AMAR UJALA : Apr 25, 2020, 10:48 AM
कोरोना अलर्ट: दुनियाभर में कोविड-19 दवा और वैक्सीन पर शोध चल रहे हैं। हालांकि, शोध के अब तक के नतीजों के अनुसार वैक्सीन से संक्रमण की आशंका कम नहीं होगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना परिवार के दूसरे वायरस की तुलना में कोविड-19 की रफ्तार देखते हुए इसे रोक पाना कठिन होगा। 75 % शोध इस वक्त क्लीनिकल ट्रायल दौर में है। वहीं, ऑक्सफोर्ड यूर्निवर्सिटी ने मानव परीक्षण भी शुरू कर दिया है। भारतीय वैज्ञानिक भी जुटे हुए हैं, पर वैक्सीन से फ्लू को रोक पाना बहुत ज्यादा मुश्किल है।
वैक्सीन शोध टीम में शामिल पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी (एनआईवी) के एक वैज्ञानिक ने बताया कि पिछले 17 वर्षों में दो और कोरोना वायरस सार्स व मर्स भी हम देख चुके हैं, लेकिन यह कई गुना ज्यादा तेजी से फैलने की ताकत रखता है। यही रफ्तार वैक्सीन के शोध में सबसे बड़ी मुश्किल है। उन्होंने कहा, हालांकि नहीं भूलना चाहिए कि पोलियो, खसरा और चेचक जैसी बीमारियों में वैक्सीन सबसे असरदार रही है। महत्वपूर्ण यह भी है कि संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा एंटीवायरल दवाओं और सामाजिक दूरी पर लंबे समय काम करना पड़ेगा।रिप्रॉडक्शन की रफ्तार है दोगुनी: इस रफ्तार को रिप्रॉडक्शन नंबर के जरिए समझा जा सकता है। वुहान, इटली, दक्षिण कोरिया और स्पेन में जब मरीज मिल रहे थे उस दौरान आरओ 2.5 के आसपास था लेकिन अब यह बढ़कर 5 तक पहुंच चुका है। यानी कि दोगुना रफ्तार से वृद्धि देखने को मिल रही है।
कोरोना पर रेमडेसीवीर दवा का परीक्षण चीन में फेलकोरोना मरीजों के इलाज में महत्वपूर्ण मानी जा रही रेमडेसीवीर दवा का परीक्षण चीन में फेल हो गया है। पहले इस एंटीवायरल दवा का प्रयोग इबोला से पीड़ित मरीजों के इलाज में हो चुका था। अमेरिकी दवा कंपनी गिलीड साइंसेज दवा का निर्माण करती है। डब्ल्यूएचओ ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि इस दवा का 237 मरीजों पर परीक्षण किया गया था।इनमें से कुछ को दवा दी गई जबकि कुछ को नहीं दी गई लेकिन दोनों में किसी तरह का बदलाव नहीं दिखा। दवा के परीक्षण को साइड इफेक्ट के चलते जल्द ही रोक दिया गया। वहीं, निर्माता कंपनी गीलीड का कहना है कि इतनी जल्दी निष्कर्ष पर पहुंचना ठीक नहीं है। डब्ल्यूएचओ ने जो पोस्ट की वो पूरी नहीं है।
रैपिड जांच-प्लाज्मा तकनीक भी पीछेडेविड स्टेट्स ने बताया, रैपिड जांच या प्लाज्मा तकनीक दोनों ही एंटीबॉडी पर टिकी हैं। रैपिड जांच रक्त में एंटीबॉडी की पहचान करता है। जबकि प्लाज्मा तकनीक से रक्त में मौजूद एंटीबॉडी को दूसरे संक्रमित मरीज को दिया जाता है, लेकिन अध्ययनों में साबित हुआ है कि ज्यादातर मरीजों में आईजीएम और आईजीजी एंटीबॉडी दो महीने बाद भी विकसित नहीं हो रही है। ब्रिटेन में हुए अध्ययन में साबित हुआ है कि मरीजों में दो महीने बाद भी एंटीबॉडी बहुज ज्यादा दिखाई नहीं दीं।
तो इसलिए मुश्किल है वैक्सीन का असरजब हम इस वायरस को फ्लू या इन्फ्लूएंजा से जोड़कर देखते हैं तो हमें सबसे पहले इनके आरओ के बीच के अंतर को भी समझना चाहिए। फ्लू का आरओ 1.4 से 1.7 के बीच है। वैक्सीन लेने वाले दो में से एक व्यक्ति फ्लू की चपेट में आ जाता है। अब कोरोना का आरओ 3 से 5 यानी फ्लू की तुलना में कई गुना ज्यादा संक्रमण फैलाने वाला है। इस क्षमता के अनुसार वैक्सीन बनाना आसान नहीं है।रोग की गंभीरता जरूर होगी कम
अमेरिका के चीफ मेडिकल ऑफिसर डेविड स्टेट्स ने अमर उजाला से कहा कि अगर आप उम्मीद लगा रहे हैं कि वैक्सीन बचा लेगा तो शायद अभी यह मुश्किल है। यह सबसे ज्यादा फैलने वाला संक्रमण है। पशु वैक्सीन भी कारगर नहीं है। अमेरिकी ट्रायल में निष्कर्ष निकला है कि वैक्सीन संक्रमण रोकने में शायद ही कामयाब हो, लेकिन यह रोग की गंभीरता को जरूर कम कर सकती है।
वैक्सीन शोध टीम में शामिल पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी (एनआईवी) के एक वैज्ञानिक ने बताया कि पिछले 17 वर्षों में दो और कोरोना वायरस सार्स व मर्स भी हम देख चुके हैं, लेकिन यह कई गुना ज्यादा तेजी से फैलने की ताकत रखता है। यही रफ्तार वैक्सीन के शोध में सबसे बड़ी मुश्किल है। उन्होंने कहा, हालांकि नहीं भूलना चाहिए कि पोलियो, खसरा और चेचक जैसी बीमारियों में वैक्सीन सबसे असरदार रही है। महत्वपूर्ण यह भी है कि संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा एंटीवायरल दवाओं और सामाजिक दूरी पर लंबे समय काम करना पड़ेगा।रिप्रॉडक्शन की रफ्तार है दोगुनी: इस रफ्तार को रिप्रॉडक्शन नंबर के जरिए समझा जा सकता है। वुहान, इटली, दक्षिण कोरिया और स्पेन में जब मरीज मिल रहे थे उस दौरान आरओ 2.5 के आसपास था लेकिन अब यह बढ़कर 5 तक पहुंच चुका है। यानी कि दोगुना रफ्तार से वृद्धि देखने को मिल रही है।
कोरोना पर रेमडेसीवीर दवा का परीक्षण चीन में फेलकोरोना मरीजों के इलाज में महत्वपूर्ण मानी जा रही रेमडेसीवीर दवा का परीक्षण चीन में फेल हो गया है। पहले इस एंटीवायरल दवा का प्रयोग इबोला से पीड़ित मरीजों के इलाज में हो चुका था। अमेरिकी दवा कंपनी गिलीड साइंसेज दवा का निर्माण करती है। डब्ल्यूएचओ ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि इस दवा का 237 मरीजों पर परीक्षण किया गया था।इनमें से कुछ को दवा दी गई जबकि कुछ को नहीं दी गई लेकिन दोनों में किसी तरह का बदलाव नहीं दिखा। दवा के परीक्षण को साइड इफेक्ट के चलते जल्द ही रोक दिया गया। वहीं, निर्माता कंपनी गीलीड का कहना है कि इतनी जल्दी निष्कर्ष पर पहुंचना ठीक नहीं है। डब्ल्यूएचओ ने जो पोस्ट की वो पूरी नहीं है।
रैपिड जांच-प्लाज्मा तकनीक भी पीछेडेविड स्टेट्स ने बताया, रैपिड जांच या प्लाज्मा तकनीक दोनों ही एंटीबॉडी पर टिकी हैं। रैपिड जांच रक्त में एंटीबॉडी की पहचान करता है। जबकि प्लाज्मा तकनीक से रक्त में मौजूद एंटीबॉडी को दूसरे संक्रमित मरीज को दिया जाता है, लेकिन अध्ययनों में साबित हुआ है कि ज्यादातर मरीजों में आईजीएम और आईजीजी एंटीबॉडी दो महीने बाद भी विकसित नहीं हो रही है। ब्रिटेन में हुए अध्ययन में साबित हुआ है कि मरीजों में दो महीने बाद भी एंटीबॉडी बहुज ज्यादा दिखाई नहीं दीं।
तो इसलिए मुश्किल है वैक्सीन का असरजब हम इस वायरस को फ्लू या इन्फ्लूएंजा से जोड़कर देखते हैं तो हमें सबसे पहले इनके आरओ के बीच के अंतर को भी समझना चाहिए। फ्लू का आरओ 1.4 से 1.7 के बीच है। वैक्सीन लेने वाले दो में से एक व्यक्ति फ्लू की चपेट में आ जाता है। अब कोरोना का आरओ 3 से 5 यानी फ्लू की तुलना में कई गुना ज्यादा संक्रमण फैलाने वाला है। इस क्षमता के अनुसार वैक्सीन बनाना आसान नहीं है।रोग की गंभीरता जरूर होगी कम
अमेरिका के चीफ मेडिकल ऑफिसर डेविड स्टेट्स ने अमर उजाला से कहा कि अगर आप उम्मीद लगा रहे हैं कि वैक्सीन बचा लेगा तो शायद अभी यह मुश्किल है। यह सबसे ज्यादा फैलने वाला संक्रमण है। पशु वैक्सीन भी कारगर नहीं है। अमेरिकी ट्रायल में निष्कर्ष निकला है कि वैक्सीन संक्रमण रोकने में शायद ही कामयाब हो, लेकिन यह रोग की गंभीरता को जरूर कम कर सकती है।