One Nation One Election: सरकार ने सत्र बुलाकर साधे 3 निशाने, विपक्ष के प्लान अब हो सकते है नाकाम!

One Nation One Election - सरकार ने सत्र बुलाकर साधे 3 निशाने, विपक्ष के प्लान अब हो सकते है नाकाम!
| Updated on: 31-Aug-2023 11:43 PM IST
One Nation One Election: 18 सितंबर से 22 सितंबर तक बुलाए गए संसद के विशेष सत्र को लेकर कई तरह की चर्चाओं हो रही हैं. मोदी सरकार के पिछले साढ़े नौ साल में पहली बार विशेष सत्र बुलाए जाने के मुद्दों पर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है. सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि 5 दिनों के विशेष सत्र में जी 20 के साथ भारत के बढ़ते कद, चंद्रयान 3 की सफलता और अमृतकाल की शुरुआत के साथ मोदी सरकार द्वारा अबतक लिए गए महत्वपूर्ण फैसलों पर चर्चा और उसके जरिए अपनी सरकार की मजबूती को प्रदर्शित करने की मंशा हो सकती है.

इसके साथ ही सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस विशेष सत्र में कुछ चौंकाने वाले फैसले से संबंधित बिल भी लाए जा सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि वन नेशन वन इलेक्शन पीएम मोदी के दिल के करीब का विषय रहा है. इसको लेकर पीएम मोदी समय-समय पर अपने विचार रख चुके हैं, इसलिए विशेष सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन के विषय को नकारा नहीं जा सकता. अगर ये बिल आता है तो संभवतः सितंबर में बुलाया जा रहा स्पेशल सेशन 17वीं लोकसभा का आखिरी सेशन हो सकता है. इस विशेष सत्र के बाद हाउस को डिसॉल्व किया जा सकता है और इलेक्शन में जाने की घोषणा की जा सकती है.

विपक्षी एकता में पड़ सकती है फूट

अलग-अलग समय में चुनाव होने से सरकार के ट्रेजरी पर अत्यधिक आर्थिक बोझ पड़ने से मुक्ति की दलील के अलावा केंद्र सरकार के इस फैसले को लागू करने के पीछे एक राजनीतिक सोच ये भी हो सकती है कि मौजूदा विपक्षी दलों की इंडिया एलायंस में कई ऐसे दल हैं जो राज्यों में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं जबकि केंद्र का चुनाव एक साथ एक मंच से लड़ने की लगातार तैयारी कर रहे हैं. यदि वन नेशन वन इलेक्शन जैसे बिल को केंद्र सरकार पास करवाती है तो मौजूदा इंडिया एलायंस के कई दल एक मंच पर नजर नहीं आएंगे खासकर बंगाल में विरोधी की भूमिका में वामपंथी दल और ममता बनर्जी अलग अलग नजर आएंगी.

वहीं केरल में विरोधी दल कांग्रेस और वामपंथी दल एक मंच पर नजर नहीं आएंगे साथ ही दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक साथ नजर नहीं आएंगे. इस तरह से विपक्षी एकता में राजनीतिक फूट भी हो जाएगी. खास बात ये है की देश को मिली आजादी के बाद 1952, 1957 और 1962 में सभी विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते थे लेकिन उसके बाद राजनीतिक उठापथक के बाद इलेक्शन अलग अलग समय पर अलग राज्य में होने लगे.

मोदी सरकार आने के बाद 2018 में गठित कानून मंत्रालय से संबंधित संसदीय समिति ने अपने रिकमेंडेशन में केंद्र और राज्यों का चुनाव एक साथ कराने की वकालत कर चुकी है. साथ ही 2022 में विधि आयोग ने भी अपने रिकमेंडेशन में राज्यों और केंद्र का चुनाव एक साथ करने की अनुसंशा की थी. हालांकि विधि आयोग ने अपने रिपोर्ट में इस बात की पैरोकारी की थी कि राज्यों और केंद्र का चुनाव एक साथ कराए जाने से पहले देश की राजनीतिक पार्टियों से वाइड कंसल्टेशन किया जाना चाहिए.

महिला आरक्षण बिल भी ला सकती है सरकार

इसके अलावा एक दूसरा बिल लाए जाने की चर्चा सरकार से जुड़े सूत्रों द्वारा किया जा रहा है. सूत्रों का कहना है महिला आरक्षण बिल भी मोदी सरकार के एजेंडा का विषय है लिहाजा इस विशेष सत्र में इसको लेकर भी केंद्र सरकार बिल ला सकती है. महिला आरक्षण सालों से बीजेपी घोषणापत्र का हिस्सा रहा है, पीएम मोदी इस इश्यू को अपने पक्ष में भुनाने का प्रयास कर सकते हैं और ये एक ऐसा मुद्दा है जिसका विरोध कोई भी दल शायद ही कर सके. बदले माहौल और परिस्थितियों में अब आरजेडी और सपा जैसे दल भी अब महिला आरक्षण के मुद्दे पर समर्थन में खड़े दिखेंगे. इस एक फैसले से आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बीजेपी को भारी फायदा हो सकता है.

हालांकि अभी तक केंद्र सरकार के तरफ से संसद के आगामी सत्र के लिए एजेंडा पर कोई जानकारी नहीं दी है, लेकिन वन नेशन वन इलेक्शन और महिला आरक्षण जैसे विषयों को एजेंडा में होने की संभावना जताई जा रही है.

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