कोरोना वायरस: कालिख के कण एकमात्र वायु प्रदूषक हैं जो कोरोना वायरस को ढोते हैं: अध्ययन

कोरोना वायरस - कालिख के कण एकमात्र वायु प्रदूषक हैं जो कोरोना वायरस को ढोते हैं: अध्ययन
| Updated on: 19-Jul-2021 09:25 AM IST
नई दिल्ली: देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान संक्रमण के तेजी से बढ़ने के तमाम कारणों को लेकर चर्चा हुई। कई रिपोर्टस में बताया गया कि जिन शहरों में प्रदूषण का स्तर अधिक होता है, वहां पर कोरोना संक्रमण बढ़ने का खतरा भी ज्यादा हो सकता है। इसी संबंध में हाल ही में एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने प्रदूषण और कोरोना के संबंधों को स्पष्ट किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बायोमास जलने के दौरान उत्सर्जित ब्लैक कार्बन के साथ कोरोना वायरस के संचारित होने का खतरा अधिक हो सकता है, हालांकि यह वायरस सभी प्रकार के औसत कणों (पीएम) 2.5 के साथ संचरित नहीं होता है।

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि ब्लैक कार्बन कण, अपना आकार बढ़ाने के लिए अन्य यौगिकों के साथ एकत्रित होकर प्रतिक्रिया करते हैं। इससे कोरोना वायरस को अस्थायी आधार प्राप्त हो जाता है, यही कारण है कि फसलों के जलने के मौसम में कोविड-19 का संक्रमण तेजी से बढ़ने लगता है। शोधकर्ताओं ने ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को लेकर चिंता जताते हुए इसे अन्य स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों के साथ कोरोना के प्रसार के लिए भी खतरनाक बताया है। 

कोरोना के प्रसार के लिए ब्लैक कार्बन उत्सर्जन खतरनाक

पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटिओरॉलॉजी द्वारा किए गए इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कोरोना के प्रसार के लिए ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को ज्यादा खतरनाक बताया है। इस शोध के लिए पिछले साल सितंबर से दिसंबर तक दिल्ली से एकत्र किए गए आंकड़ों के साथ पीएम 2.5 और ब्लैक कार्बन के संबंधों के बीच अध्ययन किया गया। इस अध्ययन को जर्नल एल्सवायर में प्रकाशित किया गया है।

पीएम2.5 एक प्रकार के सूक्ष्मकण होते हैं जो शरीर में गहराई तक प्रवेश करके फेफड़ों और श्वसन पथ में सूजन का कारण बन सकते हैं। इसे प्रतिरक्षा प्रणाली और श्वसन संबंधी समस्याओं के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है। पीएम2.5, ब्लैक कार्बन से मिलकर बना होता है, जिसे अक्सर कालिख या पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन के नाम से जाना जाता है।

पीएम2.5 और कोरोना के प्रसार के बीच संबंध

इससे पहले इटली में किए गए एक अध्ययन में पीएम2.5 के बढ़ते स्तर के साथ कोरोनोवायरस के मामलों को जोड़कर बताया गया था। हालांकि इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इसके एक नए पक्ष के बारे में जानकारी दी है। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी फोरकास्टिंग एंड रिसर्च में वरिष्ठ वैज्ञानिक बेग कहते हैं, हालिया अध्ययन का तर्क है कि सभी प्रकार के पीएम2.5 कण, वायरस का संचारण नहीं करते हैं। इसके लिए मुख्यरूप से बायोमास जलने के दौरान उत्सर्जित ब्लैक कार्बन को मुख्य कारक के रूप में देखा जाना चाहिए।

...इसलिए दिल्ली में तेजी से बढ़े संक्रमण के मामले

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने राजधानी दिल्ली में अचानक से बढ़े कोरोना का मामलों का जिक्र करते हुए बताया कि पिछले साल एक समय दिल्ली की स्थिति बिल्कुल सामान्य हो गई थी। हालांकि जैसे ही पड़ोस के राज्यों में फसलों के अवशेष जलने शुरू हुए, यहां अचानक से मामले बढ़ने लगे। अध्ययन के दौरान देखने को मिला कि सर्दियों की शुरुआत में जैसे ही फसलों के अवशेष जलने शुरू होते हैं, कोरोना के मामले भी तेजी से बढ़ने लगते हैं और फसल जल कर खत्म होने तक संक्रमण काफी गंभीरता से फैल चुका होता है। सभी सरकारों को संक्रमण को काबू करने के लिए इस दिशा में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

कई राज्यों में तेजी से संक्रमण बढ़ने का हो सकता है खतरा

इससे पहले किए गए एक अन्य अध्ययन में प्रोफेसर बेग और उनके टीम ने बताया था कि दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में रहने वाले लोगों में कोरोना संक्रमण का खतरा अधिक होता है, क्योंकि यहां के लोग पीएम 2.5 की उच्च सांद्रता के संपर्क में लंबे समय तक रहते हैं। वहीं इस अध्ययन में कहा गया है कि फसलों के जलने से उत्सर्जित होने वाले ब्लैक कार्बन के कारण कोरोना का संचरण अधिक तेजी से होता है। ऐसे में जिन राज्यों में फसलों के अवशेष ज्यादा जलाए जाते हैं, वहीं पर कोरोना संक्रमण की रफ्तार अधिक हो सकती है।

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