कोरोना वायरस: खुशखबरीः लॉकडाउन ने भर दिया ओजोन में हुआ इतिहास का सबसे बड़ा छेद

कोरोना वायरस - खुशखबरीः लॉकडाउन ने भर दिया ओजोन में हुआ इतिहास का सबसे बड़ा छेद
| Updated on: 27-Apr-2020 08:59 AM IST
कोरोना वायरस: लॉकडाउन से इंसान भले ही परेशान हो लेकिन जीव-जंतु, पेड़-पौधे और प्रकृति चैन की सांस ले रहे हैं। इस महीने यानी अप्रैल की शुरुआत में वैज्ञानिकों को उत्तरी ध्रुव यानी नॉर्थ पोल के ऊपर स्थित ओजोन लेयर में एक 10 लाख वर्ग किमी का छेद दिखा था। यह इतिहास का सबसे बड़ा छेद था। लॉकडाउन की वजह से कम हुए प्रदूषण की वजह से ये छेद भर गया है। ये एक बड़ी खुशखबरी है। 

धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ऊपर ओजोन लेयर है। इससे पहले भी लॉकडाउन ने दक्षिणी ध्रुव के ओजोन लेयर के छेद को कम किया था। अप्रैल महीने की शुरुआत में उत्तरी ध्रुव के ओजोन लेयर पर एक बड़ा छेद देखा गया था। वैज्ञानिकों का दावा था कि यह अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा छेद है। यह 10 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला था।

उत्तरी ध्रुव यानी नॉर्थ पोल यानी धरती का आर्कटिक वाला क्षेत्र। इस क्षेत्र के ऊपर एक ताकतवर पोलर वर्टेक्स बना हुआ था। जो अब खत्म हो गया है। नॉर्थ पोल के ऊपर बहुत ऊंचाई पर स्थित स्ट्रेटोस्फेयर पर बन रहे बादलों की वजह से ओजोन लेयर पतली हो रही थी। 

ओजोन लेयर के छेद को कम करने के पीछे मुख्यतः तीन सबसे बड़े कारण थे बादल, क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन्स। इन तीनों की मात्रा स्ट्रेटोस्फेयर में बढ़ गई थी। इनकी वजह से स्ट्रेटोस्फेयर में जब सूरज की अल्ट्रवायलेट किरणें टकराती हैं तो उनसे क्लोरीन और ब्रोमीन के एटम निकल रहे थे। यही एटम ओजोन लेयर को पतला कर रहे थे। जिसके उसका छेद बड़ा होता जा रहा था। इसमें प्रदूषण औऱ इजाफा करता लेकिन लॉकडाउन में वो हुआ नहीं।यानी अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन लेयर में देखने को मिलता है। लेकिन इस बार उत्तरी ध्रुव के ऊपर ओजोन लेयर में ऐसा देखने को मिल रहा है। 

आपको बता दें कि स्ट्रेटोस्फेयर की परत धरती के ऊपर 10 से लेकर 50 किलोमीटर तक होती है। इसी के बीच में रहती है ओजोन लेयर जो धरती पर मौजूद जीवन को सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है। 

बसंत ऋतु में दक्षिणी ध्रुव के ऊपर की ओजोन लेयर लगभग 70 फीसदी गायब हो जाती है। कुछ जगहों पर तो लेयर बचती ही नहीं। लेकिन उत्तरी ध्रुव पर ऐसा नहीं होता। यहां लेयर पतली होती आई है लेकिन ऐसा पहली बार हुआ था कि इतना बड़ा छेद देखने को मिला। 

ओजोन लेयर का अध्ययन करने वाले कॉपनिकस एटमॉस्फेयर मॉनिटरिंग सर्विस के निदेशक विनसेंट हेनरी पिउच ने कहा कि यह कम तापमान और सूर्य की किरणों के टकराव के बाद हुई रासायनिक प्रक्रिया का नतीजा है। 

विनसेंट हेनरी ने कहा कि हमें कोशिश करनी चाहिए कि प्रदूषण कम करें। लेकिन इस बार ओजोन में जो छेद हुआ है वो पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का विषय है। हमें स्ट्रैटोस्फेयर में बढ़ रहे क्लोरीन और ब्रोमीन के स्तर को कम करना होगा। आखिरकार क्लोरीन और ब्रोमीन का स्तर कम हुआ और ओजोन लेयर का छेद भर गया। 

विनसेंट ने उम्मीद जताई है कि ये ओजोन लेयर में बना यह बड़ा छेद जल्द ही भरने लगेगा। ये मौसम के बदलाव के साथ ही संभव होगा। इस समय हमें 1987 में हुए मॉन्ट्रियल समझौते को अमल में लाना चाहिए। सबसे पहले चीन के उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को रोकना होगा। 

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