विशेष / 900 साल पहले क्यों गायब हुआ था चांद, अब पता चला कारण

NavBharat Times : May 17, 2020, 03:59 PM
विशेष | 11वीं सदी में धरती पर महीनों तक चांद दिखाई नहीं दिया था। 910 साल पहले हुए घटना से अब जाकर पर्दा उठ पाया है। उस समय ऐसा क्यों हुआ था वैज्ञानिकों ने इसका पता लगा लिया है। उस समय लोग चांद के दिखाई न देने पर विनाश की आशंका से भी डर गए थे।

विनाशकारी थी 11वीं सदी

इतिहासकारों ने भी कई जगह 11वीं सदी के 1108वें और 1109वें साल को विनाशकारी वर्ष के रूप में उल्लेखित किया था। उस समय धरती पर महीनों तक रात में घना अंधेरा रहता था। दिन में भी सूरज की हल्की रोशनी ही आती थी। चूंकि उस दौरान चांद को देखकर ही लोग रात में समय का पता लगाते थे इसलिए उन्हें किसी अनहोनी आशंका ने बुरी तरह डरा दिया था।

ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था ऐसा

अब स्विट्जरलैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ जेनेवा के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि चांद के महीनों तक गायब रहने के पीछे छिपे कारण का उन्होंने पता लगा लिया है। उन्होंने कहा कि 1104 में आइसलैंड में स्थित ज्वालामुखी हेकला में भयानक विस्फोटों के कारण भारी मात्रा में सल्फर गैस और राख निकली थी।

राख ने चांद की रोशनी को किया बाधित

इस राख ने ठंड के मौसम में हवा में घुलकर धरती के वायुमंडल को जाम करना शुरू कर दिया था। चार साल बाद पृथ्वी का स्ट्रैटोस्फीयर इसकी राख के कारण पूरी तरह से अवरुद्ध हो गया था। जिसके कारण चांद की रोशनी धरती तक नहीं आ पाती थी। इसलिए उन दिनों चारों तरफ अंधेरा छा गया था।

इतिहास में घटना का उल्लेख

इंग्लैंड के इतिहास से संबंधित ऐतिहासिक किताब Peterborough Chronicle में लिखा है कि 1109 में खराब मौसम के कारण पेड़-पौधे सूख गए थे। फसलें बर्बाद हो गईं थीं। गर्मियों के दिनों में तापमान -1 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।

ग्रीनलैंड में बर्फ के टुकड़ों की हुई जांच

जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में 21 अप्रैल को प्रकाशित अपने अध्ययन के अनुसार, वैज्ञानिकों ने जब ग्रीनलैंड में बर्फ के टुकड़ों की जांच की तो उन्हें यहां ज्वालामुखी की राख में मिलने वाले सल्फेट की बहुत ज्यादा मात्रा मिली। वैज्ञानिकों ने इस निष्कर्ष के बाद कहा कि 11वीं सदी में चंद्रमा के गायब होने के पीछे ज्वालामुखी का विस्फोट था।

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