Aja Ekadashi 2024: आप भी अजा एकादशी व्रत रख रहे हैं, जानें पूरी शास्त्रीय विधि

Aja Ekadashi 2024 - आप भी अजा एकादशी व्रत रख रहे हैं, जानें पूरी शास्त्रीय विधि
| Updated on: 29-Aug-2024 09:08 AM IST
Aja Ekadashi 2024: अजा एकादशी, जिसे अन्नदा एकादशी भी कहा जाता है, भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और श्रद्धा का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह एकादशी विशेष रूप से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को प्रिय मानी जाती है, और इसका व्रत रखने से भक्तों को उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। हिन्दू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत के विधिपूर्वक पालन से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस एकादशी की कथा सुनने से भी अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्यफल प्राप्त होता है।

अजा एकादशी व्रत और पूजा विधि

  • प्रातःकाल: एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके ध्यान करें।
  • पूजा: भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाएं, फलों और फूलों से पूजन करें।
  • वाचन: पूजा के बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  • व्रत: दिन भर निराहार और निर्जल व्रत का पालन करें।
  • रात्रि जागरण: इस दिन रात्रि जागरण करें।
  • द्वादशी: द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। उसके बाद स्वयं भोजन करें।
अजा एकादशी व्रत मुहूर्त

  • पारणा मुहूर्त: 30 अगस्त को सुबह 07:52:04 से 08:31:29 तक (39 मिनट)
  • हरि वासर समाप्ति समय: 30 अगस्त को सुबह 07:52:04
अजा एकादशी की कथा

एक समय की बात है, राजा हरिश्चंद्र अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे। एक दिन देवताओं ने उनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा ने एक स्वप्न में देखा कि ऋषि विश्वामित्र को राजपाट दान कर दिया है। जब राजा ने राजपाट सौंपा, तो विश्वामित्र ने दक्षिणा में 500 स्वर्ण मुद्राएं मांगी। राजा ने अपनी संपत्ति और राजकोष दान कर दिया और अंततः अपनी पत्नी और पुत्र को बेचकर स्वर्ण मुद्राएं जुटाईं, लेकिन वह भी पर्याप्त नहीं थीं।

राजा ने खुद को भी बेच दिया और श्मशान भूमि में कर वसूली का कार्य करने लगे। एक एकादशी के दिन, राजा ने श्मशान पर पहरा देते हुए एक निर्धन स्त्री को देखा, जो अपने पुत्र का शव लेकर आई थी। राजा ने अपने धर्म का पालन करते हुए पत्नी से कर मांगा, और पत्नी ने अपनी साड़ी का हिस्सा फाड़कर राजा को दिया।

तब भगवान विष्णु प्रकट हुए और राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा की सराहना की। उन्होंने राजा के पुत्र को जीवित किया और विश्वामित्र ने भी उनका राजपाट वापस लौटा दिया। इस प्रकार, राजा हरिश्चंद्र ने सत्य और धर्म के उच्चतम आदर्श को स्थापित किया और अमर हो गए।

अजा एकादशी का व्रत न केवल भक्ति की भावना को प्रकट करता है बल्कि जीवन में सत्य और धर्म के महत्व को भी दर्शाता है।

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