India-Afghanistan Trade: पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत-अफगानिस्तान व्यापार में नई क्रांति
India-Afghanistan Trade - पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत-अफगानिस्तान व्यापार में नई क्रांति
भारत और अफगानिस्तान ने एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम उठाते हुए व्यापार के लिए पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता को समाप्त करने का संकल्प लिया है। यह निर्णय दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने और क्षेत्रीय व्यापार मार्गों को नया आकार देने की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर है और इस नई रणनीति का केंद्र ईरान का चाबहार पोर्ट होगा, जिसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने की योजना है। इस पहल से अफगान माल सीधे भारतीय बंदरगाहों तक पहुंच सकेगा, और बदले में भारतीय अनाज, दवाइयाँ तथा अन्य आवश्यक वस्तुएँ सीधे काबुल तक पहुंचाई जा सकेंगी, जिससे व्यापार में लगने वाला समय और लागत दोनों में कमी आएगी।
चाबहार पोर्ट: व्यापार का नया प्रवेश द्वार
अफगान ट्रेड मंत्री नूरुद्दीन अज़ीजी की हालिया दिल्ली यात्रा के दौरान, चाबहार पोर्ट के। माध्यम से व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाने पर सहमति बनी। इन कदमों में चाबहार से नियमित शिपिंग सर्विस की शुरुआत, निमरोज में एक ड्राई पोर्ट का विकास, और भारत के नावा शेवा पोर्ट पर कार्गो क्लियरेंस प्रक्रियाओं को सुगम बनाना शामिल है और इन उपायों का उद्देश्य व्यापारिक बाधाओं को कम करना और दोनों देशों के बीच वस्तुओं की आवाजाही को अधिक कुशल बनाना है। चाबहार पोर्ट भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक पहुंचने का एक रणनीतिक मार्ग प्रदान करता है, जिससे पाकिस्तान के रास्ते पर निर्भरता कम होती है। यह न केवल आर्थिक बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी भारत और अफगानिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।मानवीय सहायता: भारत का अटूट समर्थन
भारत ने हाल ही में अफगानिस्तान को एंबुलेंस और अन्य महत्वपूर्ण मेडिकल सहायता भेजकर यह स्पष्ट संकेत दिया है कि मानवीय मुद्दों पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा। तालिबान सरकार, जो लंबे समय से अपने देश में मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी से जूझ रही है,। के लिए भारत की यह सहायता काबुल में बेहद सकारात्मक संदेश के तौर पर देखी गई है। यह दर्शाता है कि भारत मानवीय आधार पर अफगानिस्तान के लोगों की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है, भले ही राजनीतिक परिस्थितियाँ कुछ भी हों और इस तरह की सहायता से दोनों देशों के बीच विश्वास और सद्भावना का माहौल बनता है, जो भविष्य के सहयोग के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।दूतावास की पुनः सक्रियता: संबंधों में गर्माहट
2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत ने अपना काबुल दूतावास बंद कर दिया था, लेकिन बदलते भू-राजनीतिक माहौल और विशेष। रूप से पाकिस्तान से तालिबान के रिश्तों में आई खटास के बाद भारत ने धीरे-धीरे अपने दूतावास को फिर से सक्रिय कर दिया है। हाल ही में अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की दिल्ली यात्रा ने इस प्रक्रिया को और गति प्रदान की है, जिससे दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध एक बार फिर पटरी पर आते दिख रहे हैं। दूतावास की पुनः सक्रियता दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करती है, जिससे विभिन्न मुद्दों पर सीधी बातचीत संभव हो पाती है।एयर कार्गो सेवा: आसमान से राहत
दोनों देशों ने जल्द ही भारत-अफगानिस्तान एयर कार्गो रूट को फिर से शुरू करने की घोषणा की है और यह कदम ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान-अफगान बॉर्डर पर हालिया सैन्य टकराव के बाद तालिबान सरकार को भारतीय अनाज, दवाइयों और मशीनरी की तात्कालिक जरूरत है। एयर कार्गो सेवा उनके लिए राहत का एक बड़ा सूत्र बनकर उभर रही है, क्योंकि यह तेजी से और सुरक्षित तरीके से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करेगी। यह मार्ग विशेष रूप से उन संवेदनशील वस्तुओं के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हें जल्दी पहुँचाने की आवश्यकता होती है, और यह जमीनी मार्गों पर संभावित बाधाओं से बचने में मदद करेगा।भारतीय व्यवसायों के लिए सुनहरा अवसर
अफगानिस्तान ने भारतीय कंपनियों को खुले आम न्योता देते हुए अपने देश में निवेश के लिए कई आकर्षक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है। इन प्रोत्साहनों में 5 साल तक टैक्स छूट, 1% इम्पोर्ट टैरिफ, फ्री लैंड, और विश्वसनीय बिजली सप्लाई शामिल है। तालिबान प्रशासन माइनिंग, कृषि, हेल्थकेयर, आईटी, फार्मा और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भारत के निवेश का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। यह भारतीय व्यवसायों के लिए अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का एक सुनहरा अवसर प्रस्तुत करता है, साथ ही दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को और गहरा करेगा और यह पहल अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद कर सकती है।
ये सभी घटनाक्रम भारत और अफगानिस्तान के बीच एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत देते हैं, जहाँ दोनों देश साझा हितों और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए मिलकर काम करने को तैयार हैं। पाकिस्तान को दरकिनार कर व्यापारिक और राजनयिक संबंधों को मजबूत करना, क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है।