देश: ग्रहण के समय जानवर करने लगते हैं अजीब व्यवहार, हो जाते हैं तनावग्रस्त

देश - ग्रहण के समय जानवर करने लगते हैं अजीब व्यवहार, हो जाते हैं तनावग्रस्त
| Updated on: 05-Jun-2020 05:51 PM IST
दिल्ली: साल का दूसरा चंद्रग्रहण आज यानि जून को हो रहा है। ये साबित हो चुका है कि चंद्रमा की अलग अलग स्थितियां मनुष्य दिलोदिमाग पर अलग-अलग तरह से असर डालती हैं, जो उनके व्यवहार में नजर भी आता है। जानवर भी चंद्रमा की स्थितियों से प्रभावित होते हैं।चंद्गग्रहण के दिन उनके व्यवहार में अजीब तरीके से चेंज आता है।

साइंटिस्ट का भी कहना है कि चंद्रमा का साइकल जानवरों के मूड पर खासा असर डालता है। चांद की एक पूरी यात्रा 28 दिनों की होती है। जिसमें पूरे चंद्रमा का आकार कम होने लगता है और फिर ये बड़ा होकर पूरे आकार में आ जाता है। ये पूरा चक्र 28 दिनों में पूरा होता है। इसी के साथ पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र, गुरुत्वाकर्षण औऱ रात में चांद से आने वाले रोशनी में भी बदलाव आता है।

इस मौके पर बहुत सी प्रजातियां ब्रीडिंग करती हैं। जब पूरा चंद्रमा या नया चंद्रमा आता है। एक मूंगा (एक्रोपोरा मिलेपोरा) नवंबर के अंत में पूर्णिमा के बाद ग्रेट बैरियर रीफ पर वार्षिक स्पैनिंग इवेंट के दौरान लाखों और शुक्राणु बंडलों को रिलीज़ करता है।


ग्रहण पर हैरान हो जाते हैं जानवर 

जो खगोलीय घटनाएं होती हैं, उसमें जानवरों पर सबसे ज्यादा असर सूर्य ग्रहण का पड़ता है। बहुत से जानवर समझ ही नहीं पाते ये क्या हो गया और वो अपने घर की चल पड़ते हैं। जो पक्षी रात में जागते हैं, उन्हें लगता है कि वो कुछ ज्यादा सो रहे हैं।

सूर्य ग्रहण तब पड़ता है जब सूरज, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं। जब सूर्य ग्रहण होता है और जो लोग इसे देख रहे होते हैं, उनमें अक्सर व्यवहार में असामान्य घटनाएं होती हैं।

मकड़ियां अपने ही जाल को तोड़ने लगती हैं

साइंस अलर्ट में स्टीव पोर्तगल की रिपोर्ट कहती है,  मकड़ी प्रजातियों ग्रहण के दौरान ब्रेक डाउन की शिकार हो जाती हैं। वो अपने ही जाले को तोड़ने लगती हैं। बेचैनी दिखाती हैं। एक बार ग्रहण बीत जाने के बाद, वे उन्हें फिर से बनाना शुरू कर देती हैं।

इसी तरह का व्यवहार मछलियों और पक्षियों का भी हो जाता है, वो दिन भर जहां आमतौर पर सक्रिय रहते हैं, ग्रहण के दौरान वो अपने घरों की ओर लौटने लगते हैं। चमगादड़ को लगता है कि रात हो गई और वो उड़ना शुरू कर देते हैं।

हिप्पो आमतौर पर पानी में रहता है लेकिन ग्रहण के दौरान वो सूखे स्थान की ओर चल पड़ता है

हिप्पो नदी से निकलकर सूखी जगह की ओर चल पड़ता है

जिम्बाबवे में हिप्पो को ग्रहण के दौरान नदी छोड़ने के लिए बेचैन देखा गया, तब वो प्रजनन के लिए किसी सूखी जगह पर जाने की कोशिश करते हैं। जब वो आधे रास्ते में पहुंचते हैं और ग्रहण खत्म हो जाता है, सूर्यग्रहण खत्म होने पर दिन के अंधेरे की जगह रोशनी वापस आ जाती है, तब हिप्पो तुरंत अपने आगे जाने के प्रयास बंद कर देते हैं।

ग्रहण के दौरान जानवर आमतौर व्यथित हो जाते हैं और ग्रहण खत्म होने के बाद बचे हुए दिन में वो तनावग्रस्त लगते हैं।


चंद्र ग्रहण का असर

चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा, पृथ्वी परिक्रमा करने के दौरान सूरज के साथ एक सीध में आ जाएं। तब पृथ्वी इन दोनों के बीच में आ जाती है। तब पृथ्वी चांद पर पहुंचने वाली सूरज की रोशनी को रोक देती है , तब चांद की आभा लाल हो जाती है और चमक कम लगने लगती है। इसे ब्लड मून कहते हैं, ये तभी होता है चांद पूर्ण स्थिति में होता है। तब चंद्र ग्रहण से पैदा होने वाले असर से जानवरों का बच पाना संभव नहीं हो पाता। तब जानवर बदले हुए चांद को देखकर हैरान हो जाते हैं।

वैसे तो उल्लू बंदर प्रजाति के बंदर रात में जागते हैं और पेड़ों पर जमकर उछल-कूद करते रहते हैं लेकिन चंद्र ग्रहण होते ही वो डर जाते हैं। पेड़ों पर चलने से भी उन्हें डर लगता है

ये बंदर प्रजाति डर जाती है

वर्ष 2010 में एक अध्ययन अजारा के उल्लू बंदर प्रजाति पर किया गया-ये बंदर पूरी तरह से निशाचर प्रजाति है, यानि रात में जागने वाली। ये अर्जेंटीना में ही पाए जाते हैं। चंद्र ग्रहण के दौरान जैसे अंधेरा ज्यादा हो गया, उन्होंने खाने की तलाश बंद कर दी। बल्कि यों कहें कि खाना तलाश करने में उन्हें मुश्किल आने लगती है। तब उन्हें पेड़ों पर आगे बढ़ने में डर लगने लगता है।

साल में तीन बार सुपर मून की स्थिति भी आती है, ये तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है। इसे पेरिगी कहते हैं। सुपर मून में चांद केवल धरती से 28,500 मील यानि 45,000 किलोमीटर दूर होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चंद्रमा की जो कक्षा होती है वो पूरी तरह गोलाकार नहीं है।


बत्तख की दिल की धड़कन बढ़ने लगती है

सुपर मून के दौरान चांद ज्यादा चमकदार होता है तो वो 30 फीसदी ज्यादा चमकदार हो जाता है। ये तब आकाश में ज्यादा बड़ा भी नजर आता है। तब बत्तखों के व्यवहार में बदलाव दिखने लगता है। वैज्ञानिकों ने जंगली बर्फीली बत्तख गीज में एक छोटी सी डिवाइस फिट की तो पाया सुपर मून के दौरान उनके दिल की धड़कन बढ़ जाती है , साथ ही शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है, जबकि दिन के समय उनकी हालत एकदम सामान्य रहती है।

आमतौर पर जो बर्ड्स होती हैं तो सुपर मून के दौरान तब कोई प्रतिक्रिया नहीं देतीं जबकि वो बादलों में छिप जाता है और रात ज्यादा गहरी अंधेरी हो जाती है।

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