US Presidential election: डोनाल्ड ट्रंप इन पांच वजहों से दोबारा बन सकते हैं राष्ट्रपति

US Presidential election - डोनाल्ड ट्रंप इन पांच वजहों से दोबारा बन सकते हैं राष्ट्रपति
| Updated on: 14-Sep-2020 10:34 PM IST
US Presidential election: चार साल में एक बार अमेरिका में सितंबर महीने की पहले सोमवार को लेबर डे मनाया जाता है। व्हाइट हाउस के लिए नया राष्ट्रपति चुनने की दौड़, यानी चुनावी मुहिम का ये आखिरी पड़ाव होता है। एक बार फिर इस दौड़ में शामिल राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कुछ सप्ताह पहले के मुक़ाबले अब मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं।

अगस्त के महीने की शुरुआत में डेमोक्रेटिक नेता जो बाइडन चुनावी रेस में आगे बढ़ते दिख रहे थे, लेकिन बीते 10 दिनों से इस ट्रेंड में कुछ कमी आई है। फाइवथर्टीएट वेबसाइट के अनुसार बाइडन की बढ़त में दो प्वाइंट की गिरावट दर्ज की गई है।

इधर इस बीच राष्ट्रपति ट्रंप, जो जुलाई के आखिर में 40।2 फीसदी बढ़त लिए हुए थे अब थोड़ा और आगे यानी 43।2 फीसदी पर हैं। फिलहाल ट्रंप के पक्ष में ट्रेंड होने की बात कहना जल्दबाजी होगा, लेकिन आंकड़ों की मानें, तो ऐसा लग रहा है कि हाल में ट्रंप ने जो कदम उठाए हैं, लोग उन्हें पसंद कर रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ऐसी यहां वजहें हैं, जो इस बात की ओर इशारा करती हैं कि ट्रंप एक बार फिर राष्ट्रपति बन सकते हैं।

ट्रंप समर्थकों में उत्साह

अमेरिका में मतदान अनिवार्य नहीं है और इसी कारण यहां स्थिति बदल सकती है। ऐसे में नेताओं का काम यहां संभावित वोटरों को लुभाने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उन्हें घर से निकल कर वोट करने के लिए प्रेरित करना भी होता है।

अमेरिका में चुनाव मंगलवार को होते हैं यानी काम के दिन पर, ऐसे में वोटरों में धैर्य होना बेहद जरूरी है। बीते सालों के मुक़ाबले साल 2020 की बात अलग है, क्योंकि बात केवल मतदान करने के लिए खुद को मनाने की नहीं, बल्कि कोरोना संक्रमण का खतरा जानते हुए जोखिम लेने की है।

ऐसे में अपना अगला प्रतिनिधि चुनने के अधिकार का इस्तेमाल करना कोई छोटी-मोटी बात नहीं। और इसी कारण बार-बार वोटरों से सवाल किया जाता है कि क्या वो चुनाव के लिए उत्साहित हैं।

यही वो बात है, जहां ट्रंप समर्थक बाइडन समर्थकों से एक कदम आगे हैं। इसी साल जुलाई में यूगॉव इंस्टीट्यूट ने वोटरों से सवाल किया कि अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट करने के लिए वो कितना उत्साहित हैं। इस मामले में जहां बाइडन के 40 फीसदी समर्थकों ने उत्साह दिखाया था, वहीं ट्रंप के 68 फीसदी समर्थकों ने कहा कि वो उन्हें वोट करने के लिए उत्साहित हैं।

इंस्टीट्यूट ने वोटरों से ये भी पूछा कि नवंबर में वोट करने जाने के लिए कौन तैयार हैं। इसके उत्तर में 76 फीसदी ट्रंप समर्थकों ने कहा कि वे जरूर वोट करेंगे जबकि 11 फीसदी वोटरों ने कहा कि वो निश्चित नहीं हैं। बाइडन के मामले में ये अनुपात 69-16 था।

सीएनएन ने अगस्त के मध्य तक एक रजिस्टर्ड वोटरों के साथ किया गया एक पोल जारी किया था, जिसके अनुसार कुछ राज्यों में ट्रंप और बाइडन के बीच फर्क मात्र एक फीसदी का रह गया था। जहां डेमोक्रेट पार्टी को 49 फीसदी वोटर पसंद कर रहे थे, वहीं रिपब्लिकन पार्टी 48 फीसदी लोगों की पसंद थी।

कोरोना महामारी के कारण रैली में शिरकत न कर पाने के बावजूद हाल में दिनों में ट्रंप समर्थकों ने फ्लोरिडा, कैलिफोर्निया, इलिनॉय, न्यू जर्सी और टेक्सस में झील पर नावों की परेड और गाड़ियों के कारवाँ निकाले हैं।

ट्रंप खुद कहते हैं 'बाहरी व्यक्ति'

अलाबामा में डाफ्ने के रहने वाले रॉबर्ट लीड्स कहते हैं, "साल 2016 से पहले न तो मैंने कभी वोट किया था और न ही राजनीति में मेरी दिलचस्पी थी। लेकिन ट्रंप के आने के बार मुझे लगा कि वो अलग हैं। मैंने अपनी जिंदगी में पहली बार वोट किया और उनका समर्थन किया। मुझे मौक़ा मिलेगा तो मैं एक बार फिर उन्हें वोट करूंगा।"

साल 2016 में इसी चुनाव क्षेत्र से ट्रंप ने 62 फीसदी वोट हासिल किए थे। रॉबर्ट लीड्स कार्पेन्टर का काम करते हैं और टैक्सी चलाते हैं। वो उन लोगों में से एक हैं, जो ट्रंप के राजनीति में क़दम रखने के बाद इसमें दिलचस्पी लेने लगे हैं। उन्हें ट्रंप का पारंपरिक 'राजनीतिक सर्कल से बाहर' का होना आकर्षित करता है।

साल 2016 के लिए ये तथ्य महत्वपूर्ण था। उस समय ट्रंप अपने प्रतिद्वंद्वी रिपब्लिकन नेताओं पर काफी आक्रामक थे। वो चार साल से देश के राष्ट्रपति हैं, लेकिन अब भी वो खुद को बाहरी व्यक्ति कहते हैं। जहां कुछ लोग मानते हैं कि ट्रंप पारंपरिक राजनीतिक सर्किल भेद पाने में सक्षम रहे, वहीं कई लोग मानतें हैं कि वो बहुत कुछ नहीं कर सके हैं।

लीड्स कहते हैं, "वो एक बिजनेसमैन हैं, वो जानते हैं कि क्या करना हैं। मैं जानता हूं कि हिलेरी के साथ मेरी जिंदगी बदतर हो जाती।" 2019 में फ्लोरिडा के ओरलैंडो से अपनी चुनावी मुहिम की शुरुआत करते समय ट्रंप ने कहा था- उनकी सरकार एक 'स्थायी राजनीतिक वर्ग' के घेरे में है।

उन्होंने कहा था, "राष्ट्रवाद की हमारी मुहिम पर पहले दिन से ही हमले किए जा रहे हैं।" 2020 में होने वाले रिपब्लिकन पार्टी के सम्मेलन में कई बड़े नाम नहीं थे, जबकि ट्रंप के परिवार से सदस्यों और उनके दोस्तों के नाम थे। इससे ये संदंश देने की कोशिश की गई कि ट्रंप अभी भी बाहरी व्यक्ति ही हैं।

टी पार्टी के संस्थापक और ट्रंप के समर्थक माइकल जॉन्स कहते हैं, "2016 की प्राइमरी में रिपब्लिकन पार्टी के ढाँचे से कई समस्याएँ थी। उन्होंने अवैध प्रवासन जैसे मुद्दों पर काम भी किया लेकिन पार्टी ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया। ट्रंप को छोड़ कर हमारे दौर में कोई रिपब्लिकन नेता है कहां? वो काफी ज्यादा लोकप्रिय हैं।"

जहां रिपब्लिकन पार्टी का सम्मेलन राष्ट्रपति ट्रंप के इर्दगिर्द था, वहीं डेमोक्रेटिक पार्टी के सम्मेलन में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, बिल क्लिंटन और जिमी कार्टर जैसे दिग्गज शामिल थे। एक तरफ जहां ट्रंप खुद को बाहरी के रूप में पेश करते हैं, दूसरी तरफ अपनी मुहिम में वो बाइडन को वोट न करने की अपील करते हैं।

वो कहते हैं कि बाइडन बीते 40 सालों से नेता के तौर पर काम करते रहे हैं, छह बार सीनेट में चुने गए हैं और उप-राष्ट्रपति के तौर पर आठ साल तक काम किया है। ट्रंप का कहना है कि इतना लंबा समय राजनीति में बिताने के बाद भी बाइडन किसी तरह की राजनीतिक विरासत नहीं बना पाए हैं।

इंटरनेट का चुनाव में इस्तेमाल

न्यूयॉर्क टाइम्स में तकनीक के विषय पर लिखने वाले केविन रॉस चेतावनी देते हैं, "सुनो उदारवादियों, अगर आपको लगता है कि ट्रंप दोबारा चुने नहीं जाएँगे, तो आप फेसबुक पर अधिक समय बिता कर देखें।"

साल 2016 से रॉस सोशल मीडिया पर पार्टी की रैलियों को ट्रैक कर रहे हैं। वो कहते हैं कि फेसबुक पर रोजाना कम से कम 10 पॉपुलर पोस्ट ऐसी होती हैं, जो रिपब्लिक पार्टी, कंजर्वेटिव पार्टी और ट्रंप समर्थकों के बारे में होती है।

सोशल मीडिया में ट्रंप की दिलचस्पी जगजाहिर है। चार साल पहले उनके लिए स्टीव बैनन उनकी डिजिटल रणनीति के संयोजक थे। वो ब्रेटबार्ट वेबसाइट के पूर्व निदेशक थे और कैम्ब्रिज एनालिटिका कंसल्टिंग से भी जुड़े थे। ये कंपनी सोशल मीडिया यूजर्स के डेटा का इस्तेमाल राजनीतिक प्रोपेगैंडा के लिए करने के लिए चर्चा में आई थी।

साल 2018 में फेसबुक ने घोषणा की कि इस कंपनी ने 8 करोड़ यूजर्स के डेटा इकट्ठा किया है, जिनमें से 7 करोड़ अमरीकी हैं। चर्चा में आने के बाद ये कंपनी दिवालिया हो गई। लेकिन सोशल मीडिया का प्रसार अब इतना इतना बढ़ चुका है कि किसी तरह की जानकारी लोगों तक पहुँचाना अब मुश्किल नहीं रह गया है।

अपने लेख में रॉस कहते हैं कि हो सकता है कि फेसबुक पर वो "साइलेंट मेजोरिटी" हो, जो ट्रंप को नवंबर में जीत के दरवाजे तक ले जाए।

रही बात ट्विटर की, तो ये सीधे वोटर से बात करने का अच्छा तरीक़ा माना जाता है। यहां ट्रंप अपने खुद के अलग ही स्टाइल में मौजूद हैं, यहां वो अपने विरोधियों के बारे में बोलते हैं, मीडिया पर तंज कसते हैं और अपना राजनीतिक प्रोपैगैंडा चलाते हैं।

चुनाव के दौरान को रोज अलग-अलग मुद्दों पर यहां संदेश लिख रहे हैं। वहीं बाइडन की बात करें, तो ट्रंप के मुक़ाबले उनके फॉलोअर्स दस गुना कम हैं। वो इस प्लेटफॉर्म पर वोटरों से संपर्क बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वो केवल कुछ ही मुद्दों पर लिखते हैं।

हाल फिलहाल सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें भी चल रही हैं, जिनमें कहा गया है कि ट्रंप दुनिया को बचाने वाले नेता हैं। ये पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इस तरह के वायरल मैसेज का कितना असर वोटरों पर होगा, लेकिन इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि चुनावी रणभूमि में इंटरनेट बेहद अहम हथियार बन गया है।

अपना एजेंडा आगे बढ़ाते रहना

मेल से वोट करने से धांधली का जोखिम रहता है, राज्य हिंसा पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं। आपके समर्थकों को दो बार मतदान का हक होना चाहिए, चुनाव से पहले कोविड-19 की वैक्सीन आ जाएगी, चुनाव की तारीख पीछे कर देनी चाहिए... ट्रंप ने इस आइडिया का या तो समर्थन किया है या फिर उन्हें रिजेक्ट कर दिया है। और ये दूसरे दिन अखबारों की सुर्खियाँ बनी हैं।

इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने हाल में लिखा था कि ट्रंप ने ये साबित कर दिया है कि पब्लिक डिबेट कैसे शुरू की जाए। बीते दो सप्ताह में उन्होंने शहरी हिंसा के मुद्दे पर चर्चा छेड़ी। ट्रंप के नैरेटिव के अनुसार ब्लैक लाइव्स मैटर के विरोध प्रदर्शनों को काबू करने में डेमोक्रेट नेता नाकाम रहे।

उनका कहना है कि डेमोक्रेट पुलिस के फंड से पैसा निकालना चाहते हैं। इससे अपराध बढ़ेगा और शहरों में स्थिति बिगड़ेगी। ये कह कर ट्रंप ने अपने प्रतिद्वंदी जो बाइडन को ये कहने पर मजबूर कर दिया कि वो हिंसा की निंदा करें और कहें कि उनकी सरकार बनी तो पुलिस फंड से पैसा नहीं निकालेगी।

इस चर्चा ने आर्थिक मंदी और कोरोना महामारी से लोगों का ध्यान हटा दिया है, जिस कारण अमेरिका में दा लाख से अधिक लोगों की जान गई है। एक अफ्रीकी अमरीकी व्यक्ति को पीठ में पुलिस की गोली लगने के बाद वहां पैदा हुए तनावपूर्ण माहौल में ट्रंप ने विस्कोन्सिन में केनोशा का दौरा किया।

उन्होंने पुलिस के प्रति अपना समर्थन जताया और उन इलाक़ों का दौरा किया, जहां प्रदर्शनों के दौरान लूट हुई थी। दो दिन बाद जो बाइडन भी वहां पहुँचे और उन्होंने पीड़ित परिवार से मुलाक़ात की, जिनसे ट्रंप से मुलाक़ात नहीं की थी। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि अभी ये नहीं कहा जा सकता कि वोटरों पर ट्रंप का असर अधिक होगा या फिर बाइडन का।

जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल कम्यूनिकेशन के प्रोफेसर माइकल कॉर्नफील्ड कहते हैं, "ट्रंप न्यूज एजेंडा तो बनाते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि वो चुनावों का एजेंडा भी बना सकें। अधिकतर वोटर राजनीतिक खबरें नहीं देखते और घोषणाओं के बारे में नहीं जानते। अक्तूबर में ही पता चलेगा कि लोग उनकी घोषणाओं को कितना सुनते हैं।"

सरकारी मशीनरी पर नियंत्रण

एक और बात है, जो एक बार फिर राष्ट्रपति की दौड़ में शामिल ट्रंप के पक्ष में जाती है और वो है सरकारी मशीनरी पर पकड़। फिलहाल ट्रंप के मामले में इसका नाता कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की कोशिशों को तेज करना और महामारी के कारण मुश्किल दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था के लिए आपातकालीन मदद की व्यवस्था करना है।

राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कम समय में संवाददाता सम्मेलनों का आयोजन किया है, जिनमें उन्होंने अहम घोषणाएँ करने के साथ-साथ अपने सरकार की काबिलियत के बारे में कहा है और विपक्ष पर हमला किया है। ये सभी संवाददाता सम्मेलन टेलीविजन पर लाइव प्रसारित किए गए हैं।

केवल इतना ही नहीं, जिस दिन रिपब्लिकन पार्टी का सम्मेलन था, उस दिन उन्होंने 1500 मेहमानों के सामने क़रीब एक घंटे लंबा भाषण दिया था। ये भाषण उन्होंने व्हाइट हाउस के सामने दिया था। इससे पहले साल 1997 में उप राष्ट्रपति अल गोर ने व्हाइट हाउस के दफ्तर से फोन कर चुनाव के लिए डोनेशन मांगे थे।

साल 2020 में ट्रंप ने बताया है कि जरूरत पड़ने पर वो सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल वोटरों को ये बताने में कर सकते हैं कि उन्हें और क्यों चुना जाना चाहिए। उन्होंने अपनी स्पीच में कहा, "ये क्या इमारत है?" व्हाइट हाउस की तरफ इशारा कर उन्होंने कहा, "सच्चाई ये है कि हम यहां हैं और वो नहीं। मेरे लिए ये दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारतों में से एक है। और ये इमारत नहीं, मेरे लिए ये घर है।"

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