दुनिया: जनसंख्या घटने लगे तो रोकना नामुमकिन, अनुमान से 2 अरब कम होगी 2100 तक आबादी
दुनिया - जनसंख्या घटने लगे तो रोकना नामुमकिन, अनुमान से 2 अरब कम होगी 2100 तक आबादी
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Updated on: 16-Jul-2020 10:09 AM IST
Delhi: दुनिया की आबादी 2064 तक 9.7 अरब हो जाएगी, लेकिन इसके बाद यह कम होने लगेगी और वर्ष 2100 तक गिरकर 8.8 अरब हो जाएगी। जबकि 2019 में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में 2100 तक आबादी के 10.9 अरब पहुंच जाने का अनुमान जताया था, यानी यह मौजूदा अनुमान से दो अरब ज्यादा है। यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के शोधार्थी संयुक्त राष्ट्र के अनुमान को गलत बता रहे हैं। प्रमुख शोधार्थी क्रिस्टोफर मुरे के मुताबिक, 2100 तक 195 में से 183 देशों की जनसंख्या में कमी आएगी। इतना ही नहीं 23 देशों की जनसंख्या आधी हो जाएगी और 34 देशों की आबादी में 25 से 50 फीसदी तक की कमी आएगी।लांसेट में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र ने अपने आकलन में गिरते प्रजनन दर और बुजुर्ग आबादी को ध्यान में जरूर रखा लेकिन नीतियों से जुड़े कुछ अन्य पैमानों को नजरअंदाज कर दिया था।आबादी गिरने लगे तो रोकना नामुमकिनक्रिस्टोफर के मुताबिक, एक बार अगर आबादी गिरने लगे तो उसे रोकना नामुमकिन हो जाता है। इससे दुनिया में सत्ता के लिहाज से बड़े बदलाव देखे जाएंगे। जिन 23 देशों की जनसंख्या आधी होगी उनमें जापान, स्पेन, इटली, थाईलैंड, पुर्तगाल, दक्षिण कोरिया और पोलैंड शामिल हैं। अगले 80 सालों में 73 करोड़ रह जाएगी चीन की आबादीचीन की जनसंख्या 1.4 अरब है, लेकिन अगले अस्सी सालों में यह 73 करोड़ रह जाएगी। इसी दौरान अफ्रीकी देशों में जनसंख्या वृद्धि देखी जाएगी। उप सहारा अफ्रीका में आबादी तीन गुना बढ़ कर तीन अरब हो सकती है। नाइजीरिया की ही आबादी 80 करोड़ हो जाएगी।भारत सबसे बड़ी आबादी, जीडीपी तीसरे स्थान पर2100 तक भारत की जनसंख्या दुनिया में सबसे ज्यादा होगी। हालांकि भारत की आबादी में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखेगा। जबकि नाइजीरिया दूसरे स्थान पर होगा। अर्थव्यवस्था और सत्ता के लिहाज से भारत, अमेरिका, चीन और नाइजीरिया दुनिया के चार अहम देश होंगे। जीडीपी के लिहाज से भारत तीसरे पायदान पर होगा। जापान, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन दुनिया की दस महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में बने रहेंगे। पर्यावरण के लिए अच्छी खबरशोधार्थियों ने कहा, पूर्वानुमान पर्यावरण के लिए अच्छी खबर हैं। खाद्य उत्पादन प्रणालियों पर दबाव कम होगा, कार्बन उत्सर्जन कम होगा और उप सहारा अफ्रीका के हिस्सों में अहम आर्थिक मौके पैदा होंगे।
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