Lok Sabha Election: अखिलेश का 2024 के लिए फॉर्मूला, BJP का नीतीश की हामी बिगाड़ेगी गणित

Lok Sabha Election - अखिलेश का 2024 के लिए फॉर्मूला, BJP का नीतीश की हामी बिगाड़ेगी गणित
| Updated on: 04-Jul-2023 11:03 PM IST
Lok Sabha Election: अगले लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी इस बार एक नया प्रयोग करने की तैयारी में है. इस प्रयोग के बहाने अखिलेश यादव बीजेपी के एक मज़बूत वोट बैंक में सेंध लगाना चाहते हैं. अगर ये फ़ार्मूला चल गया तो फिर इसका फ़ायदा समाजवादी पार्टी को जबकि नुकसान बीजेपी को हो सकता है. हालांकिअखिलेश यादव के इस नए राजनीतिक दांव के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इजाज़त ज़रूरी होगी. नीतीश को यूपी से चुनाव लड़ना होगा. जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी को अपना लोकसभा क्षेत्र बनाया है.

जेडीयू के भी कई नेता इस बात की वकालत कर रहे हैं कि नीतीश लोकसभा का चुनाव लड़ें. पार्टी के कुछ बड़े नेताओं की राय है कि नीतीश दो जगहों से चुनाव लड़ें, जिसमें से एक सीट बिहार की हो और दूसरी सीट यूपी की. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक़ नीतीश के प्रयागराज के पास फूलपुर से चुनाव लड़ाने की चर्चा है. जेडीयू की यूपी यूनिट इसके लिए फूलपुर में सर्वे करवा रही है. अभी ये सीट बीजेपी के क़ब्ज़े में है. एक जमाने में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू यहां से सांसद चुने जाते थे. माफ़िया डॉन अतीक अहमद भी फूलपुर से एमपी रह चुका है.

नीतीश के फुलपुर आने से विपक्ष का क्या फायदा?

नीतीश कुमार अगर फूलपुर से चुनाव लड़ते हैं तो विपक्ष को क्या फ़ायदा होगा! पहले इसे समझते हैं. इस लोकसभा सीट पर नीतीश की जाति कुर्मी वोटरों का दबदबा है. इसी बिरादरी के लोग जीत हार तय करते हैं. नीतीश के चुनाव लड़ने से ये मैसेज जाएगा कि वे भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं. नीतीश के नाम के बहाने इस जाति के वोटर गोलबंद हो सकते हैं. अगर ऐसा हुआ और समाजवादी पार्टी की लॉटरी निकल सकती है. तरह तरह के गठबंधन करने के बावजूद चुनावों में अखिलेश यादव को अपेक्षित सफलता नहीं मिली है. क्या पता नीतीश कुमार उनके लिए लकी साबित हो जाए.

उत्तर प्रदेश में 6 फीसदी कुर्मी वोटर

राजनीतिक ताक़त के हिसाब से OBC में यादव के बाद कुर्मी को सबसे प्रभावशाली जाति माना जाता रहा है. एक अनुमान के मुताबिक़ राज्य में 6% कुर्मी वोटर हैं. अब तक का चुनावी इतिहास ये बताता रहा है कि यूपी में कभी भी इस समाज के लोग एक नेता के पीछे नहीं रहे. अलग अलग इलाक़ों में अलग अलग नेताओं का वर्चस्व रहा. अवध में बेनी प्रसाद वर्मा नेता रहे तो पूर्वांचल में सोनेलाल पटेल तो बरेली इलाक़े में संतोष गंगवार की धाक रही. बेनी बाबू अब रहे नहीं. उनकी कमी पूरी करने के लिए अखिलेश यादव ने सोनेलाल पटेल की बेटी पल्लवी पटेल से गठबंधन कर लिया है. पर इससे समाजवादी पार्टी के कोई ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ.

नीतीश बन सकते हैं सपा के लिए संकटमोचक

सोनेलाल पटेल की बड़ी बेटी अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल से बीजेपी का गठबंधन है. अपना दल के दो सांसद और 13 विधायक हैं. समाजवादी पार्टी पिछले कुछ सालों में MY वोट बैंक का विस्तार नहीं कर पाई है. MY का मतलब मुस्लिम और यादव वोट बैंक समीकरण. ग़ैर यादव पिछड़ों के समर्थन के बिना समाजवादी पार्टी अगले चुनाव में कोई कमाल कर ले, इस बात की गुंजाइश बहुत कम है. ऐसे में नीतीश कुमार उनके लिए संकटमोचक बन सकते हैं.

पटेल, गंगवार, सचान, कटियार, निरंजन, चौधरी और वर्मा यूपी में कुर्मी जाति के लोगों के सरनेम होते हैं. यूपी में लोकसभा की 80 सीटें है. इनमें 8 सांसद कुर्मी बिरादरी के हैं. बीजेपी के 6, बीएसपी के 1 और अपना दल के 1 सांसद इसी समाज के हैं. समाजवादी पार्टी को लगता है कि नीतीश कुमार के चुनाव लड़ने से उन्हें इस बिरादरी के लोगों का समर्थन अपने आप मिल जाएगा.

जेडीयू कर रही नीतीश के लिए ग्राउंड तैयार

जेडीयू के नेता चुपके चुपके फूलपुर में नीतीश कुमार के लिए चुनावी ज़मीन तैयार कर रहे हैं. यहाँ एक सर्वे भी कराया जा रहा है. यहाँ के वोटरों की राय ली जा रही है कि अगर नीतीश चुनाव लड़ें तो कैसा रहेगा. फूलपुर लोकसभा सीट पर क़रीब 19 लाख 75 हज़ार वोटर हैं. जिसमें 4 लाख कुर्मी वोटर हैं. नीतीश के चुनाव लड़ने और बाक़ी सीटों पर प्रचार करने से समाजवादी पार्टी को फ़ायदे की उम्मीद है. वैसे नीतीश पिछले बीस सालों से कोई चुनाव नहीं लड़े हैं

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