Dharmendra Death: बॉलीवुड के 'ही-मैन' धर्मेंद्र की जीवनी, एक अमर सफर
Dharmendra Death - बॉलीवुड के 'ही-मैन' धर्मेंद्र की जीवनी, एक अमर सफर
बॉलीवुड के 'ही-मैन' और 'गढ़वा का शेर' के नाम से मशहूर दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र का आज 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। मुंबई के प्रतिष्ठित ब्रेच कैंडी अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। 2025 में उनकी मृत्यु की कई अफवाहें पहले भी उड़ी थीं, लेकिन आज यह दुखद खबर एक सच्चाई बन गई, जिसने पूरे बॉलीवुड और उनके करोड़ों प्रशंसकों को गहरे सदमे में डाल दिया है और धर्मेंद्र ने भारतीय सिनेमा को लगभग 65 वर्षों तक अपनी शानदार अदाकारी से समृद्ध किया, जिसमें 300 से अधिक फिल्में शामिल हैं। उनके निधन से एक युग का अंत हो गया है, और उनकी विरासत हमेशा भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर रहेगी।
प्रारंभिक जीवन: पंजाब के गांव से सितारों की दुनिया तक
धर्मेंद्र का जन्म 8 दिसंबर 1935 को पंजाब के लुधियाना जिले के नसराली गांव में एक साधारण सिख जाट परिवार में हुआ था और उनके पिता, कंवल कृष्ण, एक स्कूल शिक्षक थे, जिन्होंने उन्हें शिक्षा के महत्व से अवगत कराया, जबकि उनकी मां, सतवंत कौर, एक समर्पित गृहिणी थीं। बचपन में ही उनका परिवार फगवाड़ा चला गया, जहाँ धर्मेंद्र ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल से प्राप्त की। युवावस्था से ही वे साहित्य और कविता के प्रति गहरा लगाव रखते थे, जो उनके संवेदनशील व्यक्तित्व की नींव बना। 1950 के दशक में, उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई का रुख किया और फिल्मों में प्रवेश पाने के लिए अथक संघर्ष किया। उनकी प्रतिभा को एक प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल करने के बाद पहचान मिली, जिसने उन्हें 1960 में अपनी पहली फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' में काम करने का अवसर प्रदान किया। यह उनके शानदार फिल्मी सफर की शुरुआत थी।
धर्मेंद्र ने 1960 में 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' से बॉलीवुड में। कदम रखा, लेकिन उन्हें असली पहचान 1961 की फिल्म 'शोला और शबनम' से मिली। 1960 के दशक में, वे एक रोमांटिक हीरो के रूप में उभरे, जिनकी मासूमियत और आकर्षक व्यक्तित्व ने दर्शकों का दिल जीत लिया और इस दशक की उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्मों में 'अनपढ़' (1962), 'बंदिनी' (1963), 'आये मिलन की बेला' (1964) और 'फूल और पत्थर' (1966) शामिल हैं। 'फूल और पत्थर' ने उन्हें एक बड़े स्टार के रूप में स्थापित किया और उन्हें अपना पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड नामांकन भी दिलाया, जो उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।एक्शन हीरो के रूप में पहचान और 'शोले' का जादू
1970 के दशक में, धर्मेंद्र ने अपनी छवि को एक रोमांटिक हीरो से बदलकर एक दमदार एक्शन हीरो के रूप में स्थापित किया। उनकी शारीरिक बनावट और एक्शन दृश्यों में सहजता ने उन्हें 'ही-मैन' का खिताब दिलाया और इस दशक की उनकी सबसे आइकॉनिक फिल्म 'शोले' (1975) थी, जहाँ उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ वीरू का यादगार किरदार निभाया। यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई और 19 वर्षों तक बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड बनाए रखा। 'शोले' ने उन्हें न केवल अपार लोकप्रियता दिलाई, बल्कि उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सितारों में से एक बना दिया। इस दशक की उनकी अन्य सफल फिल्मों में 'सत्यकाम' (1969), 'रेशमा और शेरा' (1971), 'चुपके चुपके' (1975), 'धर्मवीर' (1977) और 'कुर्बानी' (1980) शामिल हैं, जिन्होंने उनकी बहुमुखी प्रतिभा को प्रदर्शित किया और उन्होंने 300 से अधिक फिल्मों में काम किया, जिसमें पंजाबी फिल्में जैसे 'दो शेर' (1974) भी शामिल हैं, जो उनकी जड़ों से उनके जुड़ाव को दर्शाती हैं। बाद के वर्षों में, वे परिवार-केंद्रित फिल्मों जैसे 'अपने' (2007), 'यमला पगला दीवाना' (2011) और हाल ही में 'टेरी बातों में ऐसी उलझा जिया' (2024) में भी नजर आए, जहाँ उन्होंने अपनी उम्र के अनुरूप भूमिकाओं में भी दर्शकों का मनोरंजन किया। उनकी आखिरी फिल्म 'इक्कीस' (2025) क्रिसमस पर रिलीज होने वाली है, जो उनके निधन के बाद उनकी अंतिम सिनेमाई प्रस्तुति होगी।पुरस्कार और सम्मान: सिनेमा का सितारा
धर्मेंद्र को भारतीय सिनेमा में उनके अतुलनीय योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। 1997 में, उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया, जो उनके लंबे और शानदार करियर की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। 2012 में, भारत सरकार ने उन्हें देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया, जो सिनेमा के प्रति उनकी आजीवन सेवा का प्रमाण था। उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला, जिसने उनकी कलात्मक उत्कृष्टता को मान्यता दी। वे हिंदी सिनेमा के सबसे सफल और प्रभावशाली अभिनेताओं में से एक माने जाते हैं, जिनकी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों का कारोबार किया और दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई।व्यक्तिगत जीवन: प्रेम, विवाह और परिवार
धर्मेंद्र का निजी जीवन भी उनके फिल्मी करियर जितना ही दिलचस्प और सुर्खियों में रहा। 1954 में, उन्होंने प्रकाश कौर से अपनी पहली शादी की, जिनसे उनके चार बच्चे हुए: सनी। देओल और बॉबी देओल, जो दोनों ही सफल अभिनेता बने, और दो बेटियां, विजेता और अमृता। 'शोले' के सेट पर उनकी मुलाकात हेमा मालिनी से हुई और दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ा। हिंदू मैरिज एक्ट के कारण कुछ विवादों के बावजूद, उन्होंने 1980 में हेमा मालिनी से दूसरी शादी कर ली। इस शादी से उनकी दो बेटियां हुईं, ईशा देओल और आहना देओल, जो दोनों ही अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय हैं। कुल मिलाकर, धर्मेंद्र छह बच्चों और कई पोते-पोतियों के दादा थे और उनके भतीजे अभय देओल भी बॉलीवुड में एक स्थापित अभिनेता हैं, जो उनके परिवार की सिनेमाई विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।राजनीतिक सफर: सांसद से भाजपा नेता
धर्मेंद्र ने अपने जीवन में राजनीति के क्षेत्र में भी कदम रखा और 2004 में, वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर राजस्थान की बीकानेर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। संसद सदस्य के रूप में, उन्होंने सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया और अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए काम किया। उनका राजनीतिक सफर भी उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का एक और पहलू था, जहाँ उन्होंने सार्वजनिक सेवा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई।विरासत: ही-मैन की अमर छवि
धर्मेंद्र की मृत्यु से बॉलीवुड ने वास्तव में एक युग का अंत देखा है। वे न केवल एक्शन के प्रतीक थे, बल्कि उनकी सादगी, ईमानदारी और परिवार-प्रेम ने उन्हें जनमानस का चहेता बनाया। उनकी ऑन-स्क्रीन उपस्थिति और ऑफ-स्क्रीन व्यक्तित्व दोनों ही उनके प्रशंसकों के लिए प्रेरणास्रोत रहे। उनके निधन पर उनके बेटों सनी देओल और बॉबी देओल, और बेटी ईशा देओल ने गहरा। शोक व्यक्त किया है, जो उनके पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका अंतिम संस्कार मुंबई में ही किया जाएगा, जहाँ उनके परिवार, दोस्त और प्रशंसक उन्हें अंतिम विदाई देंगे। भारतीय सिनेमा हमेशा उनके 'यारा ओ यारा' जैसे यादगार डायलॉग्स और उनकी बेमिसाल अदाकारी को याद रखेगा, जो पीढ़ियों तक दर्शकों को प्रेरित करती रहेगी। धर्मेंद्र भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच न हों,। लेकिन उनकी फिल्में और उनका 'ही-मैन' का व्यक्तित्व हमेशा जीवित रहेगा।