Bihar Election Results: बिहार चुनाव परिणाम: तेजस्वी यादव की रणनीति क्यों हुई फेल? 5 मुख्य कारण

Bihar Election Results - बिहार चुनाव परिणाम: तेजस्वी यादव की रणनीति क्यों हुई फेल? 5 मुख्य कारण
| Updated on: 14-Nov-2025 02:27 PM IST
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम महागठबंधन के लिए निराशाजनक साबित हो रहे हैं। मतों की गणना जारी है और शुरुआती रुझानों से स्पष्ट है कि एनडीए लगातार बढ़त बनाए हुए है, जबकि विपक्ष के सबसे बड़े नेता और मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव की अगुवाई वाला महागठबंधन बड़ी हार की ओर बढ़ रहा है। इस अप्रत्याशित परिणाम ने राजनीतिक गलियारों में तेजस्वी यादव की चुनावी रणनीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। चुनाव से पहले तेजस्वी ने नौकरी देने और महिलाओं के खाते में पैसे भेजने जैसे कई बड़े वादे किए थे, लेकिन ये सभी दावे धरे के धरे रह गए। आखिर कहां चूक हो गई तेजस्वी की रणनीति में? आइए, उन पांच मुख्य बिंदुओं पर गौर करते हैं जिन्हें उनकी हार का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। तेजस्वी यादव की रणनीति में सबसे पहली और महत्वपूर्ण चूक कांग्रेस के साथ गठबंधन करना मानी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में कांग्रेस की कमजोर स्थिति। के बावजूद उसके साथ हाथ मिलाना महागठबंधन के लिए भारी पड़ गया। कांग्रेस को दी गई सीटों पर अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाना और कई जगहों पर कांग्रेस उम्मीदवारों का कमजोर दिखना, महागठबंधन के कुल वोट शेयर पर नकारात्मक प्रभाव डाल गया। यह गठबंधन शायद जमीनी स्तर पर मतदाताओं को उतना आकर्षित नहीं कर पाया जितना कि तेजस्वी यादव ने उम्मीद की थी। इस फैसले ने न केवल सीटों के बंटवारे को जटिल बनाया बल्कि कई संभावित सहयोगियों को भी दूर कर दिया, जिससे महागठबंधन की एकता पर सवाल उठने लगे।

सीटों के बंटवारे को लेकर राहुल गांधी के पीछे दौड़ना

गठबंधन के बाद सीटों के बंटवारे को लेकर तेजस्वी यादव का राहुल गांधी के पीछे दौड़ना भी एक बड़ी रणनीतिक कमजोरी के रूप में देखा जा रहा है और इस घटनाक्रम ने यह संदेश दिया कि तेजस्वी यादव गठबंधन में एक मजबूत स्थिति में नहीं थे और उन्हें कांग्रेस की शर्तों पर झुकना पड़ा। सीटों के बंटवारे में देरी और खींचतान ने न केवल प्रचार अभियान को प्रभावित किया बल्कि कार्यकर्ताओं के मनोबल को भी गिराया। यह स्थिति तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल खड़े करती है, क्योंकि एक मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में उनसे अधिक निर्णायक भूमिका की उम्मीद की जा रही थी। इस तरह की राजनीतिक खींचतान ने मतदाताओं के बीच भी अनिश्चितता का माहौल पैदा किया, जिसका खामियाजा चुनाव परिणामों में भुगतना पड़ा।

मुकेश सहनी के आगे झुकना और डिप्टी सीएम पद पर राजी होना

विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी के साथ गठबंधन और उन्हें उपमुख्यमंत्री पद की पेशकश करना भी तेजस्वी की रणनीति का एक विवादास्पद पहलू रहा। मुकेश सहनी, जिन्हें 'सन ऑफ मल्लाह' के नाम से जाना जाता है, को साधने के लिए तेजस्वी यादव ने काफी रियायतें दीं। यह माना जा रहा है कि सहनी को इतनी अहमियत देना और उपमुख्यमंत्री पद पर भी राजी हो जाना, तेजस्वी की मजबूरी को दर्शाता है और इस कदम से शायद अन्य छोटे दलों या संभावित सहयोगियों के बीच गलत संदेश गया हो, या फिर सहनी की पार्टी ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया हो। इस फैसले ने महागठबंधन के भीतर भी असंतोष पैदा किया होगा और यह। सवाल उठाया होगा कि क्या यह समझौता चुनावी लाभ के लिए उचित था।

वास्तविक मुद्दों को छोड़कर वोट चोरी जैसे मुद्दे पर भटकना

चुनाव प्रचार के दौरान तेजस्वी यादव का वास्तविक मुद्दों जैसे बेरोजगारी, महंगाई और विकास से भटककर 'वोट चोरी' जैसे आरोपों पर ध्यान केंद्रित करना भी उनकी रणनीति की एक बड़ी चूक मानी जा रही है। जब मतदाता अपनी रोजमर्रा की समस्याओं का समाधान चाहते थे, तब तेजस्वी का ध्यान चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने में लग गया। इस तरह के आरोप अक्सर मतदाताओं के बीच नकारात्मक धारणा बनाते हैं और उन्हें मुख्यधारा के मुद्दों से भटकाते हैं और यह रणनीति मतदाताओं को यह संदेश देने में विफल रही कि तेजस्वी यादव के पास बिहार के लिए एक स्पष्ट और ठोस विकास एजेंडा है। इसके बजाय, यह उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में प्रस्तुत कर सकता था जो हार की आशंका में पहले से ही बहाने तलाश रहा था।

महिलाओं की बंपर वोटिंग ने बिगाड़ा आरजेडी का खेल

बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं की बंपर वोटिंग ने महागठबंधन और विशेषकर आरजेडी के खेल को बिगाड़ दिया। इस बार के चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत 67. 13% रहा, जो 1951 के बाद से अब तक का सर्वोच्च स्तर है, और इसमें महिला मतदाताओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही और तेजस्वी यादव ने महिलाओं के लिए कई वादे किए थे, जैसे उनके खातों में पैसे भेजना, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि महिला मतदाताओं ने एनडीए के पक्ष में अधिक मतदान किया। यह एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलाव है जिसने चुनाव परिणामों को प्रभावित किया। महिलाओं ने शायद सुरक्षा, कानून-व्यवस्था और सरकारी योजनाओं जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया, जहां एनडीए ने खुद को मजबूत स्थिति में प्रस्तुत किया। महिला मतदाताओं के इस अप्रत्याशित रुझान को समझने और उसे अपने पक्ष में मोड़ने में तेजस्वी यादव की रणनीति विफल रही, जिससे उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। कुल मिलाकर, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम तेजस्वी यादव के लिए एक बड़ा सबक लेकर आए हैं। उनकी रणनीति में कई स्तरों पर चूक हुई, जिसने महागठबंधन को अपेक्षित सफलता से दूर कर दिया। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस हार के बाद तेजस्वी यादव अपनी भविष्य की राजनीतिक राह कैसे तय करते हैं।

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