Global Economy Recession: अगले साल दुनिया में छाएगी 'महामंदी', गवाही दे रहे हैं ये आंकड़े!

Global Economy Recession - अगले साल दुनिया में छाएगी 'महामंदी', गवाही दे रहे हैं ये आंकड़े!
| Updated on: 24-Sep-2023 09:10 PM IST
Global Economy Recession: मौजूदा वक्त में दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं नरमी के दौर से गुजर रही हैं. महंगाई को कंट्रोल करने के सभी कदम विफल होते दिख रहे हैं. कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा जारी है. खाद्य वस्तुएं भी लगातार महंगी और आम आदमी पहुंच से दूर हो रही हैं. हाल में भारत के पड़ोसी मुल्क श्रीलंका और पाकिस्तान के बदतर हालात किसी से छिपे नहीं है. ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि अगले साल दुनिया की सभी अर्थव्यव्यवस्थाओं में भारी नरमी देखने को मिलेगी, जो ‘महामंदी’ की तरह हो सकती है.

अमेरिका में फेडरल रिजर्व से लेकर ब्रिटेन के बैंक ऑफ इंग्लैंड तक और भारत में भारतीय रिजर्व बैंक, सभी ने महंगाई कंट्रोल करने के लिए बीते साल लगातार ब्याज दरों को बढ़ाया. इससे आंकड़ों में महंगाई नरम होती दिखी, लेकिन जमीनी हकीकत पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. उल्टा इससे बाजार में पूंजी की लागत बढ़ी है. हालांकि पश्चिमी देशों में महंगाई जहां अपने चरम पर है और हालात में बहुत सुधार नहीं है, वहीं भारत में स्थिति थोड़ी बेहतर है.

इस बीच फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ इंग्लैंड दोनों ने ब्याज दरों में कमी तो नहीं की है, लेकिन आगे इन्हें बढ़ाने की संभावना बरकरार रखी है. वहीं बैंक ऑफ जापान ने निकट अवधि में ब्याज दरों को बढ़ाए जाने की अटकलों को कम कर दिया है, क्योंकि जापान का केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए बेहद आसान और प्रोत्साहन वाले कदम उठाने पर काम करना जारी रखेगा. फिर भी ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट ग्लोबल इकोनॉमी के लेटेस्ट ट्रेंडस को दिखाती है, जो वर्ल्ड इकोनॉमी में अगले साल भारी नरमी के संकेतों पर ध्यान खींचती है.

अलग-अलग अर्थव्यवस्थाओं में दिखाई देते नरमी के संकेत

दुनिया की कुछ बड़ी इकोनॉमी में नरमी के संकेत इस तरह से दिख रहे हैं. एक नजर डालकर समझने की कोशिश करते है…

अमेरिका: फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने हाल में साफ कहा कि केंद्रीय बैंक अब ब्याज दरों को और नहीं बढ़ाएगा. हालांकि बैंक के अन्य अधिकारियों ने साफ कर दिया कि देश में लोन यानी पूंजी की लागत लंबे समय तक ऊंची बनी रहेगी. ऐसे में कंपनियां स्टाफ में कटौती और लागत घटाने के अन्य विकल्पों पर विचार कर सकती हैं. इतना ही नहीं इसका एक संकेत अमेरिका के लास वेगास के होटल बिजनेस से भी मिलता है. कोविड में कम स्टाफ के साथ काम करने की कला सीख चुके लास वेगास के होटल्स अब 3 साल बाद भी कम लोगों को ही नौकरी पर रख रहे हैं, क्योंकि लेबर की लागत बढ़ रही है. जबकि लास वेगास अमेरिका ऐसा शहर हैं जहां हर 4 में से 1 व्यक्ति हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में काम करता है.

यूरोप : ब्रिटेन के बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी ब्याज दरें बढ़ाने के अपने काम को अब रोक दिया है. बीते 3 दशक के दौरान ब्रिटेन ने हाल में सबसे तेजी ब्याज दरें बढ़ाईं, ताकि महंगाई को कंट्रोल किया जा सके. लेकिन इससे अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत दिखने लगे और आखिर में अब ब्याज दरें आगे और नहीं बढ़ाने का फैसला लिया गया है. ब्रिटेन के रीयल एस्टेट मार्केट में भी नरमी देखी जा रही है, इसकी एक बड़ी वजह रेंटल कॉस्ट का बीते एक दशक में सबसे ज्यादा बढ़ना है.

चीन: कोविड के बाद चीन की अर्थव्यवस्था लगातार कमजोर हो रही है, और सुधार के संकेत नहीं दिख रहे हैं. 2023 में जहां इसकी इकोनॉमिक ग्रोथ 5.1 प्रतिशत के पास रहने का अनुमान है. वहीं अगले साल ये घटकर 4.6 प्रतिशत पर आने की संभावना है. इसका असर पूरी वर्ल्ड इकोनॉमी पर भी दिखेगा. ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) के आंकड़ों के मुताबिक इस साल वर्ल्ड इकोनॉमी की ग्रोथ रेट 3 प्रतिशत के आसपास रहेगी जो अगले साल नरम पड़कर 2.7 प्रतिशत रह जाएगी.

बाकी दुनिया: फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ इंग्लैंड की तरह ही स्विट्जरलैंड के स्विस नेशनल बैंक ने भी अब ब्याज दरों को बढ़ाने से दूरी बना ली है. कोशिश यही है कि महंगाई पर लगाम लगाई जाए, लेकिन ये बाजार में पूंजी की लागत भी बढ़ा रहा है. इसी तरह तुर्किए, स्वीडन और नॉर्वे ने भी ब्याज दरों को बढ़ाया है, जबकि दक्षिण अफ्रीका, ताईवान, हांगकांग, मिस्र, फिलीपीन्स, इंडोनेशिया और भारत में ब्याज दरें स्थिर हैं.

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