दिल्ली: एलजी ने 26 जनवरी केस में दिल्ली सरकार के चुने वकीलों को किया खारिज, सीएम ने दी प्रतिक्रिया

दिल्ली - एलजी ने 26 जनवरी केस में दिल्ली सरकार के चुने वकीलों को किया खारिज, सीएम ने दी प्रतिक्रिया
| Updated on: 25-Jul-2021 12:48 PM IST
दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने 24 जुलाई को ट्वीट करते हुए कहा कि उपराज्यपाल अनिल बैजल (Anil Baijal) का किसान आंदोलन से संबंधित केसों के लिए दिल्ली सरकार द्वारा चुने गए वकीलों के पैनल को खारिज करने का फैसला" दिल्ली वालों का अपमान है".

सीएम अरविंद केजरीवाल ने लिखा "कैबिनेट फैसलों को इस तरह पलटना दिल्ली वालों का अपमान है. दिल्ली के लोगों ने ऐतिहासिक बहुमत से "आप" सरकार बनाई थी और भाजपा को हराया. भाजपा देश चलाये, "आप" को दिल्ली चलाने दे. आए दिन हर काम में इस तरह की दखल दिल्ली के लोगों का अपमान है. भाजपा जनतंत्र का सम्मान करें".

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार द्वारा चुने गए वकीलों के लिस्ट को खारिज करते हुए उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली पुलिस द्वारा चुनी गई एक टीम को मंजूरी दे दी है, जो केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार को रिपोर्ट करती है.

"संविधान ने वकीलों को नियुक्त करने का अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार को दिया है.. इसमें केंद्र सरकार की क्या दिलचस्पी है ,वो किसानों के खिलाफ ऐसा क्या करना चाहते हैं"

मनीष सिसोदिया

मामला बहुत जरूरी, इसलिए अपनी शक्तियों का प्रयोग किया - उपराज्यपाल

19 जुलाई को केजरीवाल कैबिनेट ने यह फैसला लिया था कि दिल्ली सरकार द्वारा चुने गए वकील ही 26 जनवरी को हुई हिंसा तथा अराजकता को लेकर किसानों के खिलाफ दर्ज मामले में दिल्ली पुलिस की तरफ से सरकारी वकील होंगे.

लेकिन उपराज्यपाल ने दिल्ली कैबिनेट के इस फैसले को खारिज करते हुए दिल्ली पुलिस की तरफ से चुने हुए वकीलों के पैनल को मंजूरी दे दी है. दिल्ली सरकार को लिखे एक लेटर में उपराज्यपाल अनिल बैजल ने कहा कि मामला राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेजा गया था, लेकिन चूंकि यह बहुत जरूरी मामला है इसलिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उन्होंने दिल्ली पुलिस द्वारा नामित 11 वकीलों को सरकारी वकील के रूप में नियुक्त कर दिया है.

इस पर आपत्ति जताते हुए उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि उपराज्यपाल को यह अधिकार है कि अगर दिल्ली सरकार के फैसले से वो सहमत नहीं हैं तो उसे केंद्र को भेजें, लेकिन यह केवल "असाधारण परिस्थितियों" पर लागू होता है ना कि "हर दूसरे मामले" पर.

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