राजस्थान: अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे रहे पूरे पॉलिटिकल ड्रामे के विजेता
राजस्थान - अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे रहे पूरे पॉलिटिकल ड्रामे के विजेता
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Updated on: 11-Aug-2020 04:38 PM IST
जयपुर। करीब एक महीने से ज्यादा समय तक चल रहे राजस्थान के पूरे पॉलिटिकल ड्रामे (Political drama) के दो विजेता रहे हैं। एक सीएम अशोक गहलोत और दूसरी पूर्व सीएम वसुंधरा राजे (Ashok Gehlot and Vasundhara Raje)। वहीं दो को मात खानी पड़ी है। इनमें एक सचिन पायलट और दूसरी बीजेपी है। पूरे गेम की गेम चेंजर ही वसुंधरा राजे मानी जा रही हैं। सचिन पायलट तब तक मजबूत थे जब तक बीजेपी पीछे मजबूती से खड़ी नजर आई। लेकिन वसुंधरा राजे 25 दिन की चुप्पी के बाद जैसे ही धौलपुर से दिल्ली पहुंची तो धरातल पर गेम की दशा और दिशा दोनों ही बिगड़नी शुरू हो गई। मैच के परिणाम को लेकर अनिश्चितता बढ़ने लगी। वसुंधरा राजे गुट शुरू से ही सचिन पायलट को समर्थन देने के खिलाफ था। लेकिन जयपुर से दिल्ली तक बीजेपी तय कर चुकी थी पायलट का साथ देना है। राजे ने पहले पार्टी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष और फिर राजनाथ सिंह से मिलकर अपनी राय साफ कर दी थी। वो गहलोत सरकार गिराने और पायलट का साथ देने के पक्ष में नहीं थीं।संकट यहां से शुरू हुआबीजेपी के सामने पहला संकट उस समय आ खड़ा हुआ जब कांग्रेस से जुड़े भीनमाल इलाके के एक धनपति ने बीजेपी के आठ विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश की। टारगेट वाले विधायक राजे गुट के थे। जैसे ही बीजेपी को अपनी पार्टी में इस तोड़फोड़ की आंशका की जानकारी मिली तो उसने सभी विधायकों को गुजरात ले जाने का फैसला किया। आनन-फानन में चार्टर विमान बुलाए गए। मुख्य़मंत्री अशोक गहलोत का आरोप है कि तीन चार्टर विमान बुलाए गये थे। सभी विधायकों को पोरबंदर में बाड़ेबंदी के लिए ले जाने की तैयारी थी। लेकिन विधायकों के नहीं जाने से सिर्फ एक चार्टर में कुछ विधायक ही ले जाये गए।बाड़ाबंदी के विरोध से पायलट को अहसास हो गया थादरअसल वसंधरा राजे गुट से जुड़े कुछ सीनियर विधायकों ने बीजेपी की इस बाड़ेबंदी का अंदरूनी तौर पर विरोध किया। इस पर बीजेपी को फिर सभी विधायकों को गुजरात ले जाने का इरादा छोड़ना पड़ा। बस ये ही टर्निंग पॉइंट था जब सचिन पायलट को अहसास हो गया था कि वसुंधरा राजे गुट विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के दौरान पूरी तरह साथ ख़ड़ा नहीं होगा। कुछ विधायक गहलोत के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं या फिर अनुपस्थित रह सकते हैं। यानी सरकार गिरना काफी मुश्किल था। इसलिए पायलट ने प्लान बी पर काम करना शुरू कियापायलट के पास महज 22 ही विधायक थे। ऐसे में बीजेपी के एकजुट होकर समर्थन की दरकार थी। संख्या बल में गहलोत के पास 200 में से 99 विधायक थे। अगर बीजेपी से एक भी विधायक टूटता है तो सरकार नहीं गिर सकती थी। इस पर पायलट ने प्लान बी पर विचार शुरू कर दिया। यानी कांग्रेस में वापसी।हालांकि राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष सतीश पूनिया का कहना है कि इस पूरे ड्रामे से बीजेपी का न सरोकार था न वसुंधरा राजे ने पार्टी के किसी फैसले की मुखालफत की। राजे गुट क्यों नहीं चाहता था गहलोत सरकार गिरानावसुंधरा राजे गुट के नेता ये मानकर चल रहे थे कि अगर गहलोत सरकार गिरती है तो बीजेपी दो विकल्प में से एक चुनेंगी। या तो वह सचिन पायलट को समर्थन देगी सरकार बनाने में या फिर अपना मुख्यमंत्री बनाकर मध्यप्रदेश की तर्ज पर सरकार बनाएगी। राजे गुट के विधायकों को लग रहा था दोनों ही हालत में नुकसान वसुंधरा राजे का होगा। वर्तमान संकट में बीजेपी की अगुआई केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया कर रहे थे। राजे समर्थकों को डर था कि अगर बीजेपी ने सरकार बनाई तो पार्टी सीएम राजे को नहीं शेखावत या पूनिया मे से किसी को बना सकती है। अगर पार्टी पायलट को समर्थन देती है तब भी राजे के हाथ से सब कुछ फिसलने का डर था। राजे गुट के नेता मेघवाल ने खुलकर किया विरोधराजे गुट के वरिष्ठ नेता कैलाश मेघवाल ने कहा कि चुनी हुई सरकार को गिराना ठीक नहीं है। उन्होंने अपनी ही पार्टी को निशाने पर ले लिया था। गहलोत बीजेपी की अंदरूनी फूट को भांप गए थे। इसी वजह से गहलोत ने इस संकट के वक्त में भी वसुंधरा राजे का सरकारी बंगला एक सरकारी आदेश से सुरक्षित कर दिया। इससे राजे गुट की गहलोत के प्रति सहानूभूति और बढ़ी। राजे गुट के विधायक खुश हैं कि इस पॉलिटिकल ड्रामे के बाद वसुंधरा राजे मजबूत हुई हैं। राजे समर्थक एक विधायक ने कहा कि पार्टी को राजे की क्षमताओं का अहसास हो गया है।
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