देश: बेंगलुरू की बाढ़ फेर न दे अरमानों पर पानी, चिंता में सियासी दल

देश - बेंगलुरू की बाढ़ फेर न दे अरमानों पर पानी, चिंता में सियासी दल
| Updated on: 11-Sep-2022 07:47 PM IST
कर्नाटक में नजदीक आते विधानसभा चुनाव से पहले आई बाढ़ ने यहां के राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ा दी है। भारी बारिश और बाढ़ के चलते जिस तरह से शहर की बुनियादी सुविधाओं की पोल खुली है, उससे सत्ताधारी दल के विधायक सबसे ज्यादा परेशान हैं। उन्हें डर है कि सात महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव और इस साल के अंत तक होने वाले बीबीएमपी के चुनावों कहीं उनके सियासी अरमानों पर पानी न फिर जाए। 

धूमिल हुआ ब्रांड बेंगलुरू

भारी बारिश और उसके बाद आई बाढ़ के चलते बेंगलुरू में बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। इसके अलावा जनजीवन भी काफी ज्यादा प्रभावित हुआ है। इतना ही नहीं, कुछ लोगों ने शिकायत की कि इससे 'ब्रांड बेंगलुरु' की छवि धूमिल हो रही है। इस बारिश और बाढ़ का सबसे बड़ा दंश  बेंगलुरु में दबदबा बना चुकी आईटी इंडस्ट्री ने झेला है। वहीं यह भी माना जा रहा है कि इस संकट के दौरान राजनीतिक वर्ग से निराश नागरिकों के एक समूह के बीच आक्रोश पनप रहा है।

भाजपा को डर तो कांग्रेस भी नहीं झाड़ सकती पल्ला

कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, सत्तारूढ़ भाजपा को इससे सबसे ज्यादा डर लग रहा है। उसे इस बात की चिंता इसलिए है कि क्योंकि शहर के नगर निगम की निर्वाचित परिषद न होने पर इस संकट के लिए सीधे राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। वहीं बीबीएमपी क्षेत्र के 27 में से 15 विधायक भी भाजपा से ही हैं। इनमें से सात कैबिनेट में मंत्री भी हैं। बहरहाल, कांग्रेस के पास इस स्थिति के लिए सत्तारूढ़ पार्टी पर दोष मढ़ने का अवसर है और संभवत: वह जन आक्रोश के केंद्र में नहीं है। लेकिन 11 विधायकों वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी को अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठानी पड़ सकती है, क्योंकि वह पिछले कुछ दशकों में बेंगलुरु तथा कर्नाटक में सत्ता में रही थी। साथ ही, शहर से कांग्रेस के कई विधायक ऐसे हैं, जो पहले भी विधायक तथा मंत्री रह चुके हैं तथा उनके खिलाफ भी जन आक्रोश देखने को मिल सकता है।

नई पार्टियां उठा सकती हैं फायदा

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल एनालिस्ट ए. नारायण ने कहा कि उनकी राय में ऐसे घटनाक्रम का विधानसभा चुनावों के बजाय बीबीएमपी चुनावों पर ज्यादा राजनीतिक असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि बहरहाल, सत्तारूढ़ पार्टी के लिए चुनाव की राह मुश्किल होने जा रही है, क्योंकि वह जन आक्रोश के केंद्र में है। उन्होंने कहा कि यह सवाल भी है कि इससे कौन फायदा उठाएगा और मुझे लगता है कि सभी दलों में से आम आदमी पार्टी तथा अन्य कोई नई पार्टी इसका फायदा उठाने के लिए बेहतर स्थिति में होगी। उनके मुताबिक कांग्रेस बचाव की मुद्रा में होगी। चूंकि सत्तारूढ़ भाजपा को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा, तो स्वाभाविक रूप से कांग्रेस को भी पूर्व में सत्ता में रहने के कारण इस स्थिति के लिए स्पष्टीकरण देना होगा।

बनने लगी है सत्ता विरोधी लहर

विधानसभा चुनावों पर इसके असर के संबंध में नारायण ने कहा कि अभी हम यह कह सकते हैं कि सत्ता-विरोधी लहर धीरे-धीरे बन रही है। बारिश तथा बाढ़ से हुए नुकसान से इसे और हवा मिलेगी। उन्होंने कहा कि साथ ही विधानसभा चुनावों में कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार की लोकप्रियता मायने रखेगी, कुछ में पार्टी का नाम तथा अन्य में दोनों ही चीजें देखी जाएगी। जन आक्रोश बढ़ने के साथ ही सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस के बीच शहर के बुनियादी ढांचे के प्रबंधन को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है।

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