कोरोना अलर्ट / लॉकडाउन के साथ ही गरीबों के लिए सहयोग की होनी चाहिए थी पूरी व्यवस्था: इकोनॉमिक एक्सपर्ट

ब्रिटेन के प्रमुख अखबार फाइनेंशियल टाइम्स के चीफ इकोनॉमिक एडिटर मार्टिन वुल्फ ने कहा कि कोरोना से निपटने के लिए लॉकडाउन मजबूरी है, लेकिन इसके पहले सरकार को इसके बारे में पर्याप्त तैयारी करनी चाहिए थी और गरीबों के सहयोग की व्यवस्था करनी चाहिए थी। इंडिया टुडे ई-कॉन्क्लेव के सेशन 'सर्वाइविंग द ग्रेट शटडाउन' में इंडिया टुडे टीवी के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल से बात करते हुए मार्टिन वुल्फ ने यह बात कही।

AajTak : Apr 23, 2020, 04:45 PM
ब्रिटेन के प्रमुख अखबार फाइनेंशियल टाइम्स के चीफ इकोनॉमिक एडिटर मार्टिन वुल्फ ने कहा कि कोरोना से निपटने के लिए लॉकडाउन मजबूरी है, लेकिन इसके पहले सरकार को इसके बारे में पर्याप्त तैयारी करनी चाहिए थी और गरीबों के सहयोग की व्यवस्था करनी चाहिए थी।

इंडिया टुडे ई-कॉन्क्लेव के सेशन 'सर्वाइविंग द ग्रेट शटडाउन' में इंडिया टुडे टीवी के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल से बात करते हुए मार्टिन वुल्फ ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि इस संकट में बहुत से कारोबार पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे। सरकार को ऐसे उद्योगों को पर्याप्त राहत देनी चाहिए।

क्या करना चाहिए सरकार को

उन्होंने कहा अगर भारत सरकार ने लॉकडाउन किया तो वे सबसे पहले लोगों के सहयोग की व्यवस्था करनी चाहिए थी। हमारी पहली प्राथमिकता उनके जीवन स्तर में सहयोग करना होना चाहिए। लोग यदि काम पर नहीं जाएंगे तो हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे घर बैठे रहें और भूखों मर जाएं। इसके बाद कंपनियों को सहयोग देना चाहिए। सभी बैंकरप्शी प्रक्रिया पर रोक लगानी चाहिए और बैंकों को कॉरपोरेट को सहयोग देना चाहिए।

उन्होंने कहा, 'सबसे पहले आपको सभी चिकित्सा संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन भारत में हेल्थ सिस्टम सीमित है, इसलिए यह चुनौतीपूर्ण है। इसके बाद आपको अपने लोगों को बचाना होगा जो बहुत ज्यादा प्रभावित हुए हैं। लोगों के कल्याण पर बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। इससे राजकोषीय घाटा काफी बढ़ेगा और सार्वजनिक कर्ज बढ़ेगा।'

मजबूरी का विकल्प है लॉकडाउन

उन्होंने कहा, 'मेरा यह मानना है कि लॉकडाउन गलत विकल्प है, लेकिन मजबूरी में किया गया। हमने इस बीमारी को बढ़ने दिया होता तो इसकी आर्थिक लागत बहुत ज्यादा होती। इसका चिकित्सा और आर्थिक खर्च बहुत ज्यादा होता। हमने यदि बीमारी पर काबू पा लिया तो अर्थव्यवस्था को बाद में पटरी पर ला सकते हैं।

महामंदी से भी ज्यादा होगा इसका असर

उन्होंने कहा कि कोरोना का मेडिकल कॉस्ट तो है ही, इसका अप्रत्यक्ष इकोनॉमिक कॉस्ट बहुत ज्यादा है। कोराना का असर दुनिया की इकोनॉमी पर महामंदी से भी ज्यादा गहरा होगा।

चीन से हर्जाना मांगना गलत

उन्होंने कहा कि दुनिया में रेस कौन जीतता है यह वायरस नहीं बल्कि नीतियां और क्षमता तय करेगी। अमेरिका दुनिया का लीडर बने रहने की क्षमता है। इस महामारी के लिए चीन से हर्जाना मांगने का विचार बेतुका है और इस तरह की सोच विश्व युद्ध के दौरान थी। लेकिन इसकी जांच तो होनी चाहिए कि यह महामारी कैसे फैली।