कांग्रेस की नई कार्यकारिणी: कांग्रेस की इस कार्यकारणी ने साफ कर दिया कि डोटासरा ने प्रताप मुद्दे पर राजपूतों से बदला लिया है

कांग्रेस की नई कार्यकारिणी - कांग्रेस की इस कार्यकारणी ने साफ कर दिया कि डोटासरा ने प्रताप मुद्दे पर राजपूतों से बदला लिया है
| Updated on: 07-Jan-2021 09:46 PM IST
जयपुर | महाराणा प्रताप की महिमा के बजाय अकबर को प्रतिष्ठित करने वाले पाठ्यक्रम के कारण एकबारगी राजपूतों के निशाने पर रहे शिक्षा मंत्री और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा ने अपनी कार्यकारणी में इस कौम को अल्पसंख्यक कर दिया है। डोटासरा की टीम भले ही इस मुद्दे पर राजी हो रही है कि उसने जातिगत समीकरण साध लिए हैं, लेकिन इस और गौर भी नहीं किया कि वह राजपूतों को सिर्फ अपने अहं के कारण अपना विरोधी बना बैठे हैं। नई घोषित हुई कार्यकारणी यह साफ करती है कि कांग्रेस की ओर लौटना राजपूतों की भूल रही है। सत्ता में आने के बाद उनके कोटे से मंत्री बनाए गए प्रतापसिंह खाचरियावास इन दिनों एनर्जीलैस बैटरी की तरह हैं और भंवरसिंह भाटी ​आज भी सिर्फ कोलायत के अलावा कहीं भी प्रासांगिक नहीं है।

आपको याद रहे कि यह वही कौम है, जो बीजेपी की कट्टर समर्थक रही है। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में "मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुन्धरा तेरी खैर नहीं" का नारा देकर कांग्रेस के सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त करने में सहायक बनी थी। राजपूतों ने ही "कमल का फूल, हमारी भूल" नाम से कैम्पेन भी बीजेपी के खिलाफ चलाया। बीते लम्बे समय से राजपूत हमेशा बीजेपी के समर्थक रहे हैं, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस को खुले तौर पर समर्थन दिया था। यहां तक कि राजपूतों के राजनीतिक प्रशिक्षण केन्द्र माने जाने वाले प्रताप फाउण्डेशन ने भी खुले तौर पर बीजेपी का समर्थन नहीं किया था। सचिन पायलट की जगह गहलोत मुख्यमंत्री बने और उनके सिपहसालार के रूप में शिक्षा मंत्री डोटासरा प्रदेशाध्यक्ष। डोटासरा ने न केवल राजपूत बल्कि राष्ट्रवादियों से सीधा वैर लेते हुए महाराणा प्रताप से जुड़े पाठ्यक्रमों में हुए आपत्तिजनक बदलावों को स्वीकार किया। हालांकि हिन्दू संगठनों ने महाराणा प्रताप के मुद्दे पर डोटासरा को निशाने पर लिया और यह मुद्दा काफी चर्चा का विषय भी बना। परन्तु इसका बदला डोटासरा ने लेते हुए राजपूत समाज से अपनी कार्यकारणी में मजबूत नेताओं को शून्य प्रतिनिधित्व दिया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि डोटासरा वही मंत्री है, जिनके राज में उनके विभाग ने महाराणा प्रताप की जगह न केवल अकबर को महान रूप में प्रतिष्ठित किया बल्कि तैमूर और चंगेज खां को भी महान बता दिया है।

कांग्रेस को सीधा नुकसान, गहलोत के लिए संकट

पिछले चुनाव में कांग्रेस ने राजपूत समाज की बीजेपी से नाराजगी का सीधा फायदा उठाया था। वैसे तो पूरे राजस्थान में राजपूत विधायक अन्य जातियों पर जीत के लिए निर्भर रहते हैं, लेकिन उनकी सामंजस्यता और अन्य जातियों के प्रति सकारात्मक भाव के कारण वे हर बार अच्छी संख्या में जीतकर भी आते हैं। राजपूतों ने वसुन्धरा राजे से नाराजगी जताते हुए खुले तौर पर कहा था कि मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुन्धरा तेरी खैर नहीं। यह विधानसभा और लोकसभा के चुनाव परिणाम साबित भी करते हैं कि राजपूत खुले दिल से विधानसभा में कैसा परिणाम कांग्रेस को अनायास ही दे गए। अब कांग्रेस के पास मौका था ग्रामीण इलाकों में जातीय पकड़ रखने वाली इस कौम को अपने पक्ष में करने का। यह काम सचिन पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए बखूबी किया और अपनी टीम में इस कौम के लोगों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व भी दिया था। जैसे प्रदेश उपाध्यक्ष के तौर पर पूर्व सांसद गोपालसिंह ईडवा, प्रदेश सचिव के तौर पर बालेन्दु सिंह शेखावत, खेतसिंह मेड़तिया, गुमानसिंह देवड़ा सिरोही व करणसिंह समेत लोगों को मौका दिया था। इनमें से बालेन्दुसिंह के पिता दीपेन्द्रसिंह शेखावत काफी प्रभावी जननेता है। यही नहीं खेतसिंह, गुमानसिंह देवड़ा मारवाड़—गोडवाड़ में खासा जनसमर्थन रखते हैं। गोपालसिंह शेखावत का प्रभाव शेखावाटी ही नहीं बल्कि मारवाड़ और मेवाड़ में है। इन लोगों ने अपनी जाति के वोटरों को कांग्रेस से जोड़ा भी। परन्तु इन्हीं ​लोगों को अब डोटासरा कांग्रेस ने ठेंगा दिखा दिया है। ऐसे में कांग्रेस की जातीय पकड़ और मजबूती के समीकरणों पर गहरे सवाल उठे हैं, जिनका जवाब कम से कम टीम डोटासरा के पास तो नहीं है। राजपूत समाज के महेन्द्रसिंह दौलतपुरा बताते हैं कि डोटासरा ने राजपूत समाज के साथ सीधे तौर पर महाराणा प्रताप के मुद्दे पर उनके विरोध का बदला लिया है। ​लेकिन वे किसी कौम का नुकसान नहीं कर सकते। वह अपनी खुन्नस निकाल सकते हैं, जो उन्होंने अशोक गहलोत के लिए मुश्किल पैदा करके ही निकाली है। कांग्रेस की इस उपेक्षा से राजपूतों का कोई नुकसान नहीं हुआ है। नुकसान कांग्रेस का हुआ है और संकट अशोक गहलोत के लिए ही हुआ है। यह संकट क्या है, वह आने वाले समय में पता चल जाएगा। कुल मिलाकर साफ है कि राजपूत अब कांग्रेस की ओर जिस उम्मीद भरी नजरों से देख रहा था और ईडब्ल्यूएस आरक्षण के बाद वह थोड़ा इस पार्टी के लिए जो प्रभावी हुआ था उस प्रभाव को डोटासरा ने अपने एक वार से खत्म कर दिया है।

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