Zoom News : Feb 25, 2021, 08:49 PM
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पत्नी पर जानलेवा हमला करने के मामले में 35 वर्षीय आरोपी को राहत देने से इंकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि पति के लिए चाय बनाने से मना करना, इसे पत्नी को पीटने के लिए उकसाने की वजह नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने ये भी कहा कि पत्नी 'कोई गुलाम या कोई वस्तु नहीं' है। निचली अदालत का फैसला बरकरारकोर्ट ने ये भी कहा कि दंपति की 6 साल की बेटी का बयान भरोसा करने लायक है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोलापुर के पंढरपुर निवासी संतोष अतकर को दोषी ठहराने और 10 साल की सजा को बरकरार रखा जो साल 2016 में एक स्थानीय कोर्ट ने सुनाई थी। उस समय आरोपी को मर्डर के बजाए गैरइरादतन हत्या का दोषी माना गया था। कोर्ट ने ये तथ्य भी स्वीकार किया था कि संतोष और उसकी पत्नी के बीच कुछ समय से अनबन चल रही थी। विवाह समानता पर आधारित साझेदारीइस केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस रेवती मोहिते देरे ने अपने आदेश में कहा, 'विवाह समानता पर आधारित साझेदारी है', लेकिन समाज में पितृसत्ता की अवधारणा अब भी कायम है और अब भी यह माना जाता है कि महिला पुरुष की संपत्ति है, जिसकी वजह से पुरुष यह सोचने लगता है कि महिला उसकी 'गुलाम' है।'दिसंबर 2013 में क्या हुआ थाघटनाक्रम के दिन दिसंबर 2013 में अतहर की पत्नी उसके लिए चाय बनाए बिना बाहर जाने की बात कर रही थी, जिसके गुस्साए अख्तर ने हथौड़े से उसके सिर पर वार किया और वह गंभीर रूप से घायल हो गई। मामले की विस्तृत जानकारी और दंपति की बेटी के बयान के अनुसार, अख्तर ने इसके बाद घटनास्थल को साफ किया था। फिर पत्नी को नहलाने के बाद अस्पताल में भर्ती कराने ले गया था। जहां करीब एक हफ्ते भर बाद उसकी मौत हो गई थी। नहीं काम आई बचाव पक्ष की कोई दलीलइस मामले की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने ये दलील दी थी कि अतकर की पत्नी ने उसके लिए चाय बनाने से इनकार कर दिया था, इस वजह से ही उसने उकसावे में आकर यह अपराध कर दिया। कोर्ट ने इस तर्क को ही मानने से इनकार करते हुए कहा कि किसी भी सूरत में यह बात स्वीकार नहीं की जा सकती कि महिला ने चाय बनाने से इनकार करके अपने पति को उकसाया था। जिसके कारण आरोपी ने अपनी पत्नी पर जानलेवा हमला किया। अपने फैसले में कोर्ट ने ये भी कहा, ' महिलाएं सामाजिक स्थितियों के कारण स्वयं को अपने पतियों को सौंप देती हैं। इसलिए इस प्रकार के मामलों में पुरुष स्वयं को श्रेष्ठतर और अपनी पत्नियों को गुलाम समझने लगते हैं।'मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पत्नी पर जानलेवा हमला करने के मामले में 35 वर्षीय आरोपी को राहत देने से इंकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि पति के लिए चाय बनाने से मना करना, इसे पत्नी को पीटने के लिए उकसाने की वजह नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने ये भी कहा कि पत्नी 'कोई गुलाम या कोई वस्तु नहीं' है। निचली अदालत का फैसला बरकरारकोर्ट ने ये भी कहा कि दंपति की 6 साल की बेटी का बयान भरोसा करने लायक है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोलापुर के पंढरपुर निवासी संतोष अतकर को दोषी ठहराने और 10 साल की सजा को बरकरार रखा जो साल 2016 में एक स्थानीय कोर्ट ने सुनाई थी। उस समय आरोपी को मर्डर के बजाए गैरइरादतन हत्या का दोषी माना गया था। कोर्ट ने ये तथ्य भी स्वीकार किया था कि संतोष और उसकी पत्नी के बीच कुछ समय से अनबन चल रही थी। विवाह समानता पर आधारित साझेदारीइस केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस रेवती मोहिते देरे ने अपने आदेश में कहा, 'विवाह समानता पर आधारित साझेदारी है', लेकिन समाज में पितृसत्ता की अवधारणा अब भी कायम है और अब भी यह माना जाता है कि महिला पुरुष की संपत्ति है, जिसकी वजह से पुरुष यह सोचने लगता है कि महिला उसकी 'गुलाम' है।'दिसंबर 2013 में क्या हुआ थाघटनाक्रम के दिन दिसंबर 2013 में अतहर की पत्नी उसके लिए चाय बनाए बिना बाहर जाने की बात कर रही थी, जिसके गुस्साए अख्तर ने हथौड़े से उसके सिर पर वार किया और वह गंभीर रूप से घायल हो गई। मामले की विस्तृत जानकारी और दंपति की बेटी के बयान के अनुसार, अख्तर ने इसके बाद घटनास्थल को साफ किया था। फिर पत्नी को नहलाने के बाद अस्पताल में भर्ती कराने ले गया था। जहां करीब एक हफ्ते भर बाद उसकी मौत हो गई थी। नहीं काम आई बचाव पक्ष की कोई दलीलइस मामले की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने ये दलील दी थी कि अतकर की पत्नी ने उसके लिए चाय बनाने से इनकार कर दिया था, इस वजह से ही उसने उकसावे में आकर यह अपराध कर दिया। कोर्ट ने इस तर्क को ही मानने से इनकार करते हुए कहा कि किसी भी सूरत में यह बात स्वीकार नहीं की जा सकती कि महिला ने चाय बनाने से इनकार करके अपने पति को उकसाया था। जिसके कारण आरोपी ने अपनी पत्नी पर जानलेवा हमला किया। अपने फैसले में कोर्ट ने ये भी कहा, ' महिलाएं सामाजिक स्थितियों के कारण स्वयं को अपने पतियों को सौंप देती हैं। इसलिए इस प्रकार के मामलों में पुरुष स्वयं को श्रेष्ठतर और अपनी पत्नियों को गुलाम समझने लगते हैं।'