World Athletics Championship: 100 घंटे, 3 खेल और 3 बड़ी उपलब्धियां, बढ़ते भारत की झलक
World Athletics Championship - 100 घंटे, 3 खेल और 3 बड़ी उपलब्धियां, बढ़ते भारत की झलक
World Athletics Championship: हर शहर की अपनी एक अलग सुबह होती है. सबके हिस्से का सूरज भले ही एक होता है लेकिन सुबह का अंदाज बदलता है. बनारस की सुबह बेंगलुरू की सुबह से अलग है, पठानकोट की सुबह पुणे की सुबह से अलग. लेकिन 28 अगस्त की सुबह हिंदुस्तान के हर शहर में एक बात ‘कॉमन’ थी. हर शहर में नीरज चोपड़ा की जीत की चर्चा थी. खुशी थी. नीरज चोपड़ा वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बन चुके थे. ये खबर बीती रात की थी, लेकिन बहुत देर से आई थी इसलिए इसका प्रचार-प्रसार सुबह सूरज की किरणों के साथ हुआ. ये खुशी तिगुनी इसलिए हो गई क्योंकि इससे कुछ ही घंटे पहले प्रज्ञानानंद चेस वर्ल्ड कप 2023 के फाइनल में रनर-अप रहे थे. और उससे कुछ घंटे पहले बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप में एचएस प्रणय ने ब्रांज मेडल जीता था.बैडमिंटन, जेवलिन थ्रो और शतरंज यानि चेस ऐसे खेल नहीं रहे हैं जिसमें भारत कभी भी महाशक्ति रहा हो. विश्वनाथन आनंद आए तो चेस को खेलप्रेमियों ने फॉलो करना शुरू किया. सायना नेहवाल ने 2012 में लंदन ओलंपिक्स में ब्रांज मेडल जीता तो बैंडमिंटन की लोकप्रियता अलग मुकाम पर गई. टोक्यो ओलंपिक्स में नीरज ने गोल्ड जीता तो ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में भारत की धमाकेदार ‘एंट्री’ हुई. ये दुनिया को भारत का संदेश है कि अब खेलों की दुनिया में उसे कमजोर ना माना जाए.100 घंटे, 3 खेल और 3 बड़ी उपलब्धियांसबसे पहले बात नीरज चोपड़ा की. नीरज चोपड़ा हिंदुस्तान के गोल्डन आर्म बन चुके हैं. बुडापेस्ट में उन्होंने 88.17 मीटर का थ्रो किया. इस थ्रो ने उन्हें गोल्ड मेडल दिलाया. ये सोचकर ही गर्व होता है कि वो ओलंपिक और वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाले दुनिया के सिर्फ दूसरे खिलाड़ी हैं. पिछली बार नीरज वर्ल्ड चैंपियनशिप फाइनल में चूक गए थे. उन्हें सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा था. इस बार उन्होंने वो कमी पूरी कर दी. अब प्रज्ञानानंद की बात करते हैं. 18 साल के प्रज्ञानानंद के सामने दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन थे. लेकिन प्रज्ञानानंद ने उन्हें जबरदस्त टक्कर दी. वो हिंदुस्तान के सिर्फ दूसरे ऐसे खिलाड़ी हैं जो फाइनल में पहुंचे. इससे पहले ये कारनामा विश्वनाथन आनंद ने किया था. कार्लसन को पहले दोनों दिन बराबरी पर रोकने वाले प्रज्ञानानंद को तीसरे दिन टाई ब्रेकर राउंड में हार का सामना करना पड़ा.ये बात हैरान करती है कि जिस बच्चे को टीवी पर कार्टून देखने से रोकने के लिए चेस खेलने को कहा गया उसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया. अब एचएस प्रणय के भी कारनामे को जान लीजिए. कोपेनहेगन में वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप चल रही थी. सेमीफाइनल में एचएस प्रणय को थाइलैंड के खिलाड़ी से हार का सामना करना पड़ा. लेकिन वो ब्रांज मेडल पर कब्जा कर चुके थे. ये कारनामा करने वाले वो हिंदुस्तान के सिर्फ पांचवें पुरूष खिलाड़ी हैं. ये उपलब्धि इसलिए भी बहुत खास है क्योंकि इस क्रम में उन्होंने ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट और डिफेंडिंग चैम्पियन विक्टर एक्सेलसेन को भी हराया था.20 साल में तेजी से बदली है तस्वीर2004 एथेंस ओलंपिक याद कीजिए. डबल ट्रैप शूटिंग में राज्यवर्धन सिंह राठौर ने सिल्वर मेडल जीता. ये इंडीविजुअल इवेंट में भारत का पहला ओलंपिक सिल्वर मेडल था. अगले ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा ने एक कदम और आगे बढ़ाकर गोल्ड मेडल जीत लिया. इसका असर ये हुआ कि आज शूटिंग में भारत को मजबूत देशों में गिना जाता है. 2008 बीजिंग ओलंपिक में सुशील कुमार ने कुश्ती और विजेंदर सिंह ने बॉक्सिंग में ब्रांज मेडल जीता. इन दोनों खेलों की लोकप्रियता आज किसी को बताने की जरूरत नहीं है. 2012 लंदन ओलंपिक्स में सायना नेहवाल ब्रांज मेडल लेकर आईं तो अगले दो ओलंपिक में पीवी सिंधु ने कमाल किया. इन सभी खेलों में भारत ओलंपिक के लेवल पर अच्छा प्रदर्शन कर रहा था लेकिन मेडल ने उसकी लोकप्रियता को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया.जिमनास्टिक में दीपा कर्माकर और गॉल्फ में अदिति अशोक जैसे खिलाड़ी भी रहे, जो बेहद मामूली अंतर से ओलंपिक मेडल से चूक गए लेकिन खेल को बहुत कुछ मिला. ये तस्वीर पिछले दो दशक में बदली है. अब बाजार भी पहले से ज्यादा खुले दिल से क्रिकेट से इतर खेलों को भी देख रहा है. विज्ञापन में सिर्फ क्रिकेटर नजर नहीं आते. शूटिंग, रेसलिंग, बैडमिंटन, बॉक्सिंग जैसे खेलों में भारत ओलंपिक में मजबूत दावेदार रहता है. जिस ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में हमारे हाथ खाली थे, उसमें नीरज ने टोक्यो ओलंपिक में धमाकेदार ‘एंट्री’ दिला दी. अब जो कामयाबी है वो इसी का ‘एक्सटेंशन’ है.शिकायत करते हैं तो जश्न भी मनाइए2016 ओलंपिक्स की बात है. कॉलमनिस्ट शोभा डे ने एक ट्वीट किया था. उन्होंने लिखा था- ओलंपिक्स में टीम इंडिया का गोल- रियो जाओ, सेल्फी लो, खाली हाथ वापस आ जाओ, पैसे और अवसर की बर्बादी. इस ट्वीट पर बड़ा बवाल हुआ. वीरेंद्र सहवाग ने लिखा था- ये बात आपको शोभा नहीं देती. अब जरा अपने दिल से पूछिए हममें से कितने लोग स्टेडियम जाते हैं मुकाबले देखने के लिए. दिल्ली के सिरी फोर्ट में सायना नेहवाल और पीवी सिंधु जैसे दिग्गज खिलाड़ी मुट्ठी भर दर्शकों के सामने खेल कर चले जाते हैं. कितने लोग हैं जो अपने बच्चों को सुबह उठकर पार्क में खेलने भेजते हैं. हम शिकायत तो करते हैं कि सवा सौ करोड़ की आबादी में इतने कम ओलंपिक मेडल क्यों आते हैं, लेकिन हम उसकी वजह नहीं तलाशते.राजधानी दिल्ली की ही बात करें तो लगभग हर दूसरे महीने कोई ना कोई ऐसा बड़ा स्पोर्टिंग इवेंट चल रहा होता है जिसमें बड़े बड़े खिलाड़ी आते हैं लेकिन स्टेडियम खाली रहता है. जो फॉर्मूला वन रेस दुनिया के चुनिंदा देशों में होती है वो कुछ सीजन के बाद भारत से चली जाती है. सौ की सीधी बात ये है कि अब खेलों को लेकर सरकार का रवैया बदला है, गांव-देहात में लोग खेल के महत्व को समझे हैं, खिलाड़ी अब गुजर-बसर के लिए मेडल्स बेचने के लिए मजबूर नहीं हैं वक्त बदला है. आप भी बदलिए, इन उपलब्धियों का जश्न मनाइए.