Aravalli Hills: अरावली को बचाने के लिए केंद्र सरकार का ऐतिहासिक फैसला: नए खनन पर पूर्ण प्रतिबंध

Aravalli Hills - अरावली को बचाने के लिए केंद्र सरकार का ऐतिहासिक फैसला: नए खनन पर पूर्ण प्रतिबंध
| Updated on: 24-Dec-2025 10:36 PM IST
केंद्र सरकार ने अरावली पर्वतमाला के संरक्षण के लिए एक अभूतपूर्व और निर्णायक कदम उठाया है। दिल्ली से गुजरात तक विस्तृत इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला को बचाने के उद्देश्य से, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अरावली। क्षेत्र में किसी भी प्रकार के नए खनन पट्टे जारी करने पर पूर्ण और तत्काल प्रतिबंध लगा दिया है। यह निर्णय अरावली के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने और इसके प्राकृतिक स्वरूप। को अक्षुण्ण रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। इस कठोर नीतिगत बदलाव का मुख्य लक्ष्य उन पर्यावरणीय क्षतियों को रोकना है जो अनियंत्रित खनन गतिविधियों के कारण इस महत्वपूर्ण भूभाग को लगातार झेलनी पड़ रही थीं।

अरावली पर्वतमाला केवल पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि उत्तर भारत के लिए एक जीवन रेखा है। यह एक प्राचीन पर्वत श्रृंखला है जो भारत के पश्चिमी भाग में दिल्ली से। शुरू होकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक लगभग 692 किलोमीटर तक फैली हुई है। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे एक अद्वितीय पारिस्थितिक तंत्र बनाती है। यह पर्वतमाला थार के रेगिस्तान को पूर्वी दिशा में फैलने से रोकने में एक प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करती है, जिससे उत्तरी भारत के उपजाऊ मैदानों की रक्षा होती है।

इसके अलावा, अरावली क्षेत्र में भूजल स्तर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों के लिए एक समृद्ध आवास प्रदान करता है, जिससे यह क्षेत्र जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन जाता है। इस पर्वतमाला का संरक्षण न केवल स्थानीय पर्यावरण के लिए बल्कि। पूरे क्षेत्र की जलवायु और पारिस्थितिकी के लिए अत्यंत आवश्यक है।

नए खनन पट्टों पर पूर्ण प्रतिबंध

केंद्र सरकार ने इस संबंध में एक स्पष्ट और सख्त निर्देश जारी किया है। हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली की राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि अरावली के पूरे भूभाग में अब किसी भी नए खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह 'नो एंट्री' नीति अरावली के पहाड़ों को काटकर खत्म होने से बचाने के लिए डिज़ाइन की गई है और दशकों से, अनियंत्रित खनन ने इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला के कई हिस्सों को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया है, जिससे न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का ह्रास हुआ है, बल्कि पारिस्थितिक असंतुलन भी पैदा हुआ है। नए खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर, सरकार का लक्ष्य भविष्य में होने वाले किसी भी ऐसे विनाशकारी कार्य को रोकना है जो अरावली के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है। यह निर्णय अरावली के प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

पर्यावरण मंत्रालय का कड़ा रुख

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस मामले में अब तक का सबसे कड़ा कदम उठाया है और यह दर्शाता है कि सरकार अरावली के संरक्षण के प्रति कितनी गंभीर है। मंत्रालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अरावली क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षरण को अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह निर्णय विभिन्न पर्यावरणीय संगठनों और कार्यकर्ताओं की लंबे समय से चली आ रही मांगों का भी परिणाम है, जो अरावली को खनन के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए लगातार आवाज उठा रहे थे और मंत्रालय का यह कड़ा रुख यह सुनिश्चित करेगा कि अरावली के पारिस्थितिक महत्व को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए और इसके संरक्षण के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जाएं। यह एक स्पष्ट संदेश है कि पर्यावरण की रक्षा राष्ट्रीय प्राथमिकता है।

संरक्षित दायरे का विस्तार

सरकार केवल वर्तमान प्रतिबंधों पर ही नहीं रुकेगी, बल्कि अरावली के संरक्षित दायरे को और बढ़ाने की योजना बना रही है। इस उद्देश्य के लिए, भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है। ICFRE पूरे अरावली क्षेत्र का एक व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन करेगा। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य उन नए इलाकों की पहचान। करना है जिन्हें 'खनन मुक्त क्षेत्र' घोषित करने की आवश्यकता है। यह पहल अरावली के उन हिस्सों को भी सुरक्षा प्रदान करेगी जो वर्तमान में संरक्षित नहीं हैं, लेकिन पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। ICFRE का वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करेगा कि संरक्षण के प्रयास प्रभावी और साक्ष्य-आधारित हों, जिससे अरावली के पारिस्थितिक तंत्र का समग्र और दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित हो सके।

पुरानी खदानों पर नियंत्रण

जो खदानें पहले से ही अरावली क्षेत्र में चल रही हैं, उन्हें भी अब खुली छूट नहीं मिलेगी। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को स्पष्ट आदेश दिए हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित नियमों और दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन कराएं। इसका अर्थ है कि इन खदानों को पर्यावरण संरक्षण के सभी मानदंडों का पालन करना होगा। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि पर अतिरिक्त पाबंदी लगाई जाएगी। इसमें खनन की गहराई, खनन के तरीके और खनन के बाद भूमि के पुनर्वास जैसे पहलू शामिल होंगे। यह कदम यह सुनिश्चित करेगा कि भले ही कुछ खनन गतिविधियां जारी रहें, वे पर्यावरण पर न्यूनतम नकारात्मक प्रभाव डालें और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन न करें। यह पुरानी खनन गतिविधियों पर एक मजबूत नियामक शिकंजा कसने का प्रयास है।

मरुस्थलीकरण रोकने में अरावली की भूमिका

केंद्र सरकार का यह मानना है कि अरावली केवल एक भौगोलिक विशेषता नहीं, बल्कि उत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है। यह पर्वतमाला थार के रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि अरावली का क्षरण होता है, तो थार का रेगिस्तान पूर्वी दिशा में फैल सकता है, जिससे हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की कृषि भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं और इसके अलावा, अरावली क्षेत्र में भूजल स्तर को बनाए रखने में भी सहायक है, जो कृषि और मानव बस्तियों के लिए महत्वपूर्ण है। यह भारी जैव विविधता को शरण देता है, जिसमें कई स्थानिक प्रजातियाँ शामिल हैं और इस प्रकार, अरावली का संरक्षण मरुस्थलीकरण को रोकने, जल सुरक्षा सुनिश्चित करने और जैव विविधता को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

दीर्घकालिक पर्यावरणीय लाभ

इस ऐतिहासिक निर्णय के दीर्घकालिक पर्यावरणीय लाभ व्यापक होंगे और नए खनन पर प्रतिबंध और मौजूदा खनन गतिविधियों पर कड़ा नियंत्रण अरावली के प्राकृतिक पुनरुत्थान में मदद करेगा। इससे मिट्टी का कटाव कम होगा, भूजल पुनर्भरण में सुधार होगा। और क्षेत्र की वनस्पति और जीव-जंतुओं को पनपने का अवसर मिलेगा। यह कदम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में भी सहायक होगा, क्योंकि स्वस्थ वनस्पति कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करती है। अरावली का संरक्षण न केवल स्थानीय समुदायों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए स्वच्छ हवा, पानी और एक स्थिर पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करेगा। यह एक दूरदर्शी निर्णय है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए।

एक स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय अरावली पर्वतमाला के भविष्य के लिए एक नई उम्मीद जगाता है। केंद्र सरकार का यह कड़ा और निर्णायक कदम इस बात का प्रमाण है कि पर्यावरण संरक्षण अब केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्य आवश्यकता है और अरावली को बचाना न केवल एक पारिस्थितिक दायित्व है, बल्कि यह उत्तर भारत की जलवायु, जल सुरक्षा और जैव विविधता के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस पहल से अरावली अपने प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त कर सकेगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक विरासत बनी रहेगी।

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।