Delhi News: दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले को लेकर केंद्र ने दाखिल की पुनर्विचार याचिका

Delhi News - दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले को लेकर केंद्र ने दाखिल की पुनर्विचार याचिका
| Updated on: 20-May-2023 01:27 PM IST
Delhi News: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कि संविधान पीठ के फैसले को लेकर दाखिल की पुनर्विचार याचिका की है. सूत्रों के मुताबिक कहा गया है कि भारत सरकार ने दिल्ली के बारे में एक अध्यादेश जारी किया क्योंकि संविधान पीठ के फैसले से कई विसंगतियां पैदा हुई हैं. इस अध्यादेश का रास्ता संविधान पीठ के फैसले से ही खुला है. जिसमें कहा गया है कि इसमें कानून बनाने का अधिकार संसद के जरिए केंद्र सरकार को है.

दिल्ली में अफसरों की नियुक्ति और तबादलों के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश क्यों लेकर आई इस लेकर कई दावे किए हैं. सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले से संविधान के मूल ढांचे की अवधारणा का उल्लंघन हुआ है.संविधान के अनुच्छेद एक में भारत के क्षेत्र को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से परिभाषित होता है. इसका तात्पर्य है कि केंद्रशासित प्रदेश का शासन केवल केंद्र से होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने गठित की एक नई श्रेणी

सूत्रों के मुताबिक संविधान पीठ ने दिल्ली के लिए एक विशेष श्रेणी का गठन किया जिसे एक विशिष्ट नई श्रेणी का नाम दिया गया. इस तरह संविधान पीठ ने एक ऐसी श्रेणी बनाई जो अभी तक नहीं थी और यह संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध है. अगर इसे एक विशिष्ट नई श्रेणी भी माना जाए तो इस बात से इनकार नहीं हो सकता कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश यूटी है.

केंद्र ही कर सकता है यूटी में शासन

उन्होंने कहा कि यह भारत की राजधानी और यूटी है. इसलिए इसका शासन कोई और नहीं बल्कि केंद्र ही कर सकता है.संविधान के अनुच्छेद 239 एए में दिल्ली में विधानसभा का प्रावधान किया गया था ताकि स्थानीय आकांक्षाओं की पूर्ति हो सके. इसके पीछे यह उद्देश्य कभी नहीं रहा कि यूटी पर स्थानीय सरकार का नियंत्रण हो और यह केंद्र सरकार के नियंत्रण से बाहर हो.

उपराज्यपाल को दी गई हैं शक्तियां

संविधान के 14वें हिस्से में प्रावधान है कि सेवाएं केंद्र या राज्य के अधीन हैं यूटी के अधीन नहीं. दिल्ली को राज्य मानने का संविधान पीठ का फैसला संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है. संविधान केंद्र और राज्य के बीच अधिकारों का बंटवारा करता है. संविधान पीठ का फैसला उपराज्यपाल के अधिकारों को कम करता है और इस तरह राष्ट्रपति का भी. संविधान में प्रावधान है कि यूटी का प्रशासनिक प्रमुख उपराज्यपाल है जबकि राज्यों के राज्यपालों के साथ ऐसा नहीं है. एलजी की तुलना राज्यपाल से करके संविधान पीठ ने उनकी शक्ति को कम किया गया है. संविधान पीठ ने सेवाओं के मामलों में उपराज्यपाल पर मंत्रिपरिषद की सिफारिशों को बाध्यकारी माना है जबकि सेवाएं केंद्र के क्षेत्र में आती हैं.

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