Jammu Kashmir News: 1989 में 'हिंदू नरसंहार' का 34 साल बाद होगा हिसाब, जज के मर्डर केस से होगी शुरुआत

Jammu Kashmir News - 1989 में 'हिंदू नरसंहार' का 34 साल बाद होगा हिसाब, जज के मर्डर केस से होगी शुरुआत
| Updated on: 08-Aug-2023 10:11 PM IST
Jammu Kashmir News: जम्मू-कश्मीर सरकार ने 1989 में हिंदुओं के नरसंहार से जुड़े हर मामले की जांच कराने का फैसला लिया है और इसकी शुरुआत जस्टिस नीलकंठ गंजू मर्डर केस से हो रही है. जस्टिस नीलकंठ गंजू की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई थी, क्योंकि उन्होंने जज रहते हुए आतंकवादी मकबूल बट को मौत की सजा सुनाई थी. जानकारी के लिए बता दें कि 1989 में कश्मीर में कई कश्मीरी हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी, हिंदू महिलाओं के साथ रेप हुआ था. उन्हें अपना ही घर छोड़कर रातों रात भागना पड़ा था. सरकार ने अब 34 साल बाद उस नरंसहार की जांच कराने का फैसला कर उन्हें न्याय दिलाने की तरफ कदम उठाया है.

क्या है पूरा मामला

ये पूरा मामला 1960 के दशक में शुरू हुआ. मकबूल बट जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट का संस्थापक था. मकबूल बट ने पुलिस अधिकारी अमरचंद की हत्या कर दी थी. 1984 में मकबूल भट्ट ने ब्रिटेन में भारतीय राजनयिक रवींद्र म्हात्रे का पहले अपहरण किया और बाद में हत्या कर दी थी. रवींद्र म्हात्रे की हत्या के आरोप में मकबूल बट को फांसी की सजा हुई.

जस्टिस नीलकंठ गंजू ने ही मकबूल बट को फांसी की सजा सुनाई थी. फिर 1984 में मकबूल बट को फांसी दे दी गई. इसी का बदला लेने के लिए यासीन मलिक ने 1989 में जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी. 4 नवंबर 1989 को श्रीनगर में हाईकोर्ट के पास जस्टिस गंजू को गोली मारी गई थी. हत्या के बाद दो घंटे तक जस्टिस गंजू का शव सड़क पर ही पड़ा रहा था.

यासीन मलिक ने बाद में एक इंटरव्यू में माना था कि उसने ही जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या की थी लेकिन तब तक जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों और अलगवादियों का इतना दबदबा हो चुका था कि वो आजाद घूम रहा था. लेकिन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब यासीन मलिक के एक-एक गुनाहों का हिसाब हो रहा है. यासीन मलिक पहले से ही देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहा है, और अब ये एक और मामला खुल चुका है.

राज्य जांच एजेंसी यानी SIA ने जस्टिस नीलकंठ गंजू हत्याकांड की जांच में लोगों की मदद मांगी है. लोगों से कहा गया है कि इस मामले में जिसके पास जो तथ्य हैं, वो जांच एजेंसी को दें. सबूत देने वालों के नाम और पहचान को पूरी तरह से गुप्त रखा जाएगा. SIA ने एक नंबर जारी किया है, 88-99-00-49-76 पर संपर्क करने को कहा गया है.

जस्टिस नीलकंठ गंजू हत्याकांड की जांच तो शुरुआत मात्र है, अभी ऐसे कई मामले खुलने बाकी हैं. हालांकि इस एक केस की जांच शुरू होने से कश्मीरी पंडितों में ये उम्मीद जगी है कि देर से ही सही, लेकिन उन्हें न्याय जरूर मिलेगा, वो इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं.

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