। गुजराती पारसी फिरोज को महात्मा गांधी ने अपना सरनेम दिया। 1946 में राजीव और संजय पैदा हुए जो अपने पिता के साथ विमानों, जहाजों और खिलौनों के मॉडल के निर्माण में समय बिताना पसंद करते थे। यही वजह दोनों के तकनीक से जुड़ने की शुरुआत थी। बाद में संजय और राजीव दोनों पायलट बने। राजीव गांधी अपने प्रधानमंत्रित्व काल में देश में सूचना तकनीक क्रांति लेकर आए। हालांकि बाद में इंदिरा संजय व राजीव को लेकर आनंद भवन लौट आई। फिरोज अकेले रहे और उन्होंने भ्रष्टाचार को लेकर नेहरू सरकार के खिलाफ आन्दोलन छेड़कर कई घोटाले उजागर किए। बाद में फिरोज की तबीयत खराब रहने लगीं। इंदिरा वापस लौटीं और देखभाल की परन्तु 8 सितम्बर, 1960 को हृदयाघात से फिरोज गांधी का निधन हो गया था। नेशनल हेराल्ड व नवजीवन अखबार के प्रकाशक भी फिरोज गांधी रहे।

शास्त्री के साथ जेल में रहे
इलाहाबाद जिला कांग्रेस कमेटी के प्रमुख लाल बहादुर शास्त्री (भारत के दूसरे प्रधानमंत्री) के साथ 1930 में फिरोज को जेल में डाल दिया गया और उन्नीस महीने तक फैजाबाद जेल में रखा गया। वे मात्र 18 साल के थे। अपनी रिहाई के तुरंत बाद, वह संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में कृषि-किराए पर लेने के अभियान में शामिल थे और नेहरू के साथ मिलकर काम करते हुए 1932 और 1933 में दो बार जेल गए थे।

ऐसे हुआ था विवाह
बताया जाता है कि फिरोज ने पहली बार 1933 में इंदिरा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन उन्होंने और उनकी मां कमला ने इसे इंदिरा के बहुत छोटी होने की  बात कहते हुए इसे अस्वीकार कर दिया। जब कमला नेहरू टीबी की बीमारी से जूझ रही थीं तब फिरोज ने उनकी खूब सेवा की। स्विटजरलैण्ड में जब कमला मृत्यु और जिंदगी से जूझ रही थीं, तब फिरोज उनकी सेवा में थे। बाद के वर्षों में, इंदिरा और फिरोज इंग्लैंड में रहते हुए एक-दूसरे के नजदीक आए। उन्होंने मार्च 1942 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था। करीब छह माह बाद ही यह जोड़ा भारत छोड़ो आन्दोलन में गिरफ्तार होकर एक साल के लिए नैनी सेंट्रल जेल में डाल दिया गया।

उनके जीवन को करीब से जानने की कोशिश करें तो यह अहसास होता है कि वह व्यक्ति अपने आप में एक महान शख्सियत था, जिसने पार्टी में रहते हुए भी सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करने में अपने जीवन के महत्वपूर्ण समय और रिश्तों को खपाया। जाति और धर्म की राजनीति से परे वह पारसी होने के बावजूद टाटा कंपनी के राष्ट्रीयकरण की बात कहते रहे। जिन्होंने मीडिया को पहली बार यह अहसास कराया कि आजाद भारत में अंग्रेजी सियासत के कानून नहीं चलेंगे। खैर! दुनिया फिरोज को कैसे याद करे, यह दीगर बात हैं परन्तु स्वतंत्रता आंदोलन और आजाद भारत में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। 

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